यहां विराजित स्वाध्यायी प्रेमलताबाई बम्ब ने कहा बालक का चारित्र श्रेष्ठतम बनाने का कार्य मां करती है। वह परमात्मा की साक्षात प्रतिमूर्ति है जिसके चरणों में तीनों लोकों का सुख निवास करता है। संसार के अनमोल रिश्तों से सबसे पवित्र व निस्वार्थ संबंध माता का ही होता है। वह जन्म देती है इसलिए जननी है। माता का कोई विकल्प एवं पर्याय नहीं है। बालक का सुख-दुख सबसे पहले जानने व समझने वाली मां ही है। वस्तुत: मां की ममता का कोई ओर-छोर नहीं। वह पूजा के योग्य है। विश्व के सभी सुख मां के स्नेह व दुलार के सामने तुच्छ हैं। कोमलता, पवित्रता व अगाध वात्सल्य की प्रतिमूर्ति है मां। त्याग, तपस्या, प्रेम व बलिदान को कोमलता व पवित्रता से जोडक़र जिस देवी की प्रतिमूर्ति ईश्वर ने बनाई है वह मां ही है। मां के इस महान स्वरूप को हमें अपने हृदय में प्रतिष्ठित करना चाहिए। वह सर्वोत्तम तीर्थ है। सभी तीर्थों की परिक्रमा करने...
एसएस जैन संघ मदुरान्तकम में पर्यूषण पर्व पर पधारे स्वाध्याय संघ की स्वाध्यायी प्रेमलता बंब ने कहा शास्त्रों ने देने के भाव को श्रेष्ठ कहा है। प्रकृति के नियम भी यही कहते हैं कि जो देता है वो पाता है। जो रोकता है वो सड़ता है। देने वाले निस्वार्थ होते है, अपना सब कुछ लुटाने के बाद भी उनको आंतरिक संतुष्टि और सुख की अनुभूति होती है। देने से जो दुआएं मिलती हैं उसके सामने बड़े से बड़ा भौतिक सुख भी फीका पड़ जाता है इसलिए हमें देने का संस्कार अपने भीतर उजागर करना चाहिए और आने वाली पीढ़ी में भी इसके लिए जागरूकता बढ़ानी चाहिए। आज के समय में यह दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है कि हम अपना उचित हिस्सा दिए बिना सामने वाले से सिर्फ लेने का कार्य करते हैं। जब आप किसी को देते हैं तो आप उसकी ही नहीं खुद की नजर में भी बड़े बन जाते हैं। विश्वास रखने वाले की झोली कभी खाली नहीं होती, प्रकृति हमेशा उसकी भरपाई करती है। संच...