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जिनवाणी के आचरण से मानव की पहचान होती है: तप चक्रेश्वरी अरुण प्रभा जी मसा

जिनवाणी के आचरण से मानव की पहचान होती है: तप चक्रेश्वरी अरुण प्रभा जी मसा

जिनवाणी के आचरण से मानव की पहचान होती है । टन भर सुनकर कण भर भी यदि आत्मसात कर लिया तो हमारी आत्मा का उत्थान हो सकता है। राजा श्रेणिक के समय राजगृही मगध की राजधानी थी। बाद में चम्पानगरी मगध की राजधानी बनी। भगवान महावीर स्वामी एक बार चंपानगरी में पधारे। वँहा पर चंपक उद्यान में ठहरे। राजा कोणिक और उसकी सारी परिषद भगवान के दर्शन करने गई एंव जिनवाणी का श्रवण किया । भगवान महावीर स्वामी का पहला शिष्य गौशालक था, लेकिन उस वक्त भगवान छद्मस्थ अवस्था में थे, तीर्थंकर संयम ग्रहण करने के बाद मौन धारण कर लेते है। केवल ज्ञान की प्राप्ति तक कारण विशेष होने पर ही वो बोलते है । केवल ज्ञान के बाद प्रथम शिष्य गौतम स्वामी हुए। चार हजार शिष्य एंव 36000 शिष्याओं में श्रेष्ठ बेस्ट एंव आज्ञाकारी गौतम स्वामी प्रभु के प्रथम शिष्य थे।

गौतम स्वामी हमेशा तपस्या में रत रहते थे और बेले बेले तपस्या करते थे। अनेक लब्धियों को उन्होंने प्राप्त कर लिया था। चम्पानगरी के चंपक उद्यान में गौतम स्वामी को बेले का पारणा था, उन्होंने भगवान को नमस्कार किया और कहा है तिन्नानम तारयणम आज मेरे बेले का पारणा है आपकी आज्ञा हो तो में नगरी में ऊंच नीच मध्यम घरों में पारणे के लिये जाऊँ। इस प्रकार गौतमस्वामी आज्ञा लेकर चम्पानगरी में गोचरी के लिये जाते है। एक मोहल्ले में गाजे बाजे की आवाज आ रही थी नगर के लोग लाइन लगाकर एक वृद्ध सेठजी को बधाईयाँ दे रहे थे, बड़ी उम्र में सेठानी ने बच्चे को जन्म दिया था, कुल में दीपक प्रज्वलित हुआ लोग उसकी बधाइयां दे रहे थे। यह दृश्य गौतमस्वामी न देखा। दूसरे मोहल्ले में गए वँहा देखते है की एक पुत्र अपने वृद्ध पिता को धक्के मारकर घर से निकाल रहा है वो अपने पिता को पीट रहा है। वृद्ध रुदन करते हुए बोल रहा है मैं कँहा जाऊँगा मेरे हाथ पैर काम नही करते है, तू मुझे घर से मत निकाल। वँहा भी आस पास बहुत से व्यक्ति थे जो बोल रहे थे ये पुत्र नही कुपुत्र है जो अपने पिता को नारकीय यातना दे रहा है।

गौतमस्वामी गोचरी लेकर चम्पक उद्यान में पँहुचे। गोचरी भगवान को दिखाई और पारणा करने से पहले भगवान को वो दोनों बातें बताई और कहा की इस जग में कोई बेटे की वजह से हँसता है और कोई रोता है। भगवान इस संसार में पुत्र कितने प्रकार के होते है। भगवान ने फरमाया की पुत्र चार प्रकार के होते है। भगवान ने चार प्रकार के पुत्र कौन कौन से बताए ये आगे समय आने पर प्रवचन में बताया जाएगा।  शतावधनी पूज्याश्री गुरु कीर्ति ने मेरे महावीर को जानो विषय को आगे बढाते हुए फरमाया की द्रौपती ने दुर्योधन का मजाक उड़ाया तो महाभारत युद्ध हो गया। चुभते हुए मजाक से रिश्ते खत्म हो सकते है । जब गाय के धक्के से विश्वभूति गिर गया तो विशाखानन्दी ने मजाक उड़ा दी और कहा की कँहा गया तेरा वो बल जो एक लात में शक्तिशाली पेड़ को गिरा देता था।

विश्वभूति के मन में विशाखानन्दी के प्रति क्रोध की अग्नि ठंडी नही हुई थी चिंगारी मन में दबी हुई थी, जो यह निमित्त मिलते ही भड़क गई। विश्वभूति ने कहा तू यँहा भी आ गया तेरे कारण मेने उद्यान छोड़ा, राजमहल छोड़ा, परिवार छोड़ा, संयम ग्रहण किया लेकिन तू यँहा भी मेरा पीछा नही छोड़ रहा है । और अब तू मेरी शक्ति का उपहास उड़ा रहा है । तुझे मेरी शक्ति देखना है तो देख मेरे संयम की शक्ति तप की शक्ति, विश्वभूति ने एक हाथ से उस गाय के दोनों सिंग को पकड़कर उठाया और बहुत तेजी से घुमाया और विशाखानन्दी की और फेंक दिया । वो डर के मारे अपने कमरे में भाग गया और वो गाय बहुत ऊँचाई से ऊपर से नीचे गिर गई और वंही पर उस गाय के प्राण पखेरू उड़ गए ।

विश्वभूति वँहा से बिना पारणा करे ही वापस चला गया, और अपने स्थान पर जाकर प्रभु से प्रार्थना करता है की मैं इस भव में विशाखानन्दी को मार नही पाया यदि मेरे संयम और तप का फल देना है तो ऐसा फल देना की में अगले जन्म में विशाखानन्दी को मार सकू। इस प्रकार विश्वभूति ने अंतिम समय में न अपने पापों की आलोचना की, न पश्चाताप किया, न प्रत्याख्यान लिए और उसके प्राण पखेरू भी उड़ गए । मरिची के भव में भी उसने आत्म आलोचना नही की थी इस भव में भी यही गलती दोहराई। उधर विशाखानन्दी के मन में गाय का भय बैठ गया वो बीमार हो गया, बहुत उपचार किया लेकिन वो ठीक नही हुआ, एक योगी ने उपाय बताया की जिसने तेरे ऊपर गाय फेकी है उससे जाकर क्षमा मांग ले, विशाखानन्दी को यह बात स्वीकार नही थी, दूसरा उपाय बताया की तू खूब दान पुण्य कर असहायों की सेवा कर इससे तेरा रोग दूर हो जाएगा ।

विशाखानन्दी ने दीन दुखियों की बहुत सेवा की लेकिन उसके मन में विश्वभूति के हाथों मरने का भय बैठा रहता था। और इस प्रकार अंत में वो भी कालधर्म को प्राप्त हुआ। विश्वभूति के मन में विशाखानन्दी को मारने का प्रण और विशाखानन्दी के मन में विश्वभूति के हाथों मरने का भय लेकर कालधर्म को प्राप्त हुए। अब अगले भव में दोनों का एक दूसरे से सामना कैसे होगा ये अगले प्रवचन में सुनने पर पता चलेगा। आप सुनते रहिए पढ़ते रहिए।

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