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जीने की कला का नाम ही जीवन है: साध्वी डॉ चन्द्र प्रभा जी

जीने की कला का नाम ही जीवन है: साध्वी डॉ चन्द्र प्रभा जी

वीरपत्ता की पावन भूमि आमेट के जैन स्थानक मे पर्व पर्युषण के तीसरे दिन साध्वी डॉ चन्द्र प्रभा जी म. सा ने कहा जीवन को कैसे जिया जाएl जीने की कला का नाम ही जीवन है। एक ऐसी कला जिसमें सौंदर्य हो, शांति हो, सत्य हो, शिवत्व हो- कला मनोभावों की मार्मिक अभिव्यक्ति होती है। हम कला को न जीवन से विलग कर सकते है और न उसको जीवन के शाश्वत मूल्यों से निरपेक्ष ही कर सकते हैजीवन बड़ा अमूल्य है।

इसमें संसार का सौंदर्य भरा हुआ है, पर उसका आनंद तभी मिल सकता है जब जीवन जीने की कला को समझें। अध्यात्म जीवन जीने की कला सिखाता है, यह एक दिव्य विधा है। यह मनुष्य को हर दुख, कष्ट, विपत्ति और चिंता से छुटकारा दिलाकर आनंद से सराबोर करता है। भारत भूमि के समृद्ध होने में ही भारतवासियों की भी सुख-शांति है, क्योंकि जिस व्यक्ति के माता-पिता दुखी हों उसका जीवन सुखी कैसे हो सकता है। मां-पिता के आशीर्वाद और उनकी दुआओं से ही जीवन फलता-फूलता है। दुनिया में भारत ही ऐसा देश है, जिसकी संकल्पना माता या मातृभूमि के रूप में की गई।

ऋग्वेद के पृथ्वी सूक्त में भारतवंशियों का आह्वान करते हुए कहा गया है कि इस धरती के साथ हम सबका माता और संतान का संबंध ही हमें एकत्व भाव से जोड़े रखता है। चाहे हम सबका जाति, मत, पंथ, भाषा, खान-पान कुछ भी हो, लेकिन हम भारत माता की संतान हैं। यह अनुभूति ही भारत की मौलिक एकता का सूत्र है।

साध्वी विनीत रूप प्रज्ञा ने अंतगड सूत्र के द्वारा बताया अध्यात्म एक ही सत्य की विविध ऐतिहासिक निष्ठाओं का साक्षात्कार कराता है। अध्यात्म पथ निर्दोष, सहज, सरल पथ है। इसमें धर्म सिद्धांतों, उनकी परिभाषाओं से कोई विवाद नहीं होता, बल्कि मनुष्य ईश्वरीय प्रार्थना, ध्यान के अवलंबन से एक-दूसरे के निकट अनुभूत करते हैं। हमारे यहां लोग अध्यात्म को जीते हैं।

भारत भूमि आध्यात्मिक चेतना का केंद्र मानी गई है। इसीलिए विष्णु पुराण में कहा गया है कि देवता भी इस भारत भूमि के गुण गाते हैं जो भौतिक और आध्यात्मिक सब प्रकार का सुख देने वाले हैं। यहां जन्म लेना बड़े भाग्य की बात है, क्योंकि यहां मनुष्य रूप से जन्म लेकर मोक्ष का मार्ग मिलता है।

साध्वी चन्दन बाला कल्प सूत्र के द्वारा बताया कल्पसूत्र वाचन के तहत महावीर स्वामी का जन्म वाचन किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि परमात्मा के जन्म के समय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा बुध दोनों कभी भी एक साथ उच्च स्थान में नहीं हो सकते, किंतु विश्व के समस्त जीवों के प्रति करुणा के प्रभाव से भगवान के जन्म समय यह चमत्कार होता है कि वेदनीय कर्मों के उदय के प्रभाव से नारकी के जीव को कभी शाता का अनुभव नहीं होता किंतु प्रभु के जन्म के प्रभाव से इन जीवों को क्षणमात्र के लिए परम साता का अनुभव होता है।

शुभ लग्न बेला जब सात ग्रह उच्च स्थान पर जाते है एवं जब सब जीव सुख में मग्न थे और जब समस्त दिशाएं दिग्दाहादि दोषों से रहित होकर निर्मल हुई। मध्यरात्रि के समय उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में चंद्र का योग हुआ तब आरोग्य से युक्त त्रिशला माता ने भगवान महावीर को जन्म दिया।

इस धर्म सभा में नरेंद्र बडोला ने संचालन करते हुए कहा कल परम पूज्य साध्वी डॉ चन्द्र प्रभा जी महाराज का 55 वां जन्मदिन त्याग और तप द्वारा मनाया जाएगाl

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