माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के नमस्कार सभागार में ठाणं सूत्र के छठे स्थान के पैतालीसवें सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि प्रमाद प्रतिलेखना के छह प्रकार बताएं गये हैं| जैन साधु चर्या में प्रतिलेखन भी एक करणीय कार्य हैं|
प्रतिलेखन का तात्पर्य है निरिक्षण करना, इंस्पेक्शन करना, देखना| अपने कपड़े, अन्य उपकरणों को ध्यान से देखना| देखना का मुख्य उद्देश्य यह है, कि कहीं कोई जीव जन्तु तो नहीं है ना| यदि उनमें जीव जन्तु होता हैं, तो काम में लेने पर हिंसा हो सकती हैं| उस हिंसा से बचने के लिए प्रतिलेखना अपेक्षित हैं| सामान्यतया साधु को दिन में दो बार प्रतिलेखन करना आवश्यक है|
प्रतिलेखना का मुख्य प्रयोजन अहिंसा को निरअतिचार रखना प्रतीत हो रहा हैं|
रोग के मूल को करे उन्मूलित
आचार्य श्री ने प्रतिलेखन को जीवन के साथ जोड़ते हुए कहा कि हमें अपने जीवन को इस प्रकार प्रतिलेखित करे, कि यह पता चले, मेरे जीवन में कोई कमजोरी, गलतियां तो नहीं हैं ना| है तो कैसे उनको निवारीत करू|
आदमी में गलतियां, कमजोरियां, दोष मिल सकते हैं| प्रेक्षा ध्यान का एक मुख्य ध्येय है- अपने से अपने की संप्रेक्षा| जैसे डॉक्टर रोगी में रोग की जड़ को पहले पता करने की कोशिश करता है, उसके लिए सीटी स्कैन, एम आर आई, सोनोग्राफी इत्यादि उपकरणों को काम में लेता हैं|
रोग का मूल पकड़ में आ जाए और मूल को उन्मूलित कर दिया जाए, तो रोग मुक्त आदमी बन सकता हैं|
आचार्य श्री ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि शरीर के रोगों पर ध्यान दिया जाता है, हम आत्मा के, मन के, भावात्मक रोगों पर भी ध्यान दे| लगे कि भीतर में रोग है, हम आत्मा के रोगों को, अपनी कमजोरियों को जान करके, फिर उनको दूर करने के लिए आध्यात्मिक प्रयोग करे, साधना करे, संकल्प करे, तो भीतर की कमजोरियों को भी कम किया जा सकता हैं, मिटाया भी जा सकता हैं|
गलती होने पर करे प्रायश्चित
आचार्य श्री ने आगे कहा कि हम छदमस्त हैं, इंसान हैं, छठे गुणस्थान तक वाले हैं, गलतियां हो सकती हैं| साधु से भी गलती हो सकती हैं, जान या अनजान में अयथार्थ बात निकल सकती है, और भी कोई गलती हो जाए|
गलती होने पर उसका शोधन करने का, प्रायश्चित ग्रहण करने का प्रयास होना चाहिए|
अपनी कमजोरियां हमारी जानकारी में आये और उनको स्वीकार करें कि मैरे में यह कमजोरियां लग रही हैं, तो उन्हें दूर करने का प्रयास होना चाहिए|
सामुदायिक जीवन में हो सेवा की प्रमुखता
आचार्य श्री ने सेवा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि सामुदायिक जीवन में सेवा आवश्यक तत्व होता हैं, सेवा करने वाला मेवा प्राप्त करता हैं| सेवा में प्रकृति कैसी भी हो, पुराने कटू सम्बन्धों को भी गौण कर, प्रमोद भाव से सेवा करनी चाहिए| जीवन का कोई भरोसा नहीं, कभी हमें भी सेवा की जरूरत पड़ सकती हैं|
प्रकृति कैसी भी हो, साधार्मिक है, रूग्ण है, तो सेवा अवश्य करनी चाहिए| ज्ञानी, ध्यानी सबका का महत्व है, लेकिन उससे भी आवश्यकता होने पर सेवा का ज्यादा महत्व होता हैं| शरीर सक्षम है, तो आधी रात को भी सैनिक की तरह, कभी भी, मोर्चा संभालने का प्रयास करना चाहिए| सेवा में उत्साह होना चाहिए|
जीवन रूपी गाड़ी में, सही हो लाइट और ब्रेक
आचार्य श्री ने आगे कहा कि ठोकर लगने पर खून आ सकता हैं, महरम पट्टी करनी चाहिए| ठोकर लगने पर गिर सकते हैं, तो कोई उठाता हैं, संभल जाते हैं, आगे से ध्यान रखते हैं, उसी तरह जीवन में गलती होने पर, ध्यान में आने के बाद, उसका निवारण करना चाहिए और आगे से गलती नहीं हो, उसका पूरा ध्यान देना चाहिए|
हमारी जिन्दगी रूपी खिचड़ी में, गलती रूपी कंकड़ को निकालने का, दूर करने का प्रयास करने से जिन्दगी सुन्दर बन जायेगी, आनन्द मय हो जायेगी|
जीवन को आनन्दमय जीना है, तो यदाकदा जीवन का प्रतिलेखन अवश्य करना चाहिए|
जीवन की गाड़ी में अगर लाइट या ब्रेक ठीक नहीं है, तो खतरनाक हो सकती हैं|
ब्रेक सही होगा तो जिन्दगी में ब्रेक लगा सकते हैं, कि यह काम मुझे नहीं करना| रात में गाड़ी चले तो दुर्घटना हो सकती हैं, हमारे जीवन में लाइट है, तो अंधेरे में भी आराम से चल सकते हैं और सामने से कोई आये तो ब्रेक भी लगा सकते हैं|
केरल के वरिष्ठ अधिवक्ता ने किये दर्शन, पाया पाथेय
उच्चतम न्यायालय, केरल के वरिष्ठ अधिवक्ता (चेयरमैन केरला मेरीटाइम बोर्ड) के श्री वी जे माथैव ने दर्शन सेवा कर, अपने भावों की अभिव्यक्ति दी| साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने कालू यशोविलास का वाचन किया| व्यवस्था समिति अध्यक्ष श्री धरमचन्द लूंकड़ ने साहित्य द्वारा सम्मान किया। व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष श्री अमरचन्द लूंकड़, श्री विजयराज सेठिया, श्री रणजीतमल छल्लाणी ने अपने विचार प्रकट किये| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया|
✍ प्रचार प्रसार विभाग
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति