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जो मार्गानुसारी क्रिया का निषेध, अपलाप, त्याग करके मात्र ज्ञान का अहंकार करते हैं वह ज्ञान एवं क्रिया दोनों से भ्रष्ट नास्तिक है

जो मार्गानुसारी क्रिया का निषेध, अपलाप, त्याग करके मात्र ज्ञान का अहंकार करते हैं वह ज्ञान एवं क्रिया दोनों से भ्रष्ट नास्तिक है

*🌧️विंशत्यधिकं शतम्*

*📚📚📚श्रुतप्रसादम्🌧️*

🌧️

4️⃣0️⃣

🛑

जो मार्गानुसारी क्रिया का

निषेध, अपलाप, त्याग करके

मात्र ज्ञान का अहंकार करते हैं

वह ज्ञान एवं क्रिया

दोनों से भ्रष्ट नास्तिक है..!

🪔

ज्ञान एवं

क्रिया उभय का

आलंबन करनेवाला,

विनय बहुमान करनेवाला

साधक भावविशुद्ध बनकर

शीघ्र ही मोक्ष प्राप्ति करता हैं..!

भूमिका अनुसार,

ज्ञान सहित धर्मप्रवृत्ति ही

सन्मार्ग को प्रशस्त करती हैं.!

💫

बिना क्रिया के

सिर्फ शुष्कज्ञान से

जो मोक्ष की खोखली

बातें करते है वह

अन्न ग्रहण किये बिना ही

क्षुधा तृप्ति की चाहना रखते हैं.!

बिना ज्ञान के

सिर्फ कायकष्ट रूप

क्रिया में लगे है ऐसे लोग

मार्ग के ज्ञान के

अभाव में

पथभ्रष्ट होकर संसार में

दीर्घकाल तक भटकते है..!

जो व्यक्ति

मार्ग जानता है

वह भी बिना चले

गंतव्य तक नहीं पहुंच सकता..

मार्ग जाने बिना

सिर्फ चलते रहने से भी

मंजिल मिलना असंभव हैं..

🌧️

सार यह है की

|| ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्ष: ||

🕉️श्री अध्यात्म उपनिषद्📘

🌷

*तत्त्वचिंतन:*

*मार्गस्थ कृपानिधि*

*सूरि जयन्तसेन चरण रज*

मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.

*🦚श्रुतार्थ वर्षावास 2024🦚*

श्रीमुनिसुव्रतस्वामी नवग्रह जैनसंघ

@ कोंडीतोप, चेन्नई महानगर

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