यस यस जैन संघ नार्थ टाउन में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि आत्म बंधुओं, दो शब्द है पर्युषण’ और ‘प्रदूषण। संसार प्रदुषण यानि गदंगी से युक्त है। संसार कषाय से युक्त है जिससे हानि है। पर्युषण ही शुद्ध बनाता है। आत्मा का उद्धार करता है। अनादिकाल से आत्मा में कर्मो का प्रदूषण लगा हुआ है।
मन, वचन, काया से यदि हम शुद्ध नहीं होंगे तो पर्युषण पर्व मनाना भी सार्थक नहीं होगा। आत्मा को पवित्र शुद्ध बनाने का हमारा लक्ष्य होना चाहिए। सरकार भी गदंगी प्रदूषण हटाने के लिए अनेक प्रयास करती है जिससे व्यक्ति निरोगी व दीर्घायु हो उसी प्रकार भगवान कहते है कि शाश्वत सुख व अमरता पाना चाहते हो तो आत्मा में लगे कर्मों के प्रदूषण को दूर करना आवश्यक है।
सरकार को तो प्रदूषण बार-बार हटाना पड़ता है परन्तु ज्ञानीजन कहते है कि आत्मा एक बार शुद्ध हो गई हो बार-2 ये कार्य नही करना पडता। तपस्या जीवन में अनिवार्य रूप से होना चाहिए क्योंकि तप ही जीवन का श्रृंगार है। तप की आराधना करने वाला कालान्तर में निकट भव मोक्ष में चला जायेगा। आठ कर्मो को तोड़ने के लिए अल्प समय या एक दिन का संयम भी पर्यात है इसके उत्कृष्ट उदाहरण मरुदेवी माता और गजसुकुमाल है।
चार्तुमास तभी सफल होते है जब ज्यादा से ज्यादा तप त्याग होता है, धर्म-ध्यान होता है, प्रतिक्रमण, सामायिक आदि करते है ज्यादा से ज्यादा जिनवाणी श्रवण करते है। यदि ऐसा नही हो तो बड़ी-बड़ी टीप लिखाने का क्या फायदा।