श्री गुजराती जैन संघ गांधीनगर, बेंगलुरु में चातुर्मास के लिए विराजमान दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रवचनकार परम पूज्य डॉ. श्री वरुण मुनि जी महाराज ने अपने मंगलमय संबोधन में कहा कि धर्म स्थान का भाव है मन में ही धर्म का निवास हो।
धन, विद्या, संपत्ति, रूप, पदवी, इन सब से बढ़कर धर्म है। उन्होंने कहा कि क्षमा, सत्य से ऊपर कोई धर्म नहीं। धर्म प्रेमी बहनों-भाइयों को जागरूक करते हुए उन्होंने कहा कि भवन को भोजनशाला नहीं बनाना चाहिए। धर्म स्थान का मतलब है जहाँ साधना का कार्यक्रम बने। उन्होंने आगे कहा कि सत्संग, साधना करने से मन की शुद्धि होती है। पूज्य गुरुदेव ने कहा कि धर्म सिर्फ धर्म स्थान में ही नहीं बल्कि सब स्थानों पर होता है।
उन्होंने कहा कि जो श्रद्धालु रोजाना अपनी व्यस्त जिंदगी में से कुछ समय निकाल कर परमात्मा का जाप करते हैं, परमात्मा उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। परमात्मा की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि तीन शब्द हैं – भक्त, भक्ति और परमात्मा। जो भक्ति करता है उसे भक्त कहा जाता है। भक्ति गुरु और परमात्मा की हो सकती है। परमात्मा के प्रति भक्ति के कई रूप हो सकते हैं जैसे कि सेवा, समर्पण, स्तुति, विश्वास, जप, पूजा, प्रार्थना आदि। भक्त को परमात्मा से जोडऩे का पुल या कदम या तरीका भक्ति कहा जाता है।
भक्ति की सबसे शुद्ध अवस्था का नाम परमात्मा है। प्रवचन सभा में बेंगलुरु के उपनगरों और गांधीनगर के आसपास के क्षेत्रों से कई श्रद्धालु भक्तजन मौजूद थे। मधुर वक्ता श्री रूपेश मुनि जी महाराज ने बहुत ही मधुर भजन पेश करके सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उप प्रवर्तक परम पूज्य श्री पंकज मुनि जी महाराज ने मंगल पाठ प्रदान किया।