श्री गुजराती जैन संघ, गांधीनगर में चातुर्मास हेतु विराजमान भारत गौरव डॉ. वरुण मुनि जी महाराज ने भाई दूज के पावन अवसर पर आयोजित विशेष धर्मसभा में अपने ओजस्वी प्रवचन में कहा कि —“भाई दूज केवल भाई-बहन के स्नेह का पर्व नहीं, बल्कि यह अहिंसा, समता और सार्वभौमिक कल्याण की भावना का प्रतीक है।”मुनि श्री ने विस्तार से समझाया कि जिस प्रकार बहन अपने भाई के दीर्घायु, सुख-समृद्धि और मंगल की कामना करती है, उसी प्रकार हमें भी अपने जीवन में हर जीव के कल्याण की भावना रखनी चाहिए। जब हम समता और करुणा के मार्ग पर चलते हैं, तभी सच्चे अर्थों में ‘भाई दूज’ का संदेश सार्थक होता है।
उन्होंने कहा —“संवेदनशीलता ही सच्चे रिश्तों की आत्मा है। यदि जीवन में करुणा, त्याग और संयम का संगम हो जाए, तो प्रत्येक दिन भाई दूज के समान मंगलमय बन सकता है।”मुनि श्री ने युवाओं से विशेष रूप से आह्वान किया कि वे इस पर्व को केवल औपचारिकता के रूप में न मनाएँ, बल्कि इसके भीतर छिपे आध्यात्मिक संदेश को जीवन में आत्मसात करें।उन्होंने कहा कि —“भाई के रूप में सुरक्षा, सहयोग और सह-अस्तित्व का संकल्प लें, और बहन के रूप में प्रेम, सद्भाव तथा करुणा की प्रेरणा बनें।”
पूज्य मुनि जी ने बताया कि जब हम दूसरों के हित में सोचते हैं, तब हमारा जीवन स्वतः ही शुभ और सार्थक बन जाता है। भाई दूज हमें यह सिखाता है कि प्रत्येक जीव के प्रति करुणा, अहिंसा और समता का भाव ही सच्चा धर्म है। यही भावना विश्वशांति का आधार बन सकती है।कार्यक्रम का शुभारंभ युवा मनीषी एवं मधुर स्वर के गायक श्री रूपेश मुनि जी के प्रेरणादायक भजनों से हुआ। उनके भक्ति-रस से ओतप्रोत भजनों ने समूचे वातावरण को श्रद्धा, भक्ति और समर्पण की भावना से अनुप्राणित कर दिया।
तत्पश्चात उपप्रवर्तक श्री पंकज मुनि जी महाराज ने मंगल पाठ का वाचन कर उपस्थित श्रद्धालुओं को शुभाशीष प्रदान किया तथा सभी के कल्याण, शांति और आध्यात्मिक उन्नति की कामना की। सभा के समापन पर उपस्थित श्रद्धालुओं ने मुनि श्री के दिव्य वचनों को हृदयंगम करते हुए मंगल पाठ के साथ भाई दूज का पर्व गहन आध्यात्मिक उल्लास, आत्मिक संतोष और सौहार्द के वातावरण में मनाया।