परमात्मा की भक्ति के साथ शुक्रवार से शुरू होगा महावीर निर्वाण कल्याणक का तेला
Sagevaani.com/रायपुर। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि तप के बिना कोई शुद्ध नहीं होता। परमात्मा कहते हैं कि जिसके करने से पाप समाप्त हो जाए उसे तप कहते हैं। जैसे आग ईंधन को राख कर देती है, वैसे ही अनादिकाल के पाप संस्कारों को जो नष्ट कर दे, वह तप है। लेकिन ऐसा तप जीवन में कैसे संभव हो सकता है? क्या किसी से लेना भी तप हो सकता है? अगर तरीका सही है तो लेना भी तप हो जाता है। इसलिए गोचरी भी तप हो जाती है। तपस्या में देने को नहीं लेने को गिना गया है। तप के क्या सूत्र हैं, क्या साधना है, सुधर्म स्वामी ने उत्तराध्ययन सूत्र के तीसवें अध्याय तवमग्गगई में बताया है। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी है।
लालगंगा पटवा भवन में जारी उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के 17वें दिवस गुरुवार को लाभार्थी परिवार श्रीमती पुष्पादेवी-भीखमचंद कविता-मनोज कोठारी परिवार तथा सहयोगी परिवार श्रीमती पारस-विजय कोचर परिवार ने तिलक लगाकर श्रावकों का स्वागत किया। धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि तप की पहली शर्त है संवर। अपने अंदर आश्रव नहीं होने देना। अगर उपवास किया है तो मन में आहार की इच्छा नहीं जागृत होनी चाहिए। मौन व्रत रखा है तो बोलने की इच्छा का जन्म नहीं होने देना। पहले संवर, बिना इसका तपस्या करने वाले पागल के समान होते हैं। केवल भूखे रहने से तपस्या नहीं होती है, आश्रव का दरवाजा बंद रहना चाहिए। कुछ तपस्या के दो आयाम हैं, दोनों से मिलकर तपस्या बनती है। तपस्या अंदर में भी होना चाहिए और बाहर भी। तपस्या का दिया बाहर भी उजाला देता है और अंदर भी। बाहर का उजाला अनशन, भिक्षाचर्या, रसपरित्याग है। प्रभु ने कहा कि जो सुख देता है वह तप है, जिससे पीड़ा होती है वह हठयोग है। मन दुखी हो जाए हो कष्ट है, तप नहीं। भिक्षाचर्या भी एक तप है। आहार लेना, स्थान, वस्त्र लेना भी एक तप है, अगर श्रद्धापूर्वक ले पाए तो। जिससे आप ले रहे हैं अगर उसके मन में ख़ुशी का झरना बहने लगा जाए तो यह तप है। अगर जिससे आप ले रहे हैं, और देते हुए उसके मन में दर्द हो जाए तो यह भिखारीपन है। कम खाना भी एक तप है, उत्तम तप है। उन्होंने कहा कि यह विडंबना है कि हमने परमात्मा के तप पर रिसर्च नहीं किया। आज जितने डाईटीशन, नेचर क्योर वाले और मेडिकल साइंस में कहा जा रहा है कि 16 घंटे का उपवास कर लो तो दवा लेने की जरुरत नहीं पड़ेगी। परमात्मा ने कहा है बियासना, एकासन करने। एकासन करने से पुराने पाप निकल जाते हैं। परमत्मा ने स्वस्थ रहने के सूत्र दिए हैं।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि धर्म में यह कहा जाता है कि विनय धर्म का मूल है। विनय से धर्म की शुरुआत होती है। लेकिन साधना के मार्ग में विनय से नहीं प्रायश्चित से शुरुआत करते हैं। अगर ध्यान, स्वाध्याय करना है, कायसर्ग करना है, किसी को सेवा-भक्ति करनी है, तो ये सब करने से पहले परमात्मा कहते हैं कि प्रायश्चित करो। बिना प्रायश्चित के भक्ति नहीं कर सकते, विनय नहीं कर सकते, ध्यान नहीं कर सकते। मन ने बोझ लेकर भक्ति, तपस्या नहीं की जा सकती है। प्रायश्चित के कारण सारा बोझ उतर जाता है। जिनशासन में विधान है की आगम का अध्ययन करना मतलब तप करना है। नवकार मन्त्र भी प्रायश्चित के बाद शुरू होता है। पहला तप है प्रायश्चित और इसका पहला सूत्र है कि मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूं, मैं अपराधी हूं। और जो अपने अपराध को कबूल करता है वह प्रायश्चित लेता है। आलोचना भी प्रायश्चित है। बिना प्रायश्चित के परमात्मा के यहां साधना शुरू नहीं होती है। प्रायश्चित के बाद विनय का नंबर आता है, और विनय करने वाला ही भक्ति कर सकता है। जिसके पास विनय नहीं उसके पास भक्ति नहीं। विनय के बाद व्यवत्त फिर स्वाध्याय और उसके बाद ध्यान का नम्बर आता है। इन चारों के बिना आर्तध्यान रौद्रध्यान से मुक्त नहीं हो सकते।
31वें अध्याय के बारे में बताते हुए उपाध्या प्रवर ने कहा कि यह अध्याय ‘चरण’ छोटा लेकिन महत्वपूर्ण अध्याय है। चाहे साधना की राह पर चलना हो, या बाहर की धरती पर, चलने के लिए चरण जरुरी है। आप जब चलते हैं तो दोनों पैर साथ में नहीं चलते, एक टिकता है तो दूसरा उठता है। वैसे ही जीवन में दो चरण प्रवृत्ति और निवृत्ति है। एक से जुड़ना है और एक से मुक्त होना है। किसमे प्रवृत्ति करनी और किसमें निवृत्ति, इन दोनों का संयोग बनाना चाहिए। इस अध्याय में प्रभु जीवन में चलने की कला बताते हैं। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि सीमा लांघने के लिए कभी कदम न बढ़ाएं, सीमा में रहने में पुरुषार्थ करें। संयम में रहने के लिए पुरुषार्थ लगता है।
आज के लाभार्थी परिवार :
रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि 10 नवंबर के लाभार्थी परिवार हैं गुलाबचंद मयंककुमार मालू परिवार, पन्नालाल श्रीश्रीमाल परिवार, राजेंद्र सुनील डॉ. अनिल श्रीश्रीमाल परिवार, महावीरचंद पदमचंद कांकरिया परिवार (चेन्नई)। श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के लाभार्थी बनने के लिए आप रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा से संपर्क कर सकते हैं।
10 नवंबर से शुरू होगा महावीर निर्वाण कल्याणक का तेला
ललित पटवा ने बताया कि प्रभु महावीर की भक्ति के साथ 10 नवंबर से महावीर निर्वाण कल्याणक का तेला शुरू हो रहा है। कल से दोपहर 3 से 4 बजे तक सुधर्मस्वामी, इंद्रभूति गौतम और भगवान् महावीर की भक्ति चलेगी। 11 नवंबर से परमात्मा के समोशरण की आराधना शुरू होगी। वहीं उपाध्याय प्रवर ने सकल जैन समाज को अपने-अपने घरों में चरम और परम समोशरण की साधना शुरू करने का आग्रह किया है। यह साधना 11 नवंबर की सुबह 5 बजे से शुरू करनी है। अपने घर में भावपूर्वक राजा पुण्यपाल की सभा के समोशरण का निर्माण करना है। 48 घंटे के समोशरण का कार्यक्रम सभी के घरों में शुरू होगा। 13 नवंबर को सुबह 5 बजे से लालगंगा पटवा भवन में महावीर निर्वाण कल्याणक की आराधना शुरू होगी। निर्वाण कल्याणक की आराधना के लिए सकल जैन समाज को आमंत्रण है।