बिहार/भागलपुर: बाबा बुढानाथ मंदिर में हो रहे श्रीरामकथा के छठे दिवस पर पंडित बाल व्यास जी महाराज ने अपने कथा में बताया कि हमारी सनातन मान्यता है कि चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मानव योनि प्राप्त होती है। इसी मानव शरीर से हम जीवन के चारो पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम एवमं मोक्ष प्राप्त करते है।
मनुष्य अपनी बुद्धि के कारण ही पशु पक्षियों आदि योनियों से पृथक है। अन्य योनियाँ तो प्रकृति पर ही पूर्ण रूप से निर्भर रहती है। जिस वातावरण में जैसी प्रकृति होती है, उसी के अनुसार उन्हें चलना या रहना होता है। वे सब अपना जीवन मात्र की आवश्यकताओं यथा आहार, निद्रा में की पूर्ति में लगाती है, लेकिन मानव जीवन का मात्र इतना ही उद्देश्य नही है।
बुद्धितत्व उसे अन्य योनियों से पृथक कर देता है। अपनी चिंतन शक्ति के कारण वह प्रकृति को अपने अनुकूल बना लेता है। यह अनमोल शक्ति मानव मात्र के लिए ईश्वरीय वरदान है।आज विश्व मे जो भी सृजनात्मक दृश्य है, वे सब मनुष्य की इसी चिंतन शक्ति के परिणाम है। ईश्वर ने पशु पक्षियों से अधिक लंबी आयु हमे दी है।
पशु पक्षी अपनी आयु का उपयोग किसी सृजन में नही बल्कि क्षुधापूर्ति, निद्रा आदि में बिता देते है। कारण की उनमें बुद्धितत्व एकदम शून्य होता है और विचार शक्ति तो आ ही नही सकती। हम जरा इस ईश्वरीय वरदान की महत्ता पर चिन्तन करें कि उसने हमें इस वरदान से भूषित किया है।
इतना अनमोल शरीर और इतना लंबा जीवन यह भी बुद्धितत्व के साथ, वस्तुतः अत्यंत अमूल्य वरदान है। हमे एक एक पल का मूल्य समझना चाहिए। यह शरीर एक छिद्र युक्त घड़ा है, जो प्रतिफल रिक्त हो रहा है। ऐसा समझ कर हमें बहुत सावदान रहने की जरूरत है । हमे एक एक पल का मूल्य समाझन चाहिए।
अयोध्या से पधारे श्री सत्यम पीठाधीश्वर आचार्य नरहरि दास जी महाराज ने अपने कथा में बताया कि श्रीरामकथा में जीवन जीने के समस्त कार्यो का समयस्त प्रकार से उल्लेख है, जगने से लेकर सोने तक जन्म से लेकर मरण तक सारे कार्यो का विवेचन हुआ है।
स्वयं श्रीराम सूर्योदय से पहले उठते है, अपने से बड़ो को पैर छूकर प्रणाम करते है, आज हम समाज के प्राणी इसी बात को ग्रहण कर के तो बहुत बड़ा कार्य हो जायेगा, सूर्योदय तक जगने वाले को लक्ष्मी सदा के लिए छोड़ देती है। राष्ट्र के सभी लोग सूर्योदय के पहले जगने लगे तो सारी समस्याओं का समाधान हो जायेगा।, राम ने पराई नारी को माता का दर्जा दिया है,
काशी से पधारे मानस भास्कर विधासागर जी महाराज ने रामकथा के छठे दिन अपने कथा में बताया कि भगवान श्रीराम चित्रकूट बैठे है इंद्र का पुत्र जयंत जानकी जी के चरणों मे चोंच मारता है।
इस दृश्य को देखकर श्रीराम के आंखों में क्रोध आया एक बाण छोड़ा जयंत भागते हुए ब्रह्मलोक विष्णुलोक और शिवलोक तीनो जगह गया और जाकर बोला कि मेरे प्राणों की रक्षा करे पर तीनों लोगो ने दरवाजा बंद कर दिया। वास्तव में जीवात्मा से वैर करें तो चल जायेगा पर जयंत ने परमात्मा से ही वैर कर लिया।
इसका कारण बना कि रास्ते मे नारद जी मिले उन्होंने पूछा कि कहां से आ रहे हो तो जयंत ने बताया हम श्रीराम की परीक्षा लेने गए थे। सही में परमात्मा ना परीक्षा का विषय है ना ही समीक्षा का विषय है प्रभु तो प्रतीक्षा का विषय है। जिसने प्रतीक्षा किया उसी प्रभु ने उद्धार किया।
भगवान दंड कारण जाने के बाद रावण ने रूप बदलकर सीता का हरण किया। त्रेता काल मे एक सीता का हरण हुआ जात का पक्षी जटायु जी ने एक अबला की पुकार सुनकर अपने प्राणों की बाजी लगा दिया लेकिन आज हमारे समाज मे कितने बहु बेटियों का हरण और भ्र्ष्टाचार हो रहा है। हम समाज के लोग हाथ पे हाथ पर बैठे है इसलिए हम मनुष्य होकर एक जटायु की भी तरह हो जाये तो समाज से भ्र्ष्टाचार समाप्त हो जायेगा।
काशी से पधारे पंडित ओमप्रकाश पाण्डेय, यज्ञाचार्य संजय तिवारी, पंडित माधव शास्त्री, पंडित अशोक तिवारी, कुंदन पाण्डेय, दिवाकर पाण्डेय, धनश्याम गोस्वामी
कार्यक्रम को सफल बनाने में श्री श्यामा प्रसाद घोष, श्री प्रभुदयाल टिबड़ेवाल, श्री दीपक घोष, श्री अभय घोष”लाल दा” ,श्री अमरनाथ मिश्रा,श्री अवध प्रसाद,श्री अभय घोष”सोनू”, श्री धरवीर सिन्हा, श्री अरुण राय, श्री भूप नारायण पाण्डेय, श्री रवि भूषण सिन्हा, चंदन कर्ण, कुमार अमृतम, संजय चौधरी, बांके बिहारी, प्रवक्ता प्रणव दास, एवमं मंच संचालन डॉ केशरी कुमार सिंह ने किया ।