*🌧️विंशत्यधिकं शतम्*
*📚📚📚श्रुतप्रसादम्🌧️*
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जो मार्गानुसारी क्रिया का
निषेध, अपलाप, त्याग करके
मात्र ज्ञान का अहंकार करते हैं
वह ज्ञान एवं क्रिया
दोनों से भ्रष्ट नास्तिक है..!
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ज्ञान एवं
क्रिया उभय का
आलंबन करनेवाला,
विनय बहुमान करनेवाला
साधक भावविशुद्ध बनकर
शीघ्र ही मोक्ष प्राप्ति करता हैं..!
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भूमिका अनुसार,
ज्ञान सहित धर्मप्रवृत्ति ही
सन्मार्ग को प्रशस्त करती हैं.!
💫
बिना क्रिया के
सिर्फ शुष्कज्ञान से
जो मोक्ष की खोखली
बातें करते है वह
अन्न ग्रहण किये बिना ही
क्षुधा तृप्ति की चाहना रखते हैं.!
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बिना ज्ञान के
सिर्फ कायकष्ट रूप
क्रिया में लगे है ऐसे लोग
मार्ग के ज्ञान के
अभाव में
पथभ्रष्ट होकर संसार में
दीर्घकाल तक भटकते है..!
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जो व्यक्ति
मार्ग जानता है
वह भी बिना चले
गंतव्य तक नहीं पहुंच सकता..
⚪
मार्ग जाने बिना
सिर्फ चलते रहने से भी
मंजिल मिलना असंभव हैं..
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सार यह है की
|| ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्ष: ||
🕉️श्री अध्यात्म उपनिषद्📘
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*तत्त्वचिंतन:*
*मार्गस्थ कृपानिधि*
*सूरि जयन्तसेन चरण रज*
मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.
*🦚श्रुतार्थ वर्षावास 2024🦚*
श्रीमुनिसुव्रतस्वामी नवग्रह जैनसंघ
@ कोंडीतोप, चेन्नई महानगर