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आत्मा के कर्म रुपी धूल को मिटाने के लिए पर्युषण पर्व है

आत्मा के कर्म रुपी धूल को मिटाने के लिए पर्युषण पर्व है

नार्थ टाउन बहु मंडल की  से एक नाटिका “स्वतंत्रता कौन सी अच्छी पल भर की या शाश्वत मुक्ति” की प्रस्तुति

एसएस जैन संघ नॉर्थ टाउन बहु मंडल की तरफ से एक नाटिका “स्वतंत्रता कौन सी अच्छी पल भर की या शाश्वत मुक्ति” बहुत ही सुंदर प्रस्तुति की गई।

परम पूज्य गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि जैन चातुमास काल में ये 8 दिन चातुर्मास के महत्वपूर्ण दिन है और चार्तुमास रूपी शरीर का संवत्सरी पर्व ह्रदय के समान है। आत्मा के कर्म रुपी धूल को मिटाने के लिए पर्युषण पर्व है। इन आठ दिनो में कायर व्यक्ति में भी निडरता आ जाती है उसमें भी पुरुषार्थ जागृत हो जाता है। प्रमाद व आलस्य को छोड़ कर व्यक्ति घाती व अघाती कर्मों को काटने का प्रयास करता है। हर व्यक्ति का इन आठ दिनों में धर्म स्थान में आने का लक्ष्य रहता है। इन आठ दिनों में स्वत: ही भावों में उत्कृष्टता ओ जाती है। इस पर्व का प्रभाव ही ऐसा है कि हर तपस्या करने वाले का स्वाध्याय करने वाले का चेहरा चमक उठता है।

जैन धर्म का हर व्यक्ति पर्युषण पर्व का लालायित हो कर इंतजार करता है। शरीर का पोषण करने वाला व्यक्ति भी इन आठ दिनो में शरीर का तपस्या द्वारा शोषण कर आत्मा का पोषण करने लगता है। साल भर धर्म स्थान में न आने वाला व्यक्ति भी इन आठ दिनों में धर्म स्थान आने के लिए स्वतः तैयार हो जाता है। बच्चे भी एकासन आदि तप कर प्रत्याख्यान कर अपने मन से पर्युषण पर्व में धर्म से जुड़ जाते है। इस पर्व मे जो आनन्द से प्रफुल्लित हो कर ये पर्व मनाता है वो साल भर भी थोड़ा जुड़े फिर भी धर्म ध्यान से जुड़ा रहता है। अंतगड़ सूत्र के 10 भवी आत्माओं का वांचन सुनकर व्यक्ति भी विचार करने लगता है कि मैं कब कर्म बंधन से मुक्त होऊँगा। आज स्वतंत्रता दिवस है फिर भी भारत आज भी पाश्चात्य संस्कृति का गुलाम बना हुआ है। अंग्रेजो से हम आजाद हो गये पर उनकी संस्कृति को हम जकड़े हुए हैं। हमें हमेशा अपने देश अपने भेष अपने भारतीय खान -पान को ऊपर रखना चाहिए । हमें अपनी भारतीय संस्कृति की निंदा नहीं करनी चाहिए। पाश्चात्य संस्कृति अपने विचार बांट रही है और हम हंसते -2 उन्हे अपना रहे है। सबसे उत्तम जैन धर्म है जैन धर्म की छोटी से छोटी क्रिया भी मानव को संसार सागर से तारने वाली है।

स्वतंत्रता मिलने पर स्वछंद नही रहना अपितु संयमित जीवन जीना चाहिए। स्वछंद व्यक्ति महापापी होता है। संयमित व्यक्ति स्वयं भी शांति से जीता है और दूसरो को भी शांति प्रदान करता है। सबको शांति प्रदान करने वाला ही स्वतंत्र कहलाता है जब सबके मन में सब पर अनुकम्पा का भाव जागृत होगा तभी वास्तव में हम स्वतंत्र होगे आज पांचवे आरे में मनुष्य का दिमाग देवताओ से भी तेज चलता है। मनुष्य ने इतने संसाधन साधन तैयार कर दिये कि जो कदम -2 पर चकित कर देते है। जैसे ड्राइवरलेस गाड़ी, आटोमेटिक दरवाजे आदि । संसार में दो प्रकार के जीव है, एक गीले गुड़ में बैठने वाली मक्खी के समान आसक्त जीव और दूसरा मिश्री पर बैठी । अनासक्त मक्खी के समान आसक्त जीव भोग करते -2 संसार में ही रह जाता है और अनासक्त जीव सब छोड़ संयमी बन मुक्त हो जाता है।

संसारी आत्मा आंशिक रूप से जीवों को अभयदान देती है पर संयमी तो जीवन पर्यन्त जीवो को अभयदान देता है। अभयदान सर्वश्रेष्ठ दान है। ज्ञानचंद कोठारी ने बताया कि पर्युषण पर्व में नार्थ टाउन तपस्याओं का ठाठ लगा हुआ हैl

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