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दव्व विहिं:- सहित एवं अचित द्रव्यो की मर्यादा: पुज्य जयतिलक जी म सा

दव्व विहिं:- सहित एवं अचित द्रव्यो की मर्यादा: पुज्य जयतिलक जी म सा

जैन भवन, रायपुरम में पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि करुणा के सागर भगवान महावीर ने भव्य जीवों पर महान करुणा कर संसार, सागर से तिरने जिनवाणी गंगा प्रवाहित कई एवं श्रुत धर्म, चारित्र धर्म का निरुपण किया।

आगर धर्मः- 5 अणुव्रत, 3 गुणव्रत, 4 शीक्षाव्रत। छट्टा दिशाव्रत को आपने धारण कर लिया। सातवें व्रत के 26 बोलों में आपके जीवन की सारी आवश्यकता पूरी होती है। इन बोलों की मर्यादा करने से संसार के सारे दोषों से बच जाता है सिर्फ अल्प कर्म ही बंध होते हैं । आरम्भ सारम्भ कम हो जाते है। आकांक्षा, आवश्यकता, सिमित हो जाती हैं। 25 बोलो का विवेचन हो चुका है।

दव्व विहिं:- सहित एवं अचित द्रव्यो की मर्यादा । जितने कम द्रव्य होगें उनका आरम्भ समारम्भ कम होगा। कर्मो का बंध भी कम होगा। जीभ की लोलुपता वश आप अधिक द्रव्य लगाते हो! जैन श्रावक की आवश्यकता 8-9 द्रव्य से पूरी हो सकती है। अधिक द्रव्यो का सेवन करने से रोग उत्पन्न होने की संभावना है। भगवान कहते है मेरी आज्ञा का पालन करने से ही आप रोगमुक्त एवं कर्म मुक्त हो सकते है।

आज 15 कर्मादान का विवेचन जो श्रावक के जानने योग्य है आचरण योग्य नहीं।

1. इंगाल कर्म- अग्नि के प्रयोग से आजीविका करने का कर्म जैसे चुना ईंट, कोयला, लोहार, सुनार आदि के कर्म व्यापार का त्याग।

2. वन कर्म:- वन आदि कामों को करने का त्याग। जंगल में लकड़ी काटना, ठेका लेना, घर के लिए, परिवार के लिए करना पड़े तो आगार

3. शकट कर्म :- गाड़ी बनाने के काम का त्याग, फैक्ट्री का प्याग, गाडी बेचने के व्यापार का त्याग।

सेजल कोठारी ने अठाई की तपस्या के पच्छखान लिए उनका सम्मान संघ की और से किया गया। संचालन ज्ञानचंद कोठारी ने किया। यह जानकारी नमिता संचेती ने दी।

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