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जहां विरह का दुख होता है वहां मिलन की उत्कंठा रहती है: आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर

जहां विरह का दुख होता है वहां मिलन की उत्कंठा रहती है: आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर

किलपाॅक में विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने कहा जहां विरह का दुख होता है वहां मिलन की उत्कंठा रहती है। साधक के हृदय में परमात्मा का विरह, वियोग का दुख होना चाहिए। जब तक विरह का दुख नहीं है परमात्मा की भक्ति में अन्तर से हर्ष और आनंद की अनुभूति पैदा नहीं होगी।

आनन्दघनजी महाराज ने परमात्मा से मिलने का मार्ग यही बताया कि परमात्मा से मिलने की उत्कंठा कितनी है। हमें कब परमात्मा मिलेंगे, कब मैं उनके दर्शन करुं व कौनसे मार्ग से चलूं यह भाव पैदा करने चाहिए।

परमात्मा के दर्शन करने के लिए दिव्य चक्षु चाहिए, दो चर्म चक्षु से परमात्मा के दर्शन नहीं हो सकते। आज हमारे अन्तर के चक्षु बन्द है, न परमात्मा को देख सकते हैं न ही उनसे मिलने का मार्ग दिखाई देता है।

आचार्य ने जम्बू स्वामी के जीवन चारित्र पर बताया कि जम्बू कुमार बैरागी बन चुके हैं। उनमें वैराग्य के भाव अंकुरित हो चुके हैं लेकिन आठ श्रेष्ठिकन्याएं, जिनका विवाह जम्बू कुमार से हो चुका है, वे बैरागी नहीं है फिर भी उन्होंने निश्चय किया कि हम पति को रागी बनाएंगी, नहीं तो हम भी बैरागी बनकर स्वामी के मार्ग का अनुसरण करेंगी। जम्बू कुमार प्रभव चोर को संबोधित करते हुए उससे कहते हैं संसार में विषय भोग व कषायों के सिवा कुछ नहीं है।
आचार्य ने कहा संसार में हम भी पागल बन गए हैं, अनादि काल से दुखों को गले लगाए हुए हैं। आज संसार में जहां देखो, वहां भय व्याप्त है। हम संसार में इतने तल्लीन हो गए हैं कि पूरे संसार का स्वरूप ही भूल गए हैं।
एक मुसाफिर का दृष्टांत देते हुए आचार्य ने कहा एक मुसाफिर मृत्यु रुपी हाथी से अपनी जान बचाने के लिए भागकर एक पेड़ की शाखा पर चढ गया लेकिन उसने देखा, पेड़ के नीचे एक कुंआ है जिसमें राग व द्वेष रुपी दो अजगर फन फैलाए खड़े हैं। कुंए की बाहरी सतह पर क्रोध, मान, माया, लोभ रुपी चार अजगर खड़े हैं, पेड़ की टहनी को दो चुहे रुपी काल के सूचक कुतर रहे हैं।
पेड़ पर मधुमक्खी रुपी दुख का छत्ता है जिसमें से मुसाफिर के मुंह में शहद टपक रहा है और वह उस क्षणिक सुख में आनंदमग्न है। जम्बू कुमार ने प्रभव को बताया कि संसार में इतने दुख होते हुए भी हम खुशी महसूस करते हैं। सुधर्मा स्वामी मेरा हाथ पकड़ने के लिए तैयार है। मुझे दुर्गति में नहीं जाना है तो इसमें मेरी क्या गलती है।
प्रभव को उनके तर्क का कोई जबाब नहीं मिला। प्रभव ने पूछा आप परिवार व माता पिता का प्रेम ठुकरा कर जा रहे हैं यह बात मैं समझ नहीं पा रहा हूं। कुमार ने कहा स्वजनों का प्रेम स्वार्थ से भरा पड़ा है। जब तक स्वार्थ रहता है तब तक ही रिश्ते रहते हैं, वे स्थायी नहीं होते हैं।

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