श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ राजाजीनगर बैंगलोर के तत्वावधान में उप प्रवर्तक पंकजमुनि के सानिध्य में डॉ वरुणमुनि ने कहा कि जीवन में कोई भी सदकार्य करो विनय भाव से करो। अभिमान ऐसा पत्थर है जो जीवन की नौका को डुबो देता है। अभिमान को जीतने का एकमात्र उपाय है विनय भाव। विनम्रता भी चंदन की तरह है जिसके दो गुण होते है एक सुगंध और दूसरा शीतलता। विनम्रता भी हमारे जीवन में सुगंध और शीतलता प्रदान करती है। जिस तरह चंदन और चंद्रमा किरणे शीतलता देती है शांति प्रदान करती है उसी तरह विनम्रता जिस व्यक्ति के जीवन में आ जाती है वह व्यक्ति लोकप्रिय सर्वप्रिय बन जाता है।
उन्होंने कहा शिष्य दो प्रकार के होते है -विनीत और अविनीत। विनीत शिष्य विनयवान और अविनीत शिष्य अहंकारी होता है। अविनीत शिष्य अहंकारी और अभिमानी होते है। और विनीत शिष्य विवेकवान और शांत स्वभावी होते है। जिनके जीवन में विनम्रता के गुण आ जाते है उनके जीवन में सारी सिद्धि प्राप्त हो जाती है। विनीत शिष्य हंस के समान होते है जो सार को लेकर असार को छोड़ देता है। विनीत शिष्य भी अच्छें को ग्रहण कर बुरे को छोड़ देते है।
विनय के द्वारा प्राप्त किया गया ज्ञान फलदायी होता है और अभिमान से प्राप्त किया हुआ ज्ञान पतन की ओर ले जाता है। जीवन में विनम्रता का पानी बहता रहेगा तो ज्ञान की खेती फलती फूलती रहेगी। इसलिए नरक की ओर ले जाने वाले अभिमान का त्याग कर विनय को जीवन में अपनाना चाहिए। विनय से ही अहंकार का नाश किया जा सकता है।
रूपेशमुनि ने गुरु स्तवन की प्रस्तुति दी और अंत में पंकजमुनि ने मंगलपाठ प्रदान किया। नवकार महामंत्र जाप एवं आयंबिल की लड़ी गतिमान है। इस अवसर पर साहूकारपेठ चेन्नई से पधारे हर्ष कोठारी और सुमन कोठारी का श्रीसंघ की ओर से अभिनंदन किया गया। 11/12 और 13 अगस्त को गुरु मिश्री गुरु रूप और गुरु सुभद्र जन्मोत्सव का त्रिदिवसीय आयोजन तप त्याग एवं जप द्वारा मनाया जायेगा। अध्यक्ष प्रकाशचंद चाणोदिया ने आभार व्यक्त किया और संचालन संघ मंत्री नेमीचंद दलाल ने किया।