श्री गुजराती जैन संघ गांधीनगर में चातुर्मास विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार डॉ श्री वरुण मुनि जी म सा ने रविवार को धर्म सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि भक्ति , पूजा , भारतीय संस्कृति की एक आदर्श विशेषता है। यहां भगवान की पूजा होती है और गुरु की आदर भक्ति होती है। यहां अतिथि का भी आदर सत्कार किया जाता है।
यह अतिथि की पूजा ही है। उन्होंने प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की स्तुति रुप मानतुंग आचार्य द्वारा की गई अपार श्रद्धा भक्ति भाव से की स्तुति ऊर्जा रुप भक्तामर स्तोत्र की दिव्य महिमा पर चर्चा करते हुए कहा कि भक्त द्वारा की गई प्रभु की भक्ति रुप यह कालजयी रचना बहुत ही कल्याणकारी और मंगलकारी है। आज भी जिनशासन के हर साधक परिवार में प्रात: काल इस महान चमत्कारी प्रभावशाली भक्तामर स्तोत्र की स्तुति प्रार्थना बड़े ही श्रद्धा भक्ति उत्साह के साथ की जाती है।
उन्होंने कहा कि अपने भक्त द्वारा श्रद्धा भक्ति भाव से की गई प्रार्थना को भगवान अवश्य सुनते हैं और बदले में अपने दिव्य कृपा, आशीर्वाद से अपने भक्त के जीवन में हर प्रकार की खुशियां भरते हुए भक्त को सब मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। मुनि श्री ने कहा कि भगवान की भक्ति निष्काम भाव से करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि साधक को भगवान से प्रार्थना में सांसारिक भौतिक पदार्थों की प्राप्ति की कामना नहीं करनी चाहिए। बल्कि भगवान से प्रार्थना में
सद् गुणों की और परम पद मुक्ति मोक्ष पद प्रदान करने की मंगल कामना करना चाहिए। क्योंकि संसार के भौतिक पदार्थों में क्षणिक सुख, आकर्षण हैंलेकिन सच्चा सुख मोक्ष में निहित है। उन्होंने आगे कहा कि परमात्मा सर्वक्षेष्ठ है और परमात्मा की भक्ति पूजा से मन प्रसन्न हो जाता है। उसे संसार में सब ओर चारों तरफ खुशी, प्रसन्नता का अनुभव होता है। भक्ति, पूजा का श्रेष्ठ फल है चित्
की प्रसन्नता। निष्काम भाव से प्रभु के प्रति समर्पित होना ही अखण्ड पूजा भक्ति है। मधुर वक्ता रुपेश मुनि जी ने भजन प्रस्तुत किया। उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी म सा ने सबको मंगल पाठ प्रदान किया। इस अवसर पर समाज के अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। संचालन राजेश मेहता ने किया।