जैन साध्वी ने बताया कि जहां लक्ष्मी का सदुपयोग होता है वह वहां करती है निवास
Sagevaani.com /शिवपुरी ब्यूरो। धनतेरस पर अपने प्रवचन में प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि धनतेरस का संदेश है कि वह रस धन्य है जो हमारे तन और मन को स्वस्थ रखे। उन्होंने बताया कि पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया। तन और मन से निरोग होने पर ही जीवन का आनंद लिया जा सकेगा।
दूसरों की सेवा की जा सकेगी। अपने प्रवचन में साध्वी जी ने यह भी बताया कि लक्ष्मी वहां निवास करती है जहां उसका सदुपयोग होता है। लक्ष्मी का आप उपयोग, दुरूपयोग और सदुपयोग तीनों कर सकते हो। सदुपयोग तब होता है जब लक्ष्मी को परमार्थ के काम में लगाया जाए। प्रारंभ में साध्वी जयश्री जी और साध्वी वंदना श्री जी ने सुमधुर स्वर में भजनों का गायन कर माहौल को भक्ति रस की गंगा से सराबोर किया। गुरूणी मैया साध्वी रमणीक कुंवर जी ने दीपावली को महान आध्यात्मिक पर्व बताते हुए कहा कि इस पर्व पर भगवान महावीर ने मोक्ष गमन किया था।
इसलिए हमें लक्ष्मी को आग नहीं लगाना चाहिए और पटाखों के इस्तेमाल से परहेज रखना चाहिए।
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि दीपावली पर लक्ष्मी पूजा की परंपरा है। लेकिन लक्ष्मी को प्रसन्न किए बिना लक्ष्मी पूजा का कोई अर्थ नहीं है। उन्होंने कहा कि जिस घर में परमात्मा को याद किया जाता है और बड़ों का सम्मान किया जाता है, वहां लक्ष्मी का निवास होता है। लक्ष्मी वहां भी रहती है जिस घर में खाने से पहले दूसरों को खिलाया जाता है अर्थात अपने धन को परोपकार में खर्च किया जाता है। लक्ष्मी सत्कार्य करने वाले और परोपकार करने वाले लोगों के घरों में रहती है। लक्ष्मी का निवास वहां भी होता है जिस घर में कलह नहीं होती है। घर में आपस में प्रेम का वातावरण होता है और पूरे परिवार में सामंजस्य रहता है।
आचार्य देवेन्द्र मुनि और साध्वी लज्जावति का जन्म दिवस मना
कमला भवन में आयोजित धर्मसभा में स्थानकवासी जैन सम्प्रदाय के आचार्य देवेन्द्र मुनिजी महाराज और साध्वी लज्जावति जी का जन्म दिवस गुणानुवाद सभा के रूप में मनाया गया। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि आचार्य देवेन्द्र मुनि का व्यक्तित्व बहुत दिव्य था। उन्होंने अपने जीवन काल में 340 पुस्तकें लिखी। उनकी भाषण शैली के सभी कायल थे और उन्होंने स्थानकवासी समाज के आचार्य के रूप में एक विशिष्ठ स्थान प्राप्त किया। उनके जन्म दिवस पर उन्हें सच्ची भावांजलि यहीं होगी कि उनके आदर्शो पर चलकर हम जीवन के चरम लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकें। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने अपनी गुरू बहिन साध्वी लज्जावति जी के व्यक्तित्व पर भी विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि साध्वी लज्जावति जी ने 2009 का चार्तुमास शिवपुरी में किया था। वह बहुत शांत प्रवृत्ति की साध्वी थी और उन्होंने अनेक तपस्याऐं की।