संत महोपाध्याय

नजरिए को बदलें, दुनिया अच्छी नजर आएगी – राष्ट्र-संत ललितप्रभ

मुंबई: संत महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि दुनिया में अच्छाइयाँ भी हैं और बुराइयाँ भी। आपको वही नजर आयेगा जैसा आपका नजरिया है। अच्छी दुनिया को देखने के लिए नजारों को नहीं, नजरिये को बदलिए। केवल अच्छे लोगों की तलाश मत करते रहिए, खुद अच्छे बन जाइए। आपसे मिलकर शायद किसी की तलाश पूरी हो जाए। उन्होंने कहा कि लोग कहते हैं जब कोई अपना दूर चला जाता है तो तकलीफ होती है। परंतु असली तकलीफ तब होती है जब कोई अपना पास होकर भी दूरियाँ बना लेता है। किसी को सजा देने से पहले दो मिनट रुकि ये। याद रखिये, अगर आप किसी की एक गलती माफ करेंगे,  तो भगवान आपकी सौ गलतियाँ माफ करेगा। गलती जिंदगी का एक पेज है, पर रिश्ते जिंदगी की किताब। जरूरत पडने पर गलती का पेज फाड़िए, एक पेज के लिए पूरी किताब फाडने की भूल मत कीजिए। उन्होंने कहा कि बड़ी सोच के साथ दो भाई 40 साल तक साथ रह सकते हैं वहीं छोटी सोच उन्हीं भाइय...

गरम नहीं, नरम होने का पर्व है पर्युषण – श्री ललितप्रभ

संत महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि हमें औरों से शिकायत नहीं अपितु शुक्राना अदा करना चाहिए। हम जिनके साथ रहते हैं अगर हर समय उनके प्रति शिकायत करते रहेंगे तो रिश्तों में तनाव होगा और शुक्राना अदा करने से रिश्तों में मिठास घुल जाएगा। हमें जीवन में कभी भी वैर-विरोध की गांठ नहीं बांधनी चाहिए और कभी बोल-चाल बंद नहीं करनी चाहिए। जैसा पूरा गन्ना रस से भरा होता है, लेकिन उसकी गाँठ में एक बूँद भी रस नहीं होता है, वैसे ही जिस मनुष्य के मन में गाँठें बंधी रहती है, उसका जीवन नीरस हो जाता है। संत ललितप्रभ बुधवार को कोरा केन्द्र मैदान में पर्युषण पर्व के सातवें दिन श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि व्यक्ति साल भर भले ही गरम रहे पर पर्युषण के दिनों में उसे नरम रहना चाहिए। जो लोग नरम रहते हैं, वे लोग दूसरे के दिलों में भी राज करते हैं, गरम स्वभाव के लोग घर के वालों के दिलों...

पर्युषण में हटाएँ भीतर का प्रदूषण – संत ललितप्रभ

संत महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि पर्युषण पर्व भारत की आत्मा है। जैसे सारी नदियाँ सागर में आकर विलीन हो जाती है वैसे ही सारे पर्व पर्युषण में आकर समा जाते हैं क्योंकि सारे पर्व बाहर की दुनिया को रोशन करते हैं, पर यह हमारे अंतर्मन को रोशनी से भरने के लिए आता है। यह मन को मांजने का, कषाय की होली जलाने का, कु्र रता से करुणा की ओर व दुश्मनी से मैत्री भाव की ओर बढने का पर्व है। यह तो जीवन की प्रयोगशाला में प्रवेश है जहाँ प्रेम, क्षमा और सरलता की साबुन लेकर मन में जम चुकी वैर-प्रतिशोध और कटुता की गंदगी को धोने केप्रयोग किए जाते हैं। पर्युषण भीतर के प्रदूषण को हटाने दिव्य पर्व है। संत ललितप्रभ ने ये विचार गुरुवार को कोरा केन्द्र मैदान में पर्युषण पर्व प्रवचनमाला के प्रथम दिन रखे। वे पर्युषण पर्व का अंतर्रहस्य विषय पर श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पयुर्षण में त...

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