श्री गुजराती जैन संघ गांधीनगर में चातुर्मास विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार डॉ श्री वरुण मुनि जी म . सा. ने अंतगड सूत्र के माध्यम से अतिमुक्त कुमार के कथानक पर सारगर्भित प्रकाश डाला। जन्म के साथ मृत्यु निश्चित है पर धर्म साधना, संयम,जप तप आराधना करके साधक अपनी मृत्यु को भी महोत्सव बना सकता है। संसार में संयम ही सार है बाकी सब असार है। सब यही रह जाने वाला है। जो साधक धर्म साधना आराधना कर लेते हैं वह इस दुर्लभ मानव जीवन को सफल बना लेते हैं। उन्होंने श्रुताचार्य साहित्य सम्राट वाणीभूषण परम पूज्य गुरुदेव प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी महाराज के महान् संयमी जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उत्तर भारतीय प्रर्वतक श्री अमर मुनि जी महाराज श्रमण संघ के एक दैदीप्यमान ज्योतिपुंज नक्षत्र थे।
बालक अमर ने बचपन में भारत पाकिस्तान को विभाजित होते देखा। श्रद्धानिष्ठ पिता श्री दीवान चंद जी मल्होत्रा और श्रद्धाशील माता श्रीमती बसन्ती देवी जी के साथ क्वेटा से विस्थापित हो भारत आए।
आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज की शरण में आकर उनसे प्रभावित होकर सन 1951 को भादवा सुदी पंचमी के दिन सोनीपत मण्डी हरियाणा में जैन मुनि दीक्षा ग्रहण की। आप राष्ट्र संत उत्तर भारतीय प्रर्वतक परम पूज्य भण्डारी श्री पदमचंद जी म सा के सुशिष्य बने। आपने संयम ग्रहण के साथ ही गंभीर तल स्पर्शी ज्ञानाभ्यास और ध्यानाभ्यास के क्षेत्र में अहर्निश आगे बढ़ते हुए एक अनुशासनप्रिय सुविनीत शिष्य के रुप में ख्याति प्राप्त की। वर्तमान में श्रुताचार्य साहित्य सम्राट वाणी भूषण पूज्य गुरुदेव प्रर्वतक श्री अमर मुनि जी महाराज द्वारा सम्पादित सचित्र जैन आगम श्रृंखला को प्राकृत, हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा में सचित्र आगम प्रकाशन कार्य को आगे बढ़ाने में पूज्य गुरुदेव के प्रिय शिष्य दक्षिण सूर्य डॉ श्री वरुण मुनि जी म सा पूज्य गुरुदेव के इस अमर स्वप्न को पूर्ण करने में समर्पित भाव से संकल्परत है।
जनमानस उन्हें वाणी के जादूगर के रूप में सम्मानित करता था। प्रारंभ में युवा मनीषी मधुर वक्ता श्री रुपेश मुनि जी ने अंतगड सूत्र का वाचन किया। उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी महाराज ने सबको मंगल पाठ प्रदान किया। अनेक श्रद्धालुओं ने विभिन्न तपस्याओ के पच्चक्खाण उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी म सा से ग्रहण किए। संचालन राजेश मेहता ने किया।
आगामी बुधवार को श्रुताचार्य साहित्य सम्राट वाणी भूषण पूज्य गुरुदेव प्रर्वतक श्री अमर मुनि जी महाराज की जन्म एवं दीक्षा जयंती तीन तीन सामायिक साधना के साथ जप तप आराधना के साथ तप त्याग पूर्वक मनायी जायेगी।