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प्रसंग चंद्र के बारे में बड़ा चर्चित प्रसंग है वह अपना राज पाठ त्याग करने के बाद संत बने थे

प्रसंग चंद्र के बारे में बड़ा चर्चित प्रसंग है वह अपना राज पाठ त्याग करने के बाद संत बने थे

हमारे भाईन्दर में विराजीत उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया आदि ठाणा 7 साता पूर्वक विराजमान हैl वह रोज हमें प्रवचन के माध्यम से नित नयी वाणी सुनाते हैं, वह इस प्रकार हैंl

बंधुओं जैसे कि एक समय की बात है राजश्री प्रसंग चंद्र के बारे में बड़ा चर्चित प्रसंग है वह अपना राज पाठ त्याग करने के बाद संत बने थेl एक बार में जंगल में एक हाथ आकाश की ओर ऊपर की एक पांव के बल खड़े होकर घर तपस्या में लेते राजा श्रेणी भगवान महावीर के दर्शन अपनी शोभा यात्रा के साथ उधर से गुजर रहे थेl प्रश्न चंद्र को तपस्या देखकर राजा ने स्वयं को धन्यवाद समझा सोचा जब यह राजेश्री थे तब भी अपने सूत्रों का दमन करती है और अब सन्यासी होकर अपने भीतर के शत्रु को जीतने में लगेl

धन्य राज्यश्री तुम्हारा छात्र धन है यही विचार करते-करते राजा श्रेणीक भगवान महावीर के समक्ष पहुंचे दर्शन वंदन के उपरांत उन्होंने भगवान से पूछा जिस समय में राजेश्वरी प्रश्न चंद्र के दर्शन कर रहा थाl उसे समय अगर उनकी मृत्यु हो जाती तो उनको कौन सी गति होती है भगवान ने कहा उसे समय उन्हें साथी न भी मिल जाती तो उनका सौभाग्य होताl राजा श्रेणी चौंक पड़े चौंका स्वाध्यापक थाl इतने महान संत और साध्वी नाटक अपना संशय मिटाने के लिए उन्होंने फिर पूछा अगर 1 मिनट बाद उनकी मृत्यु होती तो भगवान ने कहा छुट्टी में राजा फिर सका और उत्तरोत्तर एक-एक में कम होती चली गई पांचवी ज्योति और अगले क्षण मृत्यु होती तो देवलोक मिलने देवलोक का क्रम भी निरंतर हर क्षण में चढ़ता गयाl

पहले से 14 लोकतक जा पहुंचा राजा सैनिक ने गुना जिज्ञासा की है प्रभु यदि अभी प्रश्न चंद्र जल्द की मृत्यु हो तो भगवान ने कहावत शब्द दो पल के लिए धैर्य धारण करो शांत रहो दोl अक्षर बात भगवान का रहे थे कि वह केवल और निर्माण को उपलब्ध हो चुके हैं अब वह हर गति और गति से पर है राजा हाथ मलता रह गयाl उसके लिए विश्वास करना बहुत मुश्किल था कुछ क्षण पहले की साधकी नरक गति होने की अभी-अभी वह मोक्ष को उपलब्ध हो चुका थाl भगवान ने राजा की जिज्ञासा का समाधान किया राजन भावों का संसार बड़ा विचित्र हैl


जिस समय तुम राजश्री प्रशांत चंद्र के दर्शन कर रहे थे तो तुम्हारे दो अनुचर के वार्तालाप से मुनि प्रभावित हो गए थेl तुम्हारे अनुसार तुम अपने सुमुख से कहा यह कैसे संत थे जो अपने नन्हे से बालक को राजपथ की भारी जिम्मेदारी सोपकर संनयासी बन बैठे हैंl इन्हें मालूम नहीं है कि उनके राज्य पर शत्रु ने आक्रमण कर दिया हैl शत्रु प्रबल है वह उनके पुत्र को मार कर संभल जा चलेगा तपस्वी ने इतनी बात सुनी और पुत्र के प्रति मोह पर जाग उठा भाव आंदोलन हो भाव में महासंग्राम चढ़ गयाl भाव में कितने उतार चढ़ाव हो सकते हैं भाव में कैसा महासंग्राम और कितना भयंकर महाभारत हो सकता हैl

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