Share This Post

Featured News / Featured Slider / ज्ञान वाणी

जीवन में सुख और शांति चाहिए तो पारिवारिक रिश्तों को जीने की कला सीखो: साध्वी नूतन प्रभाश्री

जीवन में सुख और शांति चाहिए तो पारिवारिक रिश्तों को जीने की कला सीखो: साध्वी नूतन प्रभाश्री

सांखला निवास पर हुआ जैन साध्वियों का स्वागत, गुरूणी मैया ने कहा अपनी संपत्ति का करो सदुपयोग

Sagevaani.com /शिवपुरी ब्यूरो। चार्तुमास संपन्न होने के बाद बिहार करते हुए जैन साध्वी रमणीक कुंवर जी ठाणा पांच सतियां सांखला परिवार की विनति को स्वीकार करते हुए उनके निवास स्थान पर पहुंची। यहां धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि जीवन को यदि हमें स्वर्ग बनाना है तो पारिवारिक रिश्तों को जीने की कला सीखनी होगी। साध्वी रमणीक कुंवर जी ने इस अवसर पर धमोपदेश देते हुए कहा कि अपनी धन संपत्ति का सदुपयोग करना सबसे बड़ा इन्वेशमेंट हैं। सदुपयोग क्या है? इसे भी उन्होंने स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि अपनी संपत्ति को परोपकार, परमार्थ और मानवता की भलाई के लिए खर्च करो।

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने एक कहानी के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि महाभारत युद्ध के पश्चात हुए नरसंहार से व्यथित होकर युद्धिष्टर ने अपने भाईयों की सलाह से यज्ञ करने का निर्णय लिया ताकि पापों से मुक्ति मिल सके। इसके लिए उन्होंने अपने अन्य चार भाईयों से सलाह की। साध्वी जी ने कहा कि पाण्डवों का एक दूसरे के प्रति प्रेम अनुकरणीय है। बड़े भाई युद्धिष्टर का अपने चार भाईयों के लिए वात्सल्य जबर्दस्त है।

वहीं छोटे भाई बड़े भाई के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। भाई-भाई के बीच किस तरह के रिश्ते होना चाहिए यह हमें पाण्डवों से सीखना होगा। साध्वी जी ने कहा कि यज्ञ संपादित करने के लिए वह दुर्वाषा ऋषि के पास गए तो मुनिश्री ने उनसे कहा कि मैं यज्ञ कराने को तैयार हूं, लेकिन सौ यज्ञों का फल तुम्हें मुझे देना होगा। इससे पांचों भाई चिंतित हो गए और उन्हें समझ नहीं आया कि करें क्या? क्योंकि यदि यज्ञ का फल ऋषि को दे दिया जाए तो उन्हें पापों से मुक्ति कैसे मिलेगी। इस चिंता से उन्होंने अपनी पत्नि द्रोपति को अवगत कराया। द्रोपति नारी शक्ति की प्रतीक है। उन्होंने कहा कि यह चिंता मुझ पर छोड़ दो। इसके बाद द्रोपति ऋषि के पास गई तो उन्होंने वही बात दोहराई जो उन्होंने पाण्डवों से की थी। इस पर द्रोपति ने कहा मैं तैैयार हूं और आपको सौ यज्ञों का फल मिलेगा।

दुर्वासा ऋषि जी ने उनसे कहा कि यह कैसे होगा तो मधुर मुस्कान से द्रोपदी बोली कि मैने आप संतों से ही सीखा है कि गुरू चरणों में एक कदम भी बढ़ाया जाए तो उससे एक यज्ञ का फल मिलता है। जबकि मैं तो आपके पास एक हजार कदम चलकर आई हूं। इसलिए मुझे एक हजार यज्ञों का फल मिलेगा। यदि इसमें से सौ यज्ञों का फल भी हम आपको दे देंगे तो भी हमें नुकसान क्या है? इस कहानी से साध्वी जी ने स्पष्ट किया कि जीवन में संतों का क्या महत्व है। उन्होंने समाजसेवी तेजमल सांखला की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी 51 वीं वैवाहिक वर्षगाठ को यादगार बनाने के लिए गुरूणी मैया के चरण अपनी कोठी पर पड़ बाए हैं। इससे समझा जा सकता है कि संत जीवन, संत के सानिध्य और संत के साथ चलने का महत्व क्या है। प्रारंभ में साध्वी वंदना श्री जी ने मेरी लागी गुरूसंग प्रीत दुनिया क्या जाने भजन का गायन किया।

धर्मसभा में समाजसेवियों और विशिष्ठ हस्तियों का हुआ सम्मान

धर्मसभा में साध्वी रमणीक कुंवर जी ने मंगलम संस्था और इसके सचिव राजेन्द्र मजेजी की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने व्हील चेयर का दान हमें इसलिए किया है ताकि यात्रा में परेशानी न हो। उनकी धर्म भावना और दान भावना अनुकरणीय है। धर्मसभा में भाजपा प्रत्याशी देवेन्द्र जैन, राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त प्रहलाद भारती, अशोक खण्डेलवाल, हरिहर शर्मा आदि भी उपस्थित थे। जिनका सांखला परिवार ने सम्मान किया। समाजसेवी तेजमल सांखला और उनकी धर्मपत्नि श्रीमती रीता सांखला की 51 वीं वर्षगांठ पर जैन समाज ने उन्हें पौधा भेंट कर सम्मानित किया।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar