श्री गुजराती जैन संघ गांधीनगर में चातुर्मास विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार डॉ श्री वरुण मुनि जी म.सा.ने पर्यूषण पर्व के सातवें दिन धर्म सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि तप आत्म शुद्धि का पवित्र माध्यम है। उन्होंने अंतगड सूत्र के माध्यम से राजा श्रेणिक की काली, सुकाली, महाकाली आदि दस रानियों के प्रभु महावीर के पास जाकर दीक्षा ग्रहण करके विभिन्न रत्नावली आदि अनेक प्रकार की विशिष्ट तप साधना करते हुए परम पद मुक्ति मोक्ष को प्राप्त करने के प्रेरक जीवन प्रसंग पर सारगर्भित विवेचना प्रस्तुत की। उन्होंने आगे कहा कि तपस्या करने से साधक के भवो भवो के किये संचित कर्म नष्ट हो जाते हैं।
तप आत्मा की ज्योति है।
तप आत्मा का श्रृंगार है।
उन्होंने कहा कि श्रमण संस्कृति तप प्रधान संस्कृति है तप श्रमण संस्कृति का प्राण तत्व है। जीवन की श्रेष्ठ कला है। तप जीवन का दिव्य आलोक है। शुरवीर साधक ही तप कर सकते हैं, कायर नहींl सभी तीर्थंकरों ने अपने पूर्व भव में तप की महान साधनाएं की थी। उन्होंने कहा कि बारह प्रकार के तप जो प्रभु महावीर ने हमें बतलाए हैं उन तप साधना का सभी को यथासंभव जरुर तपस्या करके अपनी आत्मा को पवित्र निर्मल शुद्ध बनाना चाहिए।
प्रारंभ में युवा मनीषी मधुर वक्ता श्री रुपेश मुनि जी ने अंतगड सूत्र का वाचन किया। उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी म सा ने तपस्वियों को तप के पच्चक्खाण कराते हुए सबको मंगल पाठ प्रदान किया। बुधवार को श्रुताचार्य साहित्य सम्राट वाणीभूषण परम पूज्य गुरुदेव प्रर्वतक श्री अमर मुनि जी महाराज साहब की जन्म एवं दीक्षा जयंती तप त्याग पूर्वक परम पूज्य गुरुदेव के पावन सानिध्य में प्रवचन के दौरान मनायी जायेगी। संचालन राजेश मेहता ने किया।