जैनाचार्य आनंद ऋषि जी के 123वे जन्मदिवस पर पांच दिवसीय कार्यक्रमों में आज मना जाप दिवस
Sagevaani.com @शिवपुरी। प्रसिद्ध जैन साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज के सानिध्य में स्थानकवासी जैन सम्प्रदाय के आचार्य आनंद ऋषि जी महाराज का 123वां जन्मदिवस पोषद भवन में पांच दिवसीय धार्मिक आयोजनों के साथ मनाया जा रहा है। कल प्रथम दिवस सामयिक दिवस मनाया गया जिसमें श्रावकों ने 48-48 मिनट की दो सामयिक और श्राविकाओं ने 48-48 मिनट की तीन सामयिक कर समता धारण की। वहीं दूसरे दिन शनिवार को जाप दिवस मनाया गया जिसमें एक घंटे तक सैकड़ों धर्मावलंबियों ने जाप कर आचार्य आनंद ऋषि जी को अपनी विनम्र भावांजलि अर्पित की। जन्मदिवस के अवसर पर साध्वी वंदनाश्री जी ने आचार्य आनंद ऋषि जी के सम्मान में इस सुंदर भजन गुरुवर मेरे जीवन की हर उलझन को सुलझा देना, भव सागर से नाव मेरी तू ही पार लगा देना… का गायन किया। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने आचार्य आनंद ऋषि जी महाराज के विलक्षण, चमत्कारिक और अनुशासित व्यक्तित्व को कई उदाहरणों से स्पष्ट किया तथा उनसे प्रेरणा लेने की अपील की।
जाप दिवस में पोषद भवन में जाप करने वाले दम्पत्तियों और पृथक रुप से जाप करने वाले व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था अलग-अलग की गई थी। इसके बाद साध्वी वंदनाश्री जी ने ओम आनंद नमो नम:, श्री आनंद नमो नम:, जय गुरु आनंद नमो नम:, सद्गुरु आनंद नमो नम: का गायन किया और इसके पश्चात जाप में बैठे लोगों ने इसे दोहराया जिससे पूरे माहौल में आनंद और हर्ष की तरंगों से वातावरण परिपूरित हो गया। एक घंटे के जाप के पश्चात साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने आचार्य आनंद ऋषि जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह अद्भुत ज्ञान पिपासु थे। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत भाषा और ऊर्दू के विद्वान होने के बावजूद भी 90 वर्ष की उम्र में उन्होंने फारसी सीखी। वह कहते थे कि ज्ञानार्जन की कोई उम्र नहीं होती। जब तक व्यक्ति केवल्य ज्ञान प्राप्त ना कर ले तब तक उसे सीखते रहना चाहिए। मात्र 13 वर्ष की उम्र में आचार्य ऋषि जी ने मुनि रतन ऋषि जी महाराज से दीक्षा ली और उन्होंने अपने गुरू के इन शब्दों को अपने जीवन में उतारा कि कभी दुखी नहीं होना और दूसरे मानव जाति की भलाई के लिए हर समय कार्य करते रहो। लगभग तीस साल तक उन्होंने स्थानकवासी जैन समाज के आचार्य पद को सुशोभित किया। उनकी विनम्रता देखने लायक थी और भजनों और संगीत में उनकी विशेष रुचि थी। अनुशासन का पाठ उनसे सीखा जा सकता है। आचार्य आनंद ऋषि जी ने स्थानकवासी समाज के लाखों श्रावक श्राविकाओं का नेतृत्व किया। इससे उनकी विलक्षण नेतृत्व क्षमता का पता चलता है। उनके व्यक्तित्व में ज्ञान और वैराग्य का अद्भुत झरना बहता था। धर्मसभा में साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज ने भी उनके समाज हितैषी व्यक्तित्व को याद करते हुए कहा कि उनके दर्शन करने का मुझे भी सौभाग्य मिला है। धर्मसभा में लकी ड्रा के लाभार्थी धर्मेन्द्र गूगलिया और राजेश कोचेटा बने, जबकि परवाना का लाभ धर्मेन्द्र गूगलिया परिवार ने उठाया।
गुरु के दण्ड को आचार्य आनंद ऋषि ने सहर्ष स्वीकार किया
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने आनंद ऋषि जी के जीवन को याद करते हुए बताया कि जब वह अपने गुरु रतन ऋषि जी के साथ चातुर्मास कर रहे थे उस दौरान उन्हें एक अलमारी में जैन साहित्य नजर आया जो कि बिखरा हुआ था। इस पर उन्होंने सभी शास्त्रों को करीने से सजा दिया। जब गुरुदेव वहां आए तो उन्होंने बताया कि मैंने बिखरे हुए साहित्य को क्रमबद्ध कर दिया है, लेकिन गुरु उनसे नाराज हुए और गुरुदेव ने श्रावक श्राविकाओं के समक्ष उनकी आलोचना की। उन्हें प्रायश्चित स्वरुप दण्ड भी दिया। कुछ समय बाद आनंद ऋषि जी ने गुरुदेव से पूछा कि गुरुवर मेरी गलती क्या थी, मैंने तो अपने विवेक से ठीक काम किया था। इस पर गुरुदेव ने कहा कि तुमने काम तो ठीक किया था, लेकिन क्या इस काम को करने के लिए तुमने मेरी या समाज की आज्ञा ली थी। इस तरह से आनंद ऋषि जी के गुरुदेव ने उन्हें अनुशासन का पाठ पढ़ाया था।
आज मनेगा वंदना दिवस
रविवार से गुरुणी मैया रमणीक कुंवर जी महाराज ठाणा 5 की धर्मसभा पाश्र्वनाथ जैन मंदिर के आराधना भवन में होगी। धर्मसभा में तीसरे दिन आचार्य आनंद ऋषि महाराज जन्मोत्सव के तहत वंदना दिवस मनाया जाएगा जिसमें सुबह 10 बजे से श्रावक और श्राविका गुरुणी मैया रमणीक कुंवर जी महाराज को गुरु का प्रतीक रुप मानते हुए वंदना करेंगे। वंदना दिवस में श्रावक श्राविका को कम से कम 27 वंदना करनी होगीं। सोमवार को दान दिवस और मंगलवार को तप दिवस मनाया जाएगा।