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अहिंसा, दया, तपस्या सभी धर्मों से श्रेष्ठ धर्म है- डॉ. श्री वरुण मुनि जी

अहिंसा, दया, तपस्या सभी धर्मों से श्रेष्ठ धर्म है- डॉ. श्री वरुण मुनि जी

दक्षिण सूर्य ओजस्वी प्रचारक डॉ. श्री वरुण मुनि महाराज, जो श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर में चातुर्मास हेतु विराजमान हैं, ने आज धार्मिक सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रवचन देते हुए कहा कि दीन, दुखी और पीड़ित प्राणियों की अनदेखी करना प्रत्यक्ष रूप से धर्म और परमात्मा का अपमान करने के समान है। प्रत्येक आत्मा में परमात्मा का वास माना गया है। उसकी सेवा में समर्पित होना चार धामों की यात्रा करने के बराबर है। प्रत्येक धार्मिक स्थान सेवा के केंद्र बनें। उन्होंने कहा कि अहिंसा, दया, तपस्या सभी धर्मों से श्रेष्ठ धर्म हैं और सेवा धर्म सबसे कठिन है।

सभी धर्मों की उपासना-पद्धति अलग-अलग हो सकती है, लेकिन सेवा को सभी धर्मों ने प्रथम स्थान दिया है। सत्संग के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि अपने जीवन में ज्ञानवान महापुरुषों का सत्संग करने से व्यक्ति जीवन में सफलता की नई ऊँचाइयों को प्राप्त करता है। उन्होंने कहा कि जैसी संगति होती है, वैसा ही रंग होता है। अर्थात, जिस व्यक्ति के साथ वह रहता है, जिस वातावरण में वह काम करता है, वैसा ही वह बन जाता है। दोष और गुण, बुराई या अच्छाई अच्छी या बुरी संगति से प्राप्त होते हैं। नीच लोगों की संगति बुद्धि का नाश करती है।

समान विचारों और आचरण वाले लोगों के साथ रहने से समानता मिलती है और विशिष्ट लोगों के साथ रहने से विशिष्टता प्राप्त होती है। उन्होंने आगे कहा कि संतों और महापुरुषों की संगति, उनकी पहचान और साथ रहने से मनुष्य का जीवन बेहतर बनता है। जैसे बबूल के पेड़ की छाँव में काँटे मिलते हैं, वैसे ही नीम के पेड़ की छाँव में शुद्ध हवा मिलती है। बुद्धिमान सद्गुरु की संगति से आत्मा यहाँ प्रसिद्धि प्राप्त करती है और परलोक में भी शुभ मंज़िल पाती है। कार्यक्रम की शुरुआत में युवा मनीषी और मधुर वक्ता श्री रूपेश मुनि जी ने गीत के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए। उपप्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी महाराज ने सभी को मंगल पाठ करवाया। संचालन राजेश मेहता द्वारा किया गया।

फोटो : प्रवचन करते वरुण मुनि जी महाराज।

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