चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा कि परमात्मा के प्रति दिल से भक्ति होने पर ही मीरा ने जहर पीकर भी पचा लिया था। सचमुच में दिल की भक्ति मनुष्य को आगे बढ़ाने वाली होती है। दिखावा में की हुई भक्ति लोगों को जहां का तहां ही खड़ा कर देती है। यदि जीवन में आगे जाना चाहते हैं तो दिल से भक्ति करें। उन्होंने कहा मनुष्य को जितना हो सके भलाई के कार्य करने चाहिए। अगर भलाई नहीं कर पाए तो बुरा किसी के साथ कभी नहीं करना चाहिए। जीवन को सफल बनाने के लिए हमेशा अच्छा करने का ही विचार रखना चाहिए। जितना संभव हो सके मनुष्य को अच्छा, भलाई और उपकार का कार्य ही करना चाहिए। लेकिन कभी भी किसी का बुरा अहित नहीं करना चाहिए। उन्होंंने कहा कि यदि हम किसी का बुरा करते हैं तो उसका बुरा नहीं होगा लेकिन अपना बुरा हो जाएगा। इसलिए सभी के प्रति अच्छा करने का भाव रखना चाहिए। ऐसा करने पर ही व्यक्ति ...
चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में चातुर्मासार्थ विराजित मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय माधवरम में आचार्य महाश्रमण जी से खमतखामणा करने पहुंचे। वहां मुनि संयमरत्न विजय ने ‘बड़ी दूर से चलकर आया हूं’ गीत पेश करने के बाद अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तहत आयोजित सर्वधर्म सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा सर्वधर्म के अनुयायी देह से भले भिन्न हो, लेकिन आत्मा से सभी समान है। देहधर्म से भी ऊंचा आत्मधर्म है। फर्क मिट्टी के दीपक में होता है, उसकी ज्योति में नहीं, वैसे ही फर्क देह में होता है, आत्मा रूपी ज्योति में नहीं। राग-द्वेष रूपी शत्रु को जीतने के कारण अरिहंत परमात्मा ‘जिन’ कहलाए और उनके अनुयायी ‘जैन’। ‘हिं’ यानी हिंसा और ‘दू’ यानी दूर अर्थात् जो हिंसा से दूर रहे वह ‘हिंदू’ है। जो सबको अच्छी सीख दे वह ‘सिख’ है। जो ब्रह्म अर्थात् अपनी आत्मा को जान ले वह ब्राह्मण है। मुसल (नष्ट...
चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा पंचपरमेष्टि का गुणानुवाद दिल से किया जाना चाहिए। हम किसी का बुरा करते हैं तो उसका बुरा नहीं होगा लेकिन अपनी आत्मा का बुरा जरूर हो जाएगा। इसलिए सभी का अच्छा करने का भाव रखना चाहिए। बुरा करने का भाव मन में भी नहीं लाना चाहिए। ऐसा करने पर ही जीवन में धर्म फलिभूत हो पाएगा। भावना हमेशा ऊंची होनी चाहिए। लोग साधु न बने लेकिन मन में भावना साधु बनने की रखनी चाहिए तभी जीवन सफल हो पायेगा। मनुष्य को जितना हो सके भलाई के कार्य करने चाहिए। अगर भलाई का कार्य न कर पाए तो किसी के साथ बुरा भी नहीं करना चाहिए। जीवन को सफल बनाने के लिए हमेशा अच्छा करने का ही विचार रखना चाहिए। उन्होंंने कहा जब तक यह गुण जीवन में नहीं आएगा तब तक हम धार्मिक नहीं बन सकते हैं। जानते हुए भी अगर मनुष्य किसी के साथ गलत करता है तो यह दोष के बराबर होता है। थोड़ा जीवन को ...
चेन्नई. गौतममुनि ने कहा भाव पूर्वक परमात्मा की वाणी सुनने वाला ही जीवन में आगे बढ़ पाता है। साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक ने कहा जग की माया पूरी तरह से झूठी है फिर भी जीव इससे मोह करता है व इसमें फंसकर पाप किए जा रहा है। जीवन को सुधारने के लिए पाप का निवारण करना होगा। जो भाग्यशाली आत्मा अपने जीवन में पुण्य का खजाना लेकर आता है, उसे सद्गुरु के सानिध्य में आकर परमात्मा की वाणी सुनने का मौका मिलता है। उन्होंने कहा मानव अपने कान को सजाने की लाख कोशिश कर ले, लेकिन कान की शोभा ज्ञान की बातें सुनने से ही होती है। ज्ञानपूर्ण बातें सुनने से ही जीवन में सुधार का मार्ग मिलता है क्योंकि ज्ञान ही जीवन को नई दिशा देता है। ज्ञान की बातें सुनने वाला जीवन पवित्र कर लेता है। बिना ज्ञान के मनुष्य लाख शोभायमान कर ले लेकिन सब बेकार है। सागरमुनि ने कहा जहां धर्म है वहां सुख है इसलिए मनुष्य को आगे बढ...
चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा हमेशा अच्छा सोचना और करना चाहिए। जब काया से कोई भी अच्छी प्रवृति होती है तो उससे जीवन का भला और आत्मा का हित होता है। मनुष्य अपनी अज्ञानता से जीवन में दुख उत्पन्न करता है। ऐसा करके वह पूर्व भव के वैभव को भी खो देता है। लेकिन याद रहे गलत हरकत जीवन को गलत मार्ग पर पहुंचा देती है। जब तक पुण्य का उदय है तब तक कोई भी गलती करो दुख नहीं होगा, लेकिन पापों का उदय होने पर हर गलती सामने आने लगती है। गलतियों का परिणाम किसी न किसी रूप में भुगतना ही पड़ेगा, इसमे कोई माफी नहीं मिलती। जीवन को उज्ज्वल और पावन बनाने के लिए व्यक्ति की प्रत्येक प्रवृति उसके व्यवहार के अनुरूप होनी चाहिए। अगर मनुष्य अपने व्यवहार से हट कर कोई भी कार्य करता है तो उसे जीवन में दुखों का सामना करना पड़ता है। व्यवहार के अनुरूप चलने वाला मनुष्य अपने जीवन में अमृत घोलने ...
चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा ज्ञानियों के कथनानुसार इंद्र का जैसे ऐरावत हाथी, विष्णु का गरुड़, धनद का पुष्पक विमान, महादेव का वृषभ (नंदी), कार्तिकेय का मयूर तथा गणपति का वाहन मूषक है, वैसे ही मोक्ष मार्ग की ओर जाने के लिए दया रूपी वाहन ही सर्वश्रेष्ठ है। दया रूपी कामधेनु जो हमेशा विविध प्रकार के स्वर्ण, मोती, प्रवाल, मणि तथा धन रूपी गोमय (गोबर) को देती है। श्वेत यश रूपी दूध देती है ऐसी दया रूपी कामधेनु नष्ट न हो, इस तरह हमें उसकी रक्षा करनी चाहिए। जो बुद्धिहीन मानव प्राणियों का वध करके धर्म की इच्छा रखता है, वह मानो पश्चिम दिशा से सूर्योदय, नमक में से मिठास, सर्प के मुख में से अमृत, अमावस से चंद्र, रात्रि से दिन, लक्ष्मी के संग्रह से दीक्षा की इच्छा रखता है। भव रूपी सागर को पार करने के लिए जहाज रूप, उत्तम बुद्धि रूपी वृक्षों के स्कंद रूप तथा ...
चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने आचार्य शिवमुनि की 77वीं जन्म जयंती पर कहा आत्मा का ध्यान करने वाले शिवगुणवान होते हैं। परमात्मा की भक्ति और प्रार्थना मनुष्य को जीवन में हमेशा आगे ले जाती है। ऐसा करने से मनुष्य के गुणों में वृद्धि होती है। उन्होंने कहा उत्तम जिन भक्ति रूपी तप को जीवन में अपनाने के लिए हमेशा आगे रहना चाहिए। समय प्रतिकूल हो या न हो लेकिन अपने मन में निष्ठा के साथ चलने वाले काम को पूरा किए बिना नहीं रुकना चाहिए। गुरुदेवों की बातों को स्वीकार करना प्रवचन की रस वाली बात बन जाती है। परिवार में अगर तप त्याग होता है तो खुशी होती है। उन्होंने कहा कि आचार्य शिवमुनि का जीवन बहुत ही सरल था वे सरलता के मूर्ति हैं। उन्होंने कभी भी मान अभिमान की बात नहीं की। जिस प्रकार परिवार में किसी का जन्मदिन होता है तो उसे मनाने के लिए लोग कई तरह के उपक्रम कर खुशी मनाते ह...
चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने रविवार को कहा कि उत्तम कार्य ही मनुष्य को ऊंचाइयों पर ले जाता है। जीव दया करने से जीवन में बहुत लाभ मिलते हैं। सौभाग्यशाली ही अपने जीवन को ऐसे उत्तम कार्यों में जोडऩे का प्रयास करते हैं। मनुष्य जीवन का लाभ अगर लेना चाहते हैं तो जीव दया के कार्यों में सदैव आगे रहना चाहिए। इसके साथ ही मानव जाति के प्रति अपने हृदय के अंदर क्षमा का भाव रखें। प्राणि मात्र के प्रति दिल में द्वेष का भाव नहीं रखने पर ही सच्चे अर्थों में क्षमापना का भाव उत्पन्न हो पाएगा। उन्होंने कहा, क्षमा करने और मांगने में जीत होती है, हार नहीं। क्षमा मांगना वीरों का भूषण है कायरों का व्यवहार नहीं। क्षमा दान देने-लेने से स्नेह बढ़ता है। जीवन को क्षमामय बनाने के लिए प्राणी मात्र के प्रति अपने हृदय के अंदर दया के भाव आने चाहिए। जीवों पर दया करने वाले वास्तव में उत्तम क...
साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने गुरुवार को पर्यूषण पर्व के आखिरी दिन संवत्सरी के अवसर पर कहा कि यह बहुत ही महान पर्व है। सुख और दुख मनुष्य को उसके विचारों से मिलता है। यह जानकर प्रत्येक व्यक्ति को प्राणीमात्र के साथ मित्रता का भाव रखना चाहिए तभी मनुष्य जीवन में शांति, आनंद और सुख प्राप्त कर पाएगा। इस दिन अपने करीबी से क्षमायाचना करनी चाहिए। संवत्सरी पर्व की दिव्य आराधना से किया हुआ प्रतिक्रमण मनुष्य की समस्त आलोचनाओं को दूर कर आत्म को हल्का बनाने का कार्य करती है। प्रतिक्रमण से शुद्धि करण होता है। यदि कोई दोष है तो प्रतिक्रमण से उसकी शुिद्ध की जा सकती है। अगर कोई दोष नहीं है तो प्रतिक्रमण से आत्मा को और शुद्ध किया जा सकता है। मनुष्य की आत्मा के मैल को दूर करने के लिए प्रतिक्रमण करना जरूरी होता है। उन्होंने कहा कि संवत्सरी मनाने के बाद लोग क्षमायाचना करते हैं। ज्ञानी क...
साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजयजी ने कहा प्रभु पाश्र्वनाथ की साधना हमें राग-द्वेष से दूर रहने की प्रेरणा देती है। नेमिनाथ चरित्र से हमें जीवों के प्रति करुणा भाव रखने की शिक्षा मिलती है, मूक पशुओं की रक्षा के लिए नेमिनाथ ने राजुल जैसे सुंदर स्त्रीरत्न का त्याग कर दिया, नव-नव भवों की प्रीत एक साथ तोड़ दी। आदिनाथ परमात्मा ने धन्ना सार्थवाह के भव में साधुओं को शुद्ध घी का आहार समर्पित कर समकित प्राप्त किया था। अभिग्रहधारी प्रभु वीर ने इंद्रभूति के मन में चल रहे जीव के प्रति संदेह का समाधान करते हुए कहा जिस प्रकार दूध में घी, तिल में तेल, काष्ठ में अग्नि, फूल में सुगंध और चंद्र की कांति में अमृत होता है, उसी प्रकार शरीर में आत्मा का निवास रहता है। प्रभु पाश्र्वनाथ के चरित्रानुसार जगत में कमठ की तरह दुर्जन और धरणेन्द्र की तरह सज्जन ये दो तरह के जीव रहते हैं, लेकिन...
साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा जीवन को अच्छे भावों से ही बदला जा सकता है। इसके लिए जीवन को संपूर्ण रूप से परमात्मा के भक्ति में लगाने की आवश्यकता है। युवाओं में चेतना जागने पर समाज के अंदर अनुठा भाव उत्पन्न होता है। युवा जिस कार्य को हाथ में लेते है निश्चित रूप से उसे पूरा भी करते हैं। पर्यूषण पर्व मनुष्य को जगा कर परहित करने का संदेश देने के लिए आता है। ऐसे समय को कभी गंवाना नहीं चाहिए क्योंकि परमात्मा की दिव्यवाणी जन-जन के जीवन में अमृत का आलोक भरने वाली होती है। जो भाग्यशाली संसार के कार्य छोड़ कर इसका लाभ लेते है वे अपने जीवन को धन्य और पावन बना लेते है। जैसा मनुष्य का भाव होता है वैसा ही उसके जीवन का निर्माण भी होता है। प्रवर्तक पन्नालाल की जन्म जयंती पर कहा उन्होंने जहां भी चौमासा किया अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने शासन के अंदर लोगों को समर्पित होने की प्रेरणा द...
साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा अपनी संतान को सशक्त बनाने के लिए पांच वर्ष तक पुत्र का लालन-पालन करना चाहिए, जब दस वर्ष का हो जाए तो उसे नियंत्रण में रखना चाहिए तथा जब वह सोलह साल का हो जाए,तब उसके साथ मित्र जैसा बर्ताव करना चाहिए। जिस तरह हंसों की सभा में बगुले शोभायमान नहीं होते, वैसे ही विद्वानों की सभा में मूर्ख शोभायमान नहीं पाते। इसलिए वे माता-पिता वैरी और शत्रु हैं, जो अपनी संतान को सुसंस्कारों की शिक्षा से सुशिक्षित नहीं करते। पुत्र यदि दुराचारी है तो यह मां का दोष है, पुत्र यदि मूर्ख है तो पिता का दोष है, पुत्र यदि कंजूस है तो वंश का दोष है और पुत्र यदि दरिद्र है तो यह स्वयं पुत्र का ही दोष है। पर्यूषण पर्व क्षमापना पर्व के नाम से जाना जाता है। क्षमापना पराये को भी अपना बना देती है। प्रभु महावीर मातृ भक्त थे, माता-पिता का अपने प्रति मोह देखकर म...