तत्व चिंतक श्री विजयश्रीजी म सा ने आज प्रवचन में धर्म कार्य भावों से करने का महत्त्व बतलाया। यदि धर्म कार्य करने के बाद आप पछतावा कर लो तो उसका महत्त्व समाप्त हो जाता हैं। शालीभद्रजी ने अपने पूर्व भव में बाल्यकाल में मुनिराज को भावों से खीर बहराई, जिसके फलस्वरूप उन्हें देवलोक तथा बाद में शालीभद्र का भव मिला। आशुकवि पूज्या गुरूवर्या श्री कमलेशजी म सा ने आज औलाद, धन तथा औरत के उदाहरण से धर्म के बारे में बतलाया। पुत्र को कितना भी धन दो, वह कुछ समय तक ही याद रखेगा। पत्नी जो धर्म के मार्ग पर ले जाए वही धर्मपत्नी। यदि गुरुदेवों पर श्रद्धा रखोगे, उनके मंगल पाठ पर श्रद्धा रखोगे तो अवश्य मंगल ही होगा।
आनन्द सेठ चरित्र: बसन्तपुर नगर में राजेन्द्र राजा का राज था। उसके नगर में एक धर्म परायण सेठ रहता था, जिसका नाम आनन्द सेठ था। उसकी पत्नी चम्पा भी धर्म परायण महिला थी। उनके घर मे इतना सोना था कि नहाने की बाल्टी, पाट, तथा मग भी सोने का था। एक बार देवलोक में आनन्द सेठ की धर्म परायणता की प्रशंसा हुई । एक देव इसकी परीक्षा हेतु अदृश्य होकर आनन्द सेठ के घर पर आया तथा आनन्द सेठ को भयभीत करने की कोशिश करने लगा। उसने आनन्द जो चेतावनी दी कि अपने धर्म को झूठा कहो वरना तुम्हारा सारा धन समाप्त हो जाएगा। आनन्द सेठ का मानना था कि जो मेरा है, वो जाएगा नहीं, और जो मेरा नहीं वो रहेगा नहीं। अपनी समय दशा को समझकर आनन्द सेठ ने अपने मुनीम को बुलाकर व्यापार में जो भी उधार पर माल लिया हुआ था, वो सभी को लौटा दिया। सब कर्जे को समाप्त कर दिया। अपने एक परम् मित्र के दस हजार जमा थे, वो देने हेतु मित्र को निवेदन किया। तो मित्र नाराज हो गया। उसने पैसे लेने से साफ इंकार कर लिया। आनन्द सेठ ने बहुत प्रयत्न किया, किन्तु निष्फल रहा। आनन्द सेठ अपने घर पर आया। जिस भी मूल्यवान वस्तु पर उसकी नजर जाती, उसका रूप बदल जाता। सारी सोने की वस्तुएं पीतल की हो गई। सेठ तथा सेठानी ने इसे अपना बुरा समय समझकर स्वीकार किया। देव पुनः अदृश्य रूप में आकर आनन्द सेठ को चेतावनी देता हैं। लेकिन आनंद को अपने धर्म पर पूर्ण श्रद्धा थी। आनन्द सेठ का सारा धन समाप्त हो चुका था। उसने अपने मुनीम को भी छुट्टी दे दी थी। आंनद ने अपनी पत्नी को पीहर भेजने की कोशिश की, लेकिन पत्नी से इससे साफ इंकार कर दिया। अगले दिन सुबह घर पर उसका परम् मित्र आता हैं। तथा आते ही उससे अविलम्ब दस हजार रुपये लौटाने की बात कहता हैं। आनन्द के पास अब कुछ भी धन नहीं बचा था। वो मित्र से एक दिन की मोहलत लेता हैं….क्रमशः