जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने ज्ञान दर्शन चारित्र तप के अंतर्गत दर्शन की व्याख्या करते हुए कहा यों तो दर्शन का शब्दार्थ देखने से सम्बन्ध रखता है। यहाँ आत्म गुण होने से दर्शन का भावार्थ श्रद्धा के साथ लिया गया है! हमारी जीवन यात्रा पल पल विशवास पर टिकी रहती है! चलना फिरना खाना पीना परिवार व्यापार डाक्टर ड्राइवर बाप बेटे पति पत्नि सर्वत्र विश्वास के बल पर ही जीवन टिका हुआ रहता है! यहाँ तक कि एक शवांस छोड़ने के बाद एक पांव उठाने के बाद दूसरा शवांस दूसरा पांव काम करेगा या नहीं अगर अविश्वास हो तो जीवन क्रम ही समाप्त हो जाता है!
भगवान महावीर स्वामी ने श्रद्धा का सम्बन्ध धर्म के साथ जोड़ते हुए कहा अरिहंत परमात्मा उनकी आज्ञा मे रहने वाले मुनिराज, एवं उनका दिया हुआ उपदेश ही वास्तविक देव गुरु धर्म कहलाता है! हमारा जितना विश्वास दुनियादारी पर है उतना धर्म तत्व पर नहीं हो पाता आवश्यकता है अध्यात्म धर्मबल को प्रमुखता देते हुए दृढ विशवासी बनने की! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा नवकार मंत्र की विवेचना करते हुए विधि विधान से किए गए धर्म कार्य अधिक व तुरंत लाभ देते है!
दवा मे शक्ति है पर विधि पूर्वक परहेज के साथ न ली जाए तो कई बार दवा खतरा बन कर रियेक्षण कर देती है! धर्म पूजा पाठ स्वाध्याय भी विधि विधान के साथ होनी चाहिए! तभी शत प्रतिशत उसका फल प्राप्त होता है! महामंत्री उमेश जैन द्वारा आवश्यक सूचनाएं व स्वागत और दूसरे कार्यक्रम सम्पन करवाये गए।