किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी महाराज ने प्रवचन में कहा कि द्वारा यानी द्वार, नारी, गुफा बिना की शेरनी, कन्या, सुंदरी, ललिता, कुमारी सहित स्त्री के 92 नाम बताए गए हैं।
स्त्री सत्वधारी, सत्ताधारी लोगों को भी वश में करके बाजी पलट देती है। कहा गया है कि पुरुष के पास शक्ति है तो स्त्री के पास सहनशक्ति है। स्त्री स्वर्ग का भी द्वार है, नरक का भी द्वार है और मोक्ष का भी द्वार है। जब कभी अपना मन उदास, विचार से ग्रस्त हो तो चार शरणागति लेनी ही चाहिए। मात्र प्रवृत्ति ही शरणागति नहीं है, शरणागति का अर्थ कुछ अलग है। शरणागति का मतलब है मैं आपके चरणों में सर्वस्व दे रहा हूं, आप ही मेरे सर्वस्व हो और मेरा सर्वस्व आपका है। चिकने से चिकने पाप, मन के संक्लेश शरणागति से दूर हो जाते हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि शरणागति लेनी है तो 6 आवश्यक पर ध्यान देना है, वे है, सामायिक, परमात्म भक्ति, गुरु वंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और पच्चक्खाण। इसके लिए पंचाचार दर्शनाचार, ज्ञान आचार, चरित्रचार, तपाचार और वीर्याचार की शुद्धि करना आवश्यक है। उदासीन रहना गुण है उदास रहना दुर्गुण है। उन्होंने कहा सामायिक का बल यानी चारित्राचार की शुद्धि देने वाला प्रभावक तत्व है। काउसग्ग का प्रभाव है कि आप अंतर की दुनिया में विचरण करेंगे।
काउसग्ग अपने विचारों के साथ तकरार को दूर करने का विकल्प है। उसमें आत्मीय प्रतिकार शक्ति है। काउसग्ग का काउंटिंग श्वासोश्वास के आधार पर होता है। काउसग्ग के कई फायदे होते हैं जिनमें विघ्नों का निवारण, विकल्प से मुक्ति, कर्मों की निर्जरा, इंद्रियों की स्थिरता और तनाव से मुक्ति प्रमुख है। सावद्य योग से अटकने का लाभ सामायिक से मिलता है। उन्होंने कहा सूत्र उच्चारण के चार प्रकार रागबद्ध, व्यंजनबद्ध, स्वरबद्ध और छंदबद्ध होते हैं। राग को स्वर व व्यंजन को तोड़े बिना उपयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा वक्ता बुद्धिशाली और श्रोता श्रद्धावान होने चाहिए। श्रद्धा से सुना हुआ अल्पज्ञान भी जल्दी मोक्ष देता है।