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प्रवज्या अर्थात आरंभ एवं परिग्रह दोनों का त्रियोगसे सम्यक त्याग

प्रवज्या अर्थात आरंभ एवं परिग्रह दोनों का त्रियोगसे सम्यक त्याग

*🌧️विंशत्यधिकं शतम्*

*📚📚📚श्रुतप्रसादम्🌧️*

🌧️

5️⃣0️⃣

🟤

आरंभ

समारंभ अर्थात

हिंसा युक्त प्रवृत्ति..

परिणाम निर्ध्वंश एवं

मलिन करें ऐसी प्रवृत्ति..

परिग्रह अर्थात

निर्वाह के अतिरिक्त

वस्त्र, पात्र, आहार आदि

वस्तुओ का संग्रह करना..

प्रवज्या अर्थात

आरंभ एवं

परिग्रह दोनों का

त्रियोगसे सम्यक त्याग..

🧘‍♂️

सफलता पूर्वक

राधावेध करनेवाले

व्यक्ति जैसा स्थिर चित्त ही

प्रवज्या का पालन कर सकता हैं,

सत्वहीन व्यक्ति का ये कार्य नही.!

*📙श्री पंच वस्तुक ग्रंथ📙*

🌷

*तत्त्वचिंतन:*

*मार्गस्थ कृपानिधि*

*सूरि जयन्तसेन चरण रज*

मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.

*🦚श्रुतार्थ वर्षावास 2024🦚*

श्रीमुनिसुव्रतस्वामी नवग्रह जैनसंघ

@ कोंडीतोप, चेन्नई महानगर

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