श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ राजाजीनगर बैंगलोर के तत्वावधान में उप प्रवर्तक पंकजमुनि के सानिध्य में डॉ वरुणमुनि ने कहा कि आकाश की तरह मानव की इच्छाएं भी असीम और अनंत होती हैं। हमारी अपूर्ण और अनुचित इच्छाएं ही हमारे दु:ख का मुख्य कारण हैं। कामनाओं के वशीभूत मानव सारा जीवन दु:खी रहता है । हमारी इच्छायें असीमित है। एक इच्छा पूर्ण होती है तो दूसरी जाग जाती है। इच्छाओ की यह डोर निरंतर चलती रहती है। मनुष्य ज्यों-ज्यों पाता है त्यों-त्यों परेशान होता है। जितना लाभ उतना लोभ। यह क्रम जीवन भर चलता है। बछड़ा ज्यो ज्यो बड़ा होता है उसके सींग भी बढते जाते है उसी प्रकार इंसान की इच्छायें भी बढ़ती जाती है। इंसान स्वयं मिट्टी का बना है लेकिन चाह ,इच्छायें सोने के वस्तुओं की रखता है।
जो आत्मधन को प्राप्त कर लेते है वें इच्छाओ पर जीत हासिल कर लेते है। जब तक तृष्णा इच्छाओ के पीछे पीछे भागते रहोगे इच्छायें आपके आगे आगे भागती रहेगी। संपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति कभी नहीं हो पाती, जबकि इन इच्छाओं की पूर्ति करने में मनुष्य अपना सारा श्रम लगा देता है। मनुष्य को चाहिए कि वह इन इच्छाओं का दामन छोड़कर अपने नियमित कर्मो को आसक्तिरहित होकर करे। जीवन में इच्छाओ का त्याग कर संतोष की धारा को ग्रहण करो। जो प्राप्त है वही पर्याप्त है। सुखमय और शांतिप्रिय जीवन जीने का प्रयास करो। जीवन में अगर शांति और सुख की प्राप्ति है तो समझ लेना हमारा जीवन सार्थक है।
पूर्व में रूपेशमुनि ने गुरु स्तवन की प्रस्तुति दी और अंत में पंकजमुनि ने मंगलपाठ प्रदान किया। नवकार महामंत्र जाप एवं आयंबिल की लड़ी गतिमान है। अध्यक्ष प्रकाशचंद चाणोदिया ने आभार व्यक्त किया और संचालन संघ महामंत्री नेमीचंद दलाल ने किया।