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चातुर्मास की परंपरा का सनातन महत्व -भारत गौरव डॉ,वरुण मुनि

चातुर्मास की परंपरा का सनातन महत्व -भारत गौरव डॉ,वरुण मुनि

वर्ष 2026 के चातुर्मास स्थल की घोषणा

चातुर्मास प्रवचन श्रृंखला के अंतर्गत आज आयोजित धर्मसभा में भारत गौरव, डॉ. श्री वरुण मुनि जी म.सा. ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति की तीन प्रमुख धाराएँ — हिंदू, जैन और बौद्ध परंपरा — अपने मूल में अध्यात्म, संयम और साधना पर आधारित हैं। इन तीनों ही परंपराओं में चातुर्मास का अत्यंत महत्त्व माना गया है।

समय के साथ जहाँ वैदिक और बौद्ध परंपराओं में चातुर्मास की संकल्पना में कुछ परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए हैं, वहीं जैन परंपरा में यह व्यवस्था आज भी अपने प्राचीन स्वरूप में गतिमान है।

‘चातुर्मास’ का अर्थ है— चार महीनों का एक समूह। वर्षभर में फाल्गुनी, कार्तिकी और आषाढ़ी — इन तीन पूर्णिमाओं से तीन चातुर्मास माने गए हैं, जिनमें आषाढ़ी पूर्णिमा से आरंभ होने वाला चातुर्मास सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

इस अवधि में जैन साधु–साध्वियाँ एक स्थान पर स्थिर होकर प्रवचन, सत्संग, आत्मसाधना, स्वाध्याय, जप एवं ज्ञानार्जन में निमग्न रहते हैं। शेष आठ महीनों में वे ग्राम नगरों में भ्रमण कर जनमानस को सत्संग एवं नैतिक मूल्यों का संदेश प्रदान करते हैं।

उपरोक्त विचार व्यक्त करते हुए भारत गौरव डॉ. श्री वरुण मुनि जी म.सा. ने कहा कि वर्ष 2026 के चातुर्मास हेतु देशभर के अनेक श्रीसंघों की विनतियाँ प्राप्त हो रही हैं। दक्षिण भारत में अब तक लगभग दस चातुर्मास धर्माराधना के साथ संपन्न हो चुके हैं। वर्ष 2026 का चातुर्मास स्थल — राष्ट्र संत श्री पंकज मुनि जी म.सा. आदि संतों का, श्री एस.एस. जैन सभा, सेक्टर 5–6, रोहिणी (दिल्ली) में आयोजित किए जाने की घोषणा की गई है। यह निर्णय उत्तर भारत के समस्त गुरुभक्तों की भावपूर्ण प्रार्थनाओं और आग्रहों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।

यह भी उल्लेखनीय है कि इस वर्ष पूज्य गुरुदेव का चातुर्मास श्री गुजराती वर्धमान स्थान, गांधी नगर (बैंगलोर) में सादगी एवं अध्यात्ममय वातावरण में गतिमान है, जो 5 नवंबर को संपन्न होगा। तत्पश्चात पूज्य गुरुदेव अपनी विहार यात्रा आरंभ करेंगे और अनेक नगरों एवं ग्रामों को अपने पावन चरणों से पवित्र करते हुए दिल्ली की ओर प्रस्थान करेंगे।

जहाँ एक ओर उत्तर भारत के श्रद्धालुओं में इस घोषणा से उल्लास की लहर दौड़ गई, वहीं दूसरी ओर दक्षिण भारत के गुरुभक्तों के हृदयों में विरह की वेदना उमड़ पड़ी कि पूज्य गुरुदेव अब उन्हें छोड़कर उत्तर की ओर प्रस्थान करेंगे।

मधुर वक्ता रूपेश मुनि जी म.सा. ने फरमाया कि पूज्य गुरुदेव का आगामी चातुर्मास दिल्ली में होने जा रहा है। लगभग वर्ष 2002 में सेक्टर 5, रोहिणी (दिल्ली) स्थित जैन स्थानक में पूज्य गुरुदेव का चातुर्मास श्रुताचार्य साहित्य सम्राट श्री अमर मुनि जी महाराज के पावन सान्निध्य में संपन्न हुआ था।

लगभग तेईस वर्षों के पश्चात पुनः वह पावन योग बना है, जब पूज्य गुरुदेव भारत का दिल — राष्ट्र की राजधानी दिल्ली में — पधारने जा रहे हैं।

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