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क्षमा सहनशीलता की प्रतिमूर्ति थे महान साधक गजसुकुमाल- डॉ श्री वरुण मुनि जी

क्षमा सहनशीलता की प्रतिमूर्ति थे महान साधक गजसुकुमाल- डॉ श्री वरुण मुनि जी

श्री गुजराती जैन संघ गांधीनगर में चातुर्मास विराजित दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार डॉ श्री वरुण मुनि जी म सा ने शुक्रवार को धर्म सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को पर्यूषण पर्व के तीसरे दिन अन्तगड सूत्र के माध्यम से सूत्र में वर्णित महान करुणा मूर्ति मोक्षगामी आत्मा श्री गजसुकुमाल मुनि के चरित्र पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि अपूर्व सहनशीलता, क्षमा,समता और करुणा की प्रतिमूर्ति थे महान साधक गजसुकुमाल मुनि। जिनके मस्तक पर सोमिल ने गर्म गर्म अंगारे रख दिये थे।

पर करुणा मूर्ति गजसुकुमाल मुनि ने उस अपार तीव्र वेदना को भी समभाव से सहन किया और सामने वाले पर जरा भी क्रोध विषम भावों को नहीं लाते हुए महान क्षमा के गुण को धारण करते हुए सब कर्मो की निर्जरा कर परम पद मुक्ति को प्राप्त किया। ऐसे अपूर्व सहनशीलता समता और क्षमा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हुए आगम के इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठो पर अपना नाम अंकित करते हुए संसार में अमर हो गए। उन्होंने कहा कि दया क्षमा,समता आत्मा के स्वाभाविक गुण है।

जो साधक आत्मा क्षमा गुणों को अपने जीवन में आत्मसात कर लेता है उसके लिए मुक्ति पद पाने की राह आसान हो जाती है। उन्होंने आगे कहा कि जब तक शरीर में चैतन्य सत्ता है तब तक जीव दया का पालन करना चाहिए। क्षमा और करुणा का गुण अपना कर इंसान अपने जीवन को भी निर्मल शुद्ध, पवित्र, ज्योतिर्मय बना सकता है। बस आवश्यकता है सच्चे अर्थों में समता, सहनशीलता, क्षमा भाव को अपनाने की। बीवीआप सभी साधक भी जरुर क्षमा के महान गुण को धारण करे और अपने जीवन में सहनशील बनने का प्रयास और पुरुषार्थ करें। प्रारंभ में युवा मनीषी मधुर वक्ता श्री रुपेश मुनि जी ने अंतगड सूत्र का वाचन सभा में प्रस्तुत किया। उप प्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी म सा ने सबको व्रत नियम के पचकखान करवाते हुए मंगल पाठ प्रदान किया। संचालन राजेश मेहता ने किया।

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