विनयवान गुरु के हृदय में पाता है स्थान चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजय ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि अभिमान आंखों पर ऐसी पट्टी लगा देता है कि अभिमानी को अपने अतिरिक्त और कोई व्यक्ति दिखाई नहीं देता। वह एक प्रकार से अंधा हो जाता है। अभिमानी कहता है- जगत मेरा सेवक है जबकि विनयवान कहता है-मैं जगत का सेवक हूं। जिस प्रकार फटी जेब में धन सुरक्षित नहीं रहता, उसी प्रकार अभिमानी के हृदय में ज्ञान सुरक्षित नहीं रहता। नित्य करने योग्य कार्य को जो शिष्य बिना किसी प्रेरणा के स्वयं कर लेता है, वह गुरु के हृदय में स्थान प्राप्त कर लेता है और जो शिष्य अविवेकी-अविनीत-अभिमानी होता है, उसे दैनिक कार्य करने का निर्देश करना पड़ता है। अपनी अज्ञानता-अभिमान के कारण ही ऐसे शिष्य अपने ही गुरु को अप्रसन्न कर देते हैं। हमें किसी भी कार्य को कल पर नहीं छोडऩा चाहिए। जो कल-कल करता ...