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जहां अभिमान, वहां भगवान नहीं: डॉ. वरुण मुनि

जहां अभिमान, वहां भगवान नहीं: डॉ. वरुण मुनि

चेन्नई. अक्सर जीवन की सीढिय़ां चढ़ते हुए अधिकतर लोगों को अभिमान आ जाता है। परंतु महापुरुष फरमाते हैं कि – अहंकार जीवन का बहुत बड़ा विकार है। क्योंकि जहां अभिमान होता है-वहां भगवान नहीं आते। यह विचार – ओजस्वी प्रवचनकार युवा मनीषी डॉ. वरुण मुनि ने साहुकारपेट के जैन भवन में प्रवचन करते हुए व्यक्त किए। गत दिवस की प्रवचन श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा अहंकार को जीतने के लिए प्रभु महावीर ने उपाय बताया है- मार्दव भाव की साधना। मार्दव यानि विनम्रता का भाव। फलदार वृक्षों पर जैसे- जैसे फल लगते हैं वे झुकते चले जाते हैं, ऐसे ही जो खानदानी व्यक्ति होते हैं, वे भी ज्यों-ज्यों उनका धन, मान-सम्मान, पद प्रतिष्ठा बढ़ती है, त्यों-त्यों विनम्र बनते चले जाते हैं। दूसरी ओर सूखा हुआ ठूंठ टूटने को टूट जाता है परंतु झुकता नहीं। ऐसे ही अभिमानी व्यक्ति की भी सेम सिचुएशन होती है।

गुरुदेव ने बताया आज के समय में हर व्यक्ति लोकप्रिय बनना चाहता है। उसका सरल सा उपाय है-विनयवान बनना। जैन परंपरा के महामंत्र नवकार में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु तो एक बार ही आए हैं परंतु णमो (नमो) पांच बार आया है और वह भी मंत्र के प्रारंभ में अर्थात यदि आप नम्र बनेंगे तो एक दिन आप पंच परमेष्ठी के पांचों पद प्राप्त करने के अधिकारी बन सकते हैं। पंजाब परंपरा के महान जैनाचार्य हुए हैं श्री कांशी राम जी म.उनका संदेश मुख्य रूप से तीन बातों पर आधारित रहा-कम खाओ, गम खाओ और नम जाओ। जो व्यक्ति भूख से कम खाता है, वह जल्दी बिमार नहीं पड़ता। जो गम खाता है यानि घर परिवार व समाज में सहशीलता रखता है वह सबका आदरणीय बन जाता है और जो नम जाता है यानि झुक जाता है। वह सबका प्रिय बन जाता है। प्रवचन सभा में बहन सुनीता खारीवाल ने 7 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। उप प्रवर्तक पंकज मुनि के मंगलपाठ द्वारा धर्मसभा का समापन हुआ।

धर्म का मूल है विनय: पंकज मुनि

चेन्नई. विनयवान व्यक्ति को वृहत् कल्प भाष्य में हंस की उपमा से उपमित किया गया है। जैसे हंस की चोंच में ये तासीर होती है कि वह पानी को छोड़ देता है और दूध को ग्रहण कर लेता है ऐसे ही विनम्र व्यक्ति दूसरों के दोषों को नहीं देखता अपितु गुण ग्रहण कर लेता है तथा अपने जीवन को महान बना लेता है। यह विचार – प्रवचन दिवाकर डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में प्रवचन करते हुए व्यक्त किए। श्री सुधर्मा दरबार में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा घर-परिवार में भी जो बेटा-बहू विनम्र हों उन्हें ज्यादा मां-बाप से प्यार और आशीर्वाद मिलता है, अध्यात्म साधना के क्षेत्र में भी जो साधक विनयवान होता है, गुरु कृपा के साथ-साथ उसे अध्यात्म के रहस्य भी प्राप्त हो जाते हैं। हमारे आचार्यों ने विनय को धर्म का मूल बताया है। यदि वृक्ष का मूल ठीक हो तो वह फलता-फूलता जाता है। ऐसे ही जिस जीवन में विनय का गुण होता है तो बाकी सद्गुण स्वत: ही आ जाते हैं।

आचार्यों ने ज्ञान विनय, दर्शन विनय, चारित्र विनय मन विनय, वचन विनय, काय विनय और लोकोपचार विनय यह प्रमुख रूप से सात भेद बताए हैं। व्यक्ति कभी स्वार्थ के लिए, कभी कामना पूर्ति के लिए, कभी भय के कारण तो विनय करता ही रहता है। परंतु साधना के क्षेत्र में जो धर्म अथवा मोक्ष प्राप्ति के लिए विनय की जाए, सही अर्थों वो ही सच्ची विनय कहलाती है।

संघ के अध्यक्ष संपतराज सिंघवी ने बताया कि गुरुदेव की सद्प्रेरणा से घर-घर में प्रतिदिन 5-5 घंटे का नवकार महामंत्र का जाप ही सुंदर ढंग से गतिमान है। बड़ी संख्या में भाई- बहनें उस जाप लाभ ले रहे हैं। प्रतिदिन प्रात: 6.15 से 7.15 बजे तक प्रार्थना सभा, 9.15 से 10.15 बजे तक प्रवचन सभा, दोपहर 2.31 से 3.31 तक आगम स्वाध्याय तथा सायं प्रतिक्रमण की आराधना भी सुंदर रूप से आयोजित की जा रही है। जैन समाज के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. दिलीप धींग को गुरु भगवंत ने सूत्र कृतांग सूत्र भेंट कर आशीर्वाद प्रदान किया।

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