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जिनशासन के दैदीप्यमान नक्षत्र थे आचार्य श्री जयमल जी महाराज- डॉ श्री वरुण मुनि जी

जिनशासन के दैदीप्यमान नक्षत्र थे आचार्य श्री जयमल जी महाराज- डॉ श्री वरुण मुनि जी

श्री गुजराती जैन संघ गांधीनगर में चातुर्मास विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार डॉ श्री वरुण मुनि जी म सा ने रविवार को धर्म सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को महान आचार्य श्री जयमल जी महाराज की 338 वीं जन्म जयंती पर उनके महान संयमी विराट व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर सारगर्भित प्रकाश डालते हुए कहा कि

आचार्य श्री जयमल जी महाराज जिनशासन के एक दैदीप्यमान नक्षत्र थे। उन्होंने अपने ज्ञान, साधना,तप, संयम साधना के बल पर भगवान महावीर के धर्म शासन की महती प्रभावना की। उन्होंने तप साधना को कर्म निर्जरा का माध्यम मानते हुए अपने संयमी जीवन में अनेक प्रकार की विशिष्ट तप साधना करते हुए अपनी आत्मा को भावित करते हुए आम जनमानस में भी तप साधना का महत्व समझाया। झोपड़ी से लेकर महलों तक उनकी पहुंच थी।

आप संगठन विकास, जिनशासन प्रभावक, दीन असहायों के सहायक, महान तप साधक एवं जन कल्याण के मार्ग पर चलने के लिए सबको प्रेरित किया। आप मानवता के मसीहा थे। उन्होंने जैन धर्म के अहिंसा ध्वज को संपूर्ण भारत वर्ष के कोने कोने में फहराया।मुनि श्री ने आगे कहा कि आचार्य श्री जयमल जी म सा प्रभावशाली बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी युगपुरुष महान ज्ञानी ध्यानी, संयम, तप साधना, ऊर्जा से ओतप्रोत महापुरुष संत शिरोमणि रत्न थे।

अपने दिव्य गुणों की सौरभ से वे जन जन की आस्था केन्द्र बनें। उन्होंने भगवान महावीर के अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांतवाद आदि जैन धर्म के मूल सिद्धांतों को आपने जन जन तक पहूंचाया।उन्होंने अपने आत्म कल्याण के साथ मानव कल्याण के साथ जगत के प्राणी मात्र के कल्याण के लिए पूरे भारतवर्ष में प्रचार प्रसार किया।आपका दृष्टिकोण व्यापक और उदार था।

उन्होंने संयम स्वीकार करने के लिए मात्र एक प्रहर में प्रतिक्रमण सूत्र साधना खड़े खड़े रह कर कंठस्थ कर ली थी। आप अनेक दिव्य और महान् गुणों के गुलदस्ता थे।प्रारंभ में युवा मनीषी मधुर वक्ता श्री रुपेश मुनि जी ने गुरु भक्ति गीत प्रस्तुत किया। उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी म सा ने सबको मंगल पाठ प्रदान किया। इस अवसर पर समाज के अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

कार्यक्रम का संचालन राजेश मेहता ने किया।

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