श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर, बैंगलोर में चातुर्मास के अंतर्गत भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज ने अपने आज के प्रेरणादायक प्रवचन में कहा कि —“धन-दौलत, पद-प्रतिष्ठा, और भौतिक सुख — ये सब तभी सार्थक हैं जब उनमें परमात्मा का नाम, भक्ति और सद्भाव जुड़ा हो। अन्यथा यह सब जीवन को केवल बाहरी चमक देता है, आंतरिक शांति नहीं।”
मुनि श्री ने कहा कि संसार में मनुष्य धन अर्जित करने में तो निरंतर प्रयासरत है, परंतु ईश्वर-स्मरण और आत्म-ज्ञान को अक्सर पीछे छोड़ देता है। उन्होंने स्पष्ट कहा —“धन से सुख खरीदा जा सकता है, लेकिन शांति नहीं; संपत्ति से मान पाया जा सकता है, लेकिन मोक्ष नहीं।”
मुनि श्री ने जीवन का सच्चा उद्देश्य बताते हुए कहा कि जब मनुष्य अपने धन और सामर्थ्य का उपयोग सेवा, सदाचार और सत्कर्म में करता है, तभी वह वास्तव में धन्य कहलाता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे दीपक का प्रकाश तभी उपयोगी होता है जब वह अंधकार मिटाए, वैसे ही धन तभी पवित्र होता है जब वह धर्म और मानवता की सेवा में लगे।
उन्होंने समाज के सभी वर्गों — युवाओं, गृहस्थों और उद्यमियों — से आह्वान किया कि वे अपने जीवन में ‘परमात्मा का नाम’ और ‘सदाचार का मार्ग’ अपनाएँ। तभी जीवन में सच्चा संतुलन और आंतरिक समृद्धि संभव है।
प्रवचन के पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ युवा मनीषी श्री रूपेश मुनि जी के मधुर भजनों से हुआ, जिनकी स्वर लहरियों ने वातावरण को भक्ति रस से भर दिया। तत्पश्चात उपप्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी महाराज ने मंगल पाठ का वाचन कर सभी को शुभाशीष प्रदान किया।
भक्तजन और श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित रहे और मुनि श्री के संदेश से आत्मिक रूप से लाभान्वित हुए।