संत महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि हमें औरों से शिकायत नहीं अपितु शुक्राना अदा करना चाहिए। हम जिनके साथ रहते हैं अगर हर समय उनके प्रति शिकायत करते रहेंगे तो रिश्तों में तनाव होगा और शुक्राना अदा करने से रिश्तों में मिठास घुल जाएगा। हमें जीवन में कभी भी वैर-विरोध की गांठ नहीं बांधनी चाहिए और कभी बोल-चाल बंद नहीं करनी चाहिए। जैसा पूरा गन्ना रस से भरा होता है, लेकिन उसकी गाँठ में एक बूँद भी रस नहीं होता है, वैसे ही जिस मनुष्य के मन में गाँठें बंधी रहती है, उसका जीवन नीरस हो जाता है। संत ललितप्रभ बुधवार को कोरा केन्द्र मैदान में पर्युषण पर्व के सातवें दिन श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि व्यक्ति साल भर भले ही गरम रहे पर पर्युषण के दिनों में उसे नरम रहना चाहिए। जो लोग नरम रहते हैं, वे लोग दूसरे के दिलों में भी राज करते हैं, गरम स्वभाव के लोग घर के वालों के दिलों...
मुंबई। राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि पर्युषण भीतर के प्रदूषण को हटाने का पर्व है। बाहर के प्रदूषण से बीमारियाँ आती हैं और मन के प्रदूषण से परेशानियाँ आती हैं। इसलिए जितनी जरूरत बाहर के प्रदूषण को कम करने की है, उतनी ही जरूरत है भीतर के प्रदूषण को समाप्त करने की। संतप्रवर ने कहा कि पर्युषण हृदय शुद्धि और कषाय मुक्ति का पर्व है। 84 लाख जीवयोनियों से क्षमा मांगना सरल है, पर जिनसे हमारा मनमुटाव है या जिसका हमने और जिसने हमारा दिल दुखाया है उससे माफी मांगना सच्चा धर्म है। संवत्सरी का इंतजार करने की बजाय आज ही माफी मांगकर हिसाब चुकता कर लें। हम साल भर भले ही गरम रहें, पर अब तो नरम बन जाएं और मन में पलने वाली गांठों को दूर कर लें। जैसे गन्ने की गांठों में रस नहीं होता वैसे ही जो मन मेें दूसरों के प्रति गांठ पाले रखता है उसका जीवन भी नीरस बन जाता है। उन्होंने कहा कि गांठ बन जाने ...
संत महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि पर्युषण पर्व भारत की आत्मा है। जैसे सारी नदियाँ सागर में आकर विलीन हो जाती है वैसे ही सारे पर्व पर्युषण में आकर समा जाते हैं क्योंकि सारे पर्व बाहर की दुनिया को रोशन करते हैं, पर यह हमारे अंतर्मन को रोशनी से भरने के लिए आता है। यह मन को मांजने का, कषाय की होली जलाने का, कु्र रता से करुणा की ओर व दुश्मनी से मैत्री भाव की ओर बढने का पर्व है। यह तो जीवन की प्रयोगशाला में प्रवेश है जहाँ प्रेम, क्षमा और सरलता की साबुन लेकर मन में जम चुकी वैर-प्रतिशोध और कटुता की गंदगी को धोने केप्रयोग किए जाते हैं। पर्युषण भीतर के प्रदूषण को हटाने दिव्य पर्व है। संत ललितप्रभ ने ये विचार गुरुवार को कोरा केन्द्र मैदान में पर्युषण पर्व प्रवचनमाला के प्रथम दिन रखे। वे पर्युषण पर्व का अंतर्रहस्य विषय पर श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पयुर्षण में त...
राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर महाराज ने कहा कि शांति, सिद्धि और प्रगति के द्वारों को खोलने का दुनिया में सबसे महत्त्वपूर्ण मार्ग ध्यान है। इंसान जब-जब दुखी, चिंतित अथवा तनावग्रस्त हुआ तब-तब ध्यान ने उसे समाधान का मार्ग दिया है। ध्यान ने अतीत को संवारा है और इसी से वर्तमान और भविष्य को संवारा जा सकता है। ध्यान तो जिंदगी की घड़ी में भरी जाने वाली चाबी है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने चैबीस घंटों को चार्ज कर सकता है। अध्यात्म का सार है ध्यान। जिस ईश्वरीय तत्त्व की तलाश व्यक्ति जीवनभर बाहर करता है, वह तो उसके भीतर है जिसका साक्षात्कार ध्यान से संभव है। महावीर और बुद्ध जैसे महापुरुषों ने ध्यान के माध्यम से ही परम सत्य को उपलब्ध किया था। उन्होंने कहा कि शरीर के रोगों को मिटाने के लिए मेडीसिन है और मन के रोगों को मिटाने के लिए मेडीटेशन है। अगर प्रतिदिन केवल बीस मिनिट का ध्यान किया जाए तो द...