सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद
पुज्य प्रवर्तक श्री प्रकाश मुनि जी मासा — *कृपया शांति बनाये रखे!* क्यो भैय्या ? -मुनि सुनने वाले को 8 विषय पर ही उपदेश करे |
पहला है
*© संतिम*- मुनि शांति का उपदेश करे ! संसार में कितने जीव है वह अशांत हे सिद्धालय में जीव शांति में है। अशांति कर्म के कारण हे, तीनों लोक में जहाँ जीव है वहाँ अशांति है। 4गति, 24 दण्डक में जीव अशांत है।
जहाँ है वहाँ उसका कारखाना चालू हो जाता है, बाहर से शांति पर अंदर से अशांति है , उपदेशक शांति का उपदेश दे!
आत्म शांति का उपदेश दे ! आत्म शांति कैसे मिलती है? अकाषाय में जीव को शांति मिलती है, हम अपनी पीड़ा तैयार करते है, पीढ़ा को भोगते हुए दोष दुसरो को देते हे। दुख स्वयं ने पैदा किया, हमारे चित्त, मन, विचारों में शांति नहीं”
जो बच्चा चंचल होता हे, जो इंसान खलबल-खलवल करता है मतलब वह शांत नहीं है। संसार का चक्र हे हम फंसते जाते हे
*ठाणांमसुत्र* – में आता है
*केणं दु:खे आणाय ,स्व कणे दुःखे !* दुःख कहाँ से आया?, दु:ख स्वयं पैदा करता है। खुद भोक्ता है, निवारण नहीं होता तो दोष दुसरो देता है
*अपनी इंद्रियों, कषाय पर शांति बनाये रखे।* नये कर्म नहीं बंधेगा। शांति में रहेगा। गुरुदेव कहते थे कि *सारी दुनिया पागल तु अकेला समझदार है* इस सूत्र को मान लेता है वह सुखी रहता है।
भुखे रहने से तप नहीं होता? *तप वह जो इच्छाओं पर नियंत्रण करें।* स्वच्छनद इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं। कषाय चल रही हे मन में ओर तप करते हो !!
तुम्हारी पहुँच limited है हमारी पहुँच चोके तक रहती है। 4 जनों में समभाव नहीं 10 सामायिक करके बैठे हो क्या मतलब? हम सब तोते है पाप के प्रति *प्रायश्चित का भाव* नहीं जगे तो मिच्छामि दुक्कडम का क्या फायदा? श्रावक को उपदेश दे! शांति का , *कषाय* की आग कों बुझाने वाला उपदेश दे।
कितना प्रबल मोह- अंतराय वाली के साथ भोजन करते हो !! *निती नियम व्यवस्था है* शरीर अपवित्र हे उसके साथ भोजन कर रहे हो! यह मोह नरक तक ले जायगा। *अति प्रबल मोह नरक ले जाता है।* श्रीदेवी रानी पति वियोग में छः महीने तक रोती हे वर 6 नरक में जाती है *नीति के बिना धर्म नहीं चलता है।*
*मनुस्मृति* में आता है जीवन कैसे जीना?
पहले नियम थे, मर्यादा थी। र *अंतराय में कभी धर्म स्थान, स्वाध्यायी के बीच, तपस्वी के बीच मत घुसो ।* साध्वी जी वाचना में बैठ सकती हे ,पुरा विवेक करके 1घंटे से ज्यादा नहीं। आचार्य उपाध्याय का योग मिलना मुश्किल होता है , तुम्हारे लिये नहीं।
चीजे सीखना चाहिए ! धर्म नहीं कर सकते धर्म करने वाले को भ्रष्ट क्यों करते हैं। हमारी अक्ल कितनी ! केवली का ज्ञान ज्यादा की तुम्हारा !
अंतराय के समय स्वाध्याय नहीं करे। शरीर अपवित्र है। उसके हाथ का भोजन कर सकते हे ? क्या?
तुम साधना में सहयोगी बनो। 5 दिन नहीं हुए हो मत बेहराओ।
साधु बना वह अपनी आत्मा के लिये बना ।
*दृश्टान्त* गुरुरेव व महाराज जी जंगल गये। वहाँ पर पहले गुरु जी गये फिर गुरुरेव गये । वहाँ चार चोर आ गये। डब्बे बंधे हुए थे। क्या है झोली में खोल, लो लेलो, चोर बोले यही दे दो । गुरुदेव उधर से आये उनकी कद काठी देखकर चोर वापस चले गये।
*साधुओं की चिंता करे वह श्रावक हे श्रावक को अम्मा पिया कहाँ!* संत की चिंता, सेवा, सहयोग करते हो। आपको बहुत बहुत धन्यवाद!! पुण्य से मिली सामग्री का उपयोग कर लेते हो संत के माध्यम से…
*पहले शांति स्वयं में रखो ।* *हम अपनी इच्छा पर नही स्वेच्छाचार पर नियंत्रण करे।* अपनी इच्छओ से मत जीयो। मर्यादा, नियम से जीये ।
नियम मर्यादा से जीने वाला स्वर्ग में गया है। *शांति से* जीना, *संयम में* जीना कि *असयम में* जीना ! हमने तुम्हारे सामने रखा। मन में पीडा तुम्हारे घर देखकर!!! तुम्हारे यहाँ की खाते हे तो मन में आता है। थोडा संभले, ईच्छाओं पर नियंत्रण करे!! यह तप है। *ईच्छा निरोधस्स तपः* ईच्छा का निरोध ही तप है।
श्री
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