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‘जैन धर्म के ज्ञान को फैलाएं अन्यथा यह लुप्त हो जाएगा’

‘जैन धर्म के ज्ञान को फैलाएं अन्यथा यह लुप्त हो जाएगा’

एएमकेएम में डाॅ. नरेन्द्र भंडारी का संबोधन

एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासार्थ विराजित युवाचार्यश्री महेंद्र ऋषिजी के सान्निध्य में शनिवार को हुई धर्मसभा में चंद्रयान मिशन के सहयोगी वैज्ञानिक डॉ. नरेन्द्र भंडारी का आगमन हुआ। उन्होंने जैन धर्म के गौरवशाली इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि कई कारण हैं कि हम साधु- संतों के सामने नतमस्तक होते हैं। इनमें संयम, जप-तप, मार्गदर्शन आदि है। एक विशेष कारण यह है कि जो ज्ञान महावीर स्वामी ने दिया, उसे पहले गणधरों, फिर आचार्यों ने हम तक पहुंचाया।‌

डॉ. भंडारी ने कहा कि जैन धर्म का इतिहास विलक्षण रहा है। यह पूरे विश्व में फैला हुआ था। अध्ययन से पता चला कि साऊथ अमरीका, अफ्रीका के उत्तर क्षेत्र में भरत चक्रवती का साम्राज्य रहा है। उन देशों में जैन धर्म का अस्तित्व था। कुछ समय पहले ग्रीस में जैन दर्शन के अवशेष मिले। लेकिन धीरे-धीरे यह गौरवमयी इतिहास क्षीण होता जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि उस समय जैन धर्म उच्च शिखर पर था। पूरा विश्व जैन धर्म से प्रभावित था। श्रग्वेद में यज्ञ, अग्निकाल, प्रकृति की बात करते हैं। उपनिषद में आत्मा की बात करते हैं। उन पर अवश्य ही जैन धर्म का प्रभाव रहा है। बुद्ध और जैन धर्म तीर्थंकर महावीर के समय शिखर पर थे। बौद्ध धर्म जैन धर्म का मिश्रित धर्म है। सभी धर्म एक दूसरे से रिलेटेड ही थे।

उन्होंने कहा कि जैन धर्म में ज्ञान का अति महत्व है। सब धर्मों में जैन धर्म का अनुसरण ही है। हमने धर्म को जन्म से संबंधित तक सीमित कर दिया है, ऐसा नहीं है। महावीर ने सब धर्मों को समान माना है। आत्मा के अस्तित्व का संदेश उन्होंने ज्ञान द्वारा दिया था।

उन्होंने कहा यह शताब्दी जैन दर्शन की शताब्दी हो सकती है। हमें इसके लिए हमें ज्ञान को प्रमुखता देनी होगी। अहिंसा तो उसी का हिस्सा है। उन्होंने कहा आज जैनों की संख्या चिंताजनक है। अगले 40 साल बाद जैनों की संख्या घटकर मात्र एक लाख रह जाएगी। हमारे सिद्धांत, जिनवाणी, जिनके विकास करने में हजारों लाखों साल लगे, वह लुप्त हो जाएंगे। महावीर स्वामी ने पुरुषार्थ को महत्व दिया। उन्होंने कहा था भगवान है ही नहीं, तुम भी भगवान बन सकते हो। उस समय उन्होंने बड़े साहस के साथ यह बात बताई। आज समाज में सहाष्णुता नहीं है। पर्यावरण की चिंता सारे विश्व को हो रही है। परिग्रह का महत्व बहुत है लेकिन उसका प्रचार प्रसार नहीं हो रहा है।

उन्होंने कहा बौद्ध धर्म आज विश्व का छठवां बड़ा धर्म है। जैन धर्म 20वें स्थान में भी नहीं आता है। इसके लिए समाज को ज्ञान की तरफ आगे बढ़ना होगा। जैन धर्म में 5 ज्ञान है। सारी दुनिया श्रुतज्ञान की ओर है। हम बाकी 4 ज्ञान की ओर ध्यान नहीं देते। उन्होंने कहा जैन धर्म को तार्किक रूप से प्रस्तुत करना होगा। अगर ज्ञान है तो विज्ञान को भी अनुसंधान के लिए बता सकते हैं परन्तु हम इसे आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं। अगर जिनवाणी में इतना बल है तो विश्व के सारे वैज्ञानिक यहां आने चाहिए लेकिन इसके विपरित हो रहा है। हम उनके पीछे जा रहे हैं। हमें जैन धर्म को आगे बढ़ाना है।

आज हम आगमों से तत्त्वार्थ निकालकर भावार्थ के साथ रख रहे हैं। विज्ञान हमारे सिद्धांत खोज रहा है लेकिन विडंबना है कि हम नहीं खोज पा रहे हैं। मथुरा में जैन दर्शन के पहली सदी से 12वीं सदी तक के अवशेष हैं। आज तक जैन धर्म के मंदिरों में काफी हेरफेर हुई है। चीन एवं मंगोलिया में भी जैन धर्म था। वहां लकड़ी की मूर्तियां मिली। पिछले कुछ सालों से जापान में काफी लोग जैन धर्म के अनुयायी बन रहे हैं लेकिन अमरीका में जैन धर्म के लोग बौद्ध धर्म की ओर विमुख हो रहे हैं।‌ हमें विश्वस्तरीय जैन केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है। ज्ञान, पुद्गल, जीव की थ्योरी की विज्ञान को आवश्यकता है। वे इनको लेकर संदेह में हैं। जिसका जबाब जैन आगमों में है।जैन धर्म के ज्ञान को फैलाएं अन्यथा यह लुप्त हो जाएगा।

उन्होंने कहा हमारे शरीर की कोशिकाएं मरती रहती है। हमारा शरीर एक तरह का श्मशान है। हम तो भोजन के बिना रह सकते हैं, लेकिन कोशिकाएं नहीं रह सकती है। मरे हुए सेल वे खा जाती है। इस प्रकार का अनुसंधान हम नहीं कर पाएंगे। हमारे धर्म के सिद्धांतों को अपनाकर दूसरे लोग नोबेल पुरस्कार तक ले जाते हैं लेकिन हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। यह उपवास की पद्धति पर जापान के वैज्ञानिक ने नोबल पुरस्कार जिता था, उसी तरह चोविहार पर शौध कर अमेरिका एवं योरोप के तीन वैज्ञानिकों ने नोबल पुरस्कार जिता था। हमें इसे प्रासंगिक बनाना पड़ेगा। विज्ञानिक तरिकों से विश्व के सामने उजागर करने की जरूरत है।

युवाचार्यश्री ने प्रवचन में कहा कि आज के युग में दूसरों के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है। परमात्मा कहते हैं व्यक्ति आकर्षित होकर संदेहपूर्ण विकल्पों में उलझ जाता है। जब संशय में आ जाता है तो कंफ्यूज हो जाता है और मोहनीय आकांक्षा की ओर आकर्षित होता है। यदि बाहरी जुड़ाव है तो संदेह सबसे पहले उभरता है। हमें जैन दर्शन का ज्ञान नहीं होने के कारण धर्माराधना क्या और कैसे करें, यह संदेह उत्पन्न होता है। जैसे तपस्या तो शरीर करता है, फिर आत्मशुद्धि कैसे होती है। मन विपरीत दिशा में चला जाए, उससे पहले परमात्मा की भक्ति में जुड़ो। हमें मोहनीय कर्म से बचना है।

आज प्रवचन में बड़ी संख्या में अट्ठाई के प्रत्याख्यान हुए। महासंघ के महामंत्री धर्मीचंद सिंघवी ने सभा का संचालन किया। डॉ. नरेन्द्र भंडारी का एक विशेष कार्यक्रम जैनोलोजी के प्राध्यापकों, प्रोफैसर एवं बुद्धीजिवीयों के लिए मध्यान्ह में रखा गया है!

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