चेन्नई. रक्षा कौन नहीं चाहता? संसार का छोटे से छोटा प्राणी हो या बड़े, से बड़ा कोई जीव-जन्तु, हर प्राणी अपनी रक्षा चाहता है। परंतु चाहने मात्र से ही हर चीज नहीं प्राप्त होती। प्रभु महावीर महावीर फरमाते हैं कि- आप दूसरों की रक्षा करेंगे तो आपकी भी रक्षा होगी। आज पूरे विश्व में जो आतंकवाद – हिंसावाद फैला हुआ है, वह शांत हो सकता है यदि हम प्रभु महावीर के इस संदेश को आत्म सात कर पाएं तो और यही वास्तव में रक्षाबंधन का आध्यात्मिक संदेश है। यह विचार उपप्रवर्तक पंकज मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में व्यक्त किए। चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. वरुण मुनि ने कहा रक्षाबंधन का यह त्यौहार भाई-बहन के प्रेम की पवित्र निशानी है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी के धागों द्वारा अपने प्रेम को बांधती हैं और भाई भी पैसे या उपहार के साथ- साथ बहन की रक्षा का वचन देता है। यह रिश्ता केवल स्वार्थ से नहीं अपितु परमार्थ से भी बंधा हुआ है।
महारानी कर्णावती ने जब अपनी रक्षा के लिए राखी के तार भेजे तो मुस्लिम शासक हुमायूं भी उसे इन्कार न कर पाया। सेना व अपने मंत्रियों के मना करने पर भी वह रोहतास की विजय पताका छोडक़र बहन की रक्षा के लिए आया। यह पर्व भाई को अपने कर्तव्य की याद दिलाता है। गुरुदेव ने कहा आज के समय में यह पर्व पैसे की चकाचौंध में उलझता जा रहा है। भाई अमीर हो तो डायमंड की या सोने चांदी की राखी और भाई गरीब हो तो मौली का धागा या वो भी नहीं? दूसरी ओर भाई भी ध्यान रखें – बहन राखी बांधने आती है तो वह आपसे जरूरी नहीं कि- पैसे लेने ही आती है। धन या उपहार तो एक शगुन का एक प्रतीक है। बहन तो अपनी शुभकामनाएं देने आती है। हर व्यक्ति को इस पर्व की गरिमा का ध्यान अवश्य ही रखना चाहिए। हमें उन फौजी भाईयों की भी मंगलकामना करनी चाहिए जो देश की रक्षा- सुरक्षा के लिए दिन भर विकट परिस्थितियों में भी डटे रहते हैं और देश की सीमाओं की सुरक्षा करते हैं।