श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा कि व्यक्ति को परिमाण दर्शी नहीं परिणाम दर्शी बनाना चाहिए। धर्म आराधना कितने परिमाण में की जा रही है यह देखने की बजाय, उस धर्म आराधना से क्या परिणाम प्राप्त हो रहा है यह देखना चाहिए। जो व्यक्ति कार्य करने से पूर्व ही उसके परिणाम का चिंतन कर लेता है, उसे बाद में पछताने की जरूरत ही नहीं पड़ती है।
मुनि ने श्रावक के 16 वें गुण विशेषज्ञता का विवेचन करते हुए कहा कि ज्ञान से ही गुण दोष सार -असार, सत्य – असत्य, नीति – अनीति, धर्म – अधर्म, पुण्य – पाप, जीव – अजीव, हित -अहित आदि का बोध होता है। एक सदगृहस्थ को धर्म नीति एवं सिद्धांतों का विशेष ज्ञान होना चाहिए।
श्रावक के लिए जीवादि 9 तत्वों का ज्ञान होना आवश्यक है। जिस प्रकार विशेषज्ञ डॉक्टर द्वारा संबंधित रोग के समय, निदान एवं उपचार सामान्य डॉक्टर की अपेक्षा ज्यादा सटीक होता है, उसी प्रकार विशेष जानकारी व्यक्ति का संबंधित विषय पर ग्रहण चिंतन एवं मनन होना चाहिए। जिससे स्व – पर का कल्याण हो सके।
ज्ञानी बनने के लिए श्रवण, शास्त्र अध्ययन, स्वाध्याय, पठन – पाठन, अभ्यास इत्यादि जरूरी है। मात्र डिग्री प्राप्त करने से ही ज्ञानी नहीं बनता। योग्यता के साथ सीके हुए ज्ञान को आचरण में लाना ज्यादा महत्वपूर्ण है। ज्ञान एक ऐसा प्रकाश है जिसके द्वारा वस्तु के सम्यक स्वरुप को जाना जा सकता है। सर्वज्ञ बनने के लिए पहले ज्ञानी बनाना होगा।
इस अवसर पर जयगच्छीय स्वामीवर्य हरकचंद महाराज का जन्म दिवस भी मनाया गया। इनके बारे में मुनि ने कहा वे वचन सिद्ध साधक, उग्र तपस्वी थे, जिन्होंने जीवन भर आयंबिल तप किया। जन-जन की उनके ऊपर अपार श्रद्धा एवं आस्था थी।
उनका स्मरण वर्तमान में भी अचिंत्य प्रभाव वाला है। मुनिवृंद के सानिध्य में 10 अक्टूबर को विदाई समारोह एवं कृतज्ञता ज्ञापन समारोह, 11 अक्टूबर को चातुर्मास समापन, 12 को लोकाशाह जयंती एवं 13 को चातुर्मास उपरांत प्रथम विहार होगा।