वीरपत्ता की पावन भूमि पर आमेट के जैन स्थानक मे साध्वी विनीत रूप प्रज्ञा ने कहा देह का राग छोड़ना बहुत कठिन संसार में वही जीव वंदनीय, पूजनीय हैं, जिन्होंने देह से ममत्व छोड़ दिया। घर, देश और संसार से मोह छोड़ना सरल है। जगत का राग छोड़ना सरल है, लेकिन देह का राग छोड़ना बहुत कठिन है। देह के ममत्व में जीव डूबा रहता है। इसे सजाने संवारने में व्यस्त रहता है। बालक से किशोर, युवा, अधेड़ और बुजुर्ग होने तक देह के महत्व में डूबा रहता है।आप बैल को खूंटे से बंधा देखते हो, लेकिन यह क्यों नहीं देखते कि रस्सी से न बंधा होता तो खूंटे से नहीं बंध पाता। रस्सी खोल दो खूंटा अपने आप छूट जाएगा। ऐसे ही देह के राग से छूट जाओ तो इस दुनिया से छूट जाओगे।
साध्वी आनन्द प्रभा ने कहा जिसने शरीर को परवस्तु जान लिया तो फिर दूसरे के शरीर में ममत्व नहीं करेगा। यही ब्रह्मचर्य, अचौर्य, सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह है। देह के भोग के लिए जीव हिंसा करता है। असत्य बोलता है, चोरी करता है। जिनालयों में जाने के साथ-साथ श्मशान में भी जाना चाहिए। सुबह मंदिर जाते हो तो शाम को श्मशान में भी जाना चाहिए। श्मशान में जीते जी जाने लग गए तो जिस देह में तुम्हारा राग था वह समाप्त हो जाएगा।
साध्वी चन्दन बाला ने कहा जो वैराग्य के साथ जीते हैं वे कपूर की भांति उड़ जाते हैं। आत्मा को बड़े दुख से जाना जा सकता है। संसार के सुखों का विसर्जन नहीं होगा तब तक भगवान आत्मा को नहीं जाना जा सकता। मां अपने पुत्र को मुस्कान दे पाती है, वैसे ही महात्मा सारे विश्व को मुस्कान देते हैं। महात्मा को देखते ही चित प्रसन्ना हो जाता है। शरीर में राग नहीं होता तो संसार में जीव रागी बनता ही नहीं। संसार का सुख चासनी है, आत्मा का सुख मिश्री की डली है।
इस धर्म सभा का संचालन सुरेश दक ने कियाl