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जब तक दूसरों पर ऊँगली उठाओगे, खुद को नहीं सुधार पाओगे : प्रवीण ऋषि

जब तक दूसरों पर ऊँगली उठाओगे, खुद को नहीं सुधार पाओगे : प्रवीण ऋषि

पर्युषण महापर्व के आठवें दिन उपाध्याय प्रवर ने कराई आलोचना

Sagevaani.com @रायपुर। पर्युषण सम्वत्सरी की आराधना के लिए लालगंगा पटवा भवन में जुटे श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि अंतगड़ सूत्र की आराधना संपन्न हो रही है। आज का दिन स्वयं को समर्पित करने के लिए है। उन्होंने कहा कि साल के 365 दिनों में एक दिन आपको अपने लिए निकालना चाहिए। कोई दूसरे आपके लिए धर्म नहीं करता, आपको स्वयं करना पड़ता है। संसार का कोई काम आपकी वजह से नहीं रुकता है, लेकिन धर्म आप स्वयं करेंगे तो ही होगा, अन्यथा नहीं होगा। आपके लिए खाना दूसरा बना सकता है, मकान दूसरा बना सकता है, लेकिन आपके लिए सामायिक दूसरा व्यक्ति नहीं बन सकता है। सम्वत्सरी पर्व मन में इस शक्ति को जागृत करने के लिए है कि जीवन में एक काम है जो मेरे बिना संभव नहीं है। जो भी आप करेंगे एक दिन उसे छोड़ना ही पड़ेगा, तीर्थंकर को भी समोशरण छोड़कर जाना हो पड़ता है। अपने सुख दुःख की अनुभूति आप कर सकते हो। आगम परंपरा कहती है की साधना स्वयं करनी पड़ती है। धर्म आपको लेना होता है, धर्म दिया नहीं जाता है। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

मंगलवार को पर्युषण महापर्व पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि प्रभु महावीर को धन्यवाद दो की आपको जिशासन में जन्म मिला। आपके नर्क गति में जाने वाले चार रास्ते आपके जन्म से ही बंद हो गए। आप संयम में हो, इसका मतलब आपने जैन कुल में जन्म लिया है। जिनशासन संयम के साथ त्यौहार मनाता है। और दुनिया को आज जैन त्यौहार की आवश्यकता है। पर्युषण अपनी गलती स्वीकार करने का पर्व है। स्वयं की जिम्मेदारी तय करने का पर्व है। हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी स्वीकार कर ले कि यह मेरी गलती है। पर्युषण दूसरों पर ऊँगली उठाने का नहीं, खुद को देखना का पर्व है। जब तक आप दूसरों को जिम्मेदार ठहराओगे, खुद को नहीं सुधार पाओगे। जिनशासन कहता है कि तेरे भाव बिगड़े, तो तेरा काम बिगाड़ा। अपने भाव को निर्मल करने का पर्व है पर्युषण।

क्या है आलोचना, क्यों करते हैं आलोचना?

उपाध्याय प्रवर ने आगे कहा कि आलोचना से जीव को क्या अनुभूति होती है? कब समझें कि आलोचना हुई है? जैस आपको बुखार चढ़ता है, और आप दवाई खाते हैं। अगर बुखार नहीं उतरता है तो इसका मतलब दवाई नकली है। वैसे ही आलोचना का पहला परिणाम कि मोक्ष मार्ग के जो शल्य हैं, जो कांटे हैं वो निकल जाएं तो आपकी आलोचना सफल हुई। ये जो कांटें हैं, ये आत्मा को चुभते हैं। पहले कांटा है धूर्तता। दूसरा है मिथ्या दर्शन, ग़लतफ़हमी। और तीसरा सबसे भयंकर काँटा है ‘कर सकते हो, लकिन कर नहीं पाते हो’। ये तीनो शल्य जिससे निकल जाएं उसे आलोचना कहते हैं। आलोचना के बाद व्यक्ति लाचार नहीं होता है। आलोचना के बिना साधना पूरी नहीं होती है।

आलोचना है स्वयं के मन वचन काया की। जो स्वयं में साथ हमने 18 पाप, 4 कषाय की वर्षा करते है। स्वयं को ही साक्ष्य रखकर जाने-अनजाने में प्रमादवश जो स्वयं के जीवन में जो जो घटित हुए है, उसे देखें, स्वीकार करें, उससे मुक्त होने का भाव बनाएं। ये आलोचना का क्रम है। क्षमापना होती है, मैंने किसी जीवित प्राणी के साथ जहां मैंने दुश्मनी की, वैर बंधा, किसी के लिए समस्या बनाई, उसके कारण रिश्तों में जो जहर बना, उसे निकालने के लिए क्षमा का अमृत बहाने के लिए जो की जाती है, उसे क्षमापना कहते हैं। जो स्वयं की शुद्धि के लिए की जाती है वह आलोचना है, दूसरों के साथ के रिश्तों को पवित्र बनाने के लिए जो की जाती है वो क्षमापना है। आलोचना से अधिक अनिवार्य है क्षमापना।

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि आज धर्मसभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने सम्वत्सरी संबंधी आलोचना कराई।

आलोचना के बाद ललित पटवा ने नवकार कलश अनुष्ठान के बारे में बताते हुए कहा कि जब नवकार कलश की शक्तिपीठ घर में विराजमान होती है तो नवकार मंत्र का जाप परिवार को महान बना देता है। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि के सानिध्य में 1 अक्टूबर से 1008 नवकार तीर्थ कलश अनुष्ठान शुरू हो रहा है, जिसमे 1 अक्टूबर को 24 घंटे का अखंड नवकार जाप होगा। इसके बाद 2 अक्टूबर को प्रातः 7.30 से 9 बजे तक अनुष्ठान चलेगा। आगे उन्होंने बताया कि 22 सितंबर से 9 दिन का एकसन अनुष्ठान शुरू हो रहा है। क्षमा याचना बुधवार प्रातः उपाध्याय प्रवर की उपस्थिति में होगी। सुबह 6. 30 बजे प्रार्थना के बाद सामूहिक क्षमायाचना होगी।

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