जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि महातपस्वी शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में पर्युषण महापर्व सानंद और भक्तिमय माहौल में निरंतर प्रवर्धमान है। अनेकानेक श्रद्धालु अपनी क्षमतानुसार तपस्या, ध्यान, साधना, जप, उपासना, स्वाध्याय आदि के माध्यम से धर्म की कमाई करने में जुटे हुए हैं। एक ऐसा धर्म का माहौल बना है, जैसे कोई देवनगरी की स्थापना हो गई हो। चेन्नई महानगर का माधावरम किसी देवलोक की भांति प्रतीत हो रहा है। भौतिकता की चकाचैंध से अलग 24 घंटे धर्म की चर्चा, धर्म की आराधना, धर्म की साधना से पूरा वातावरण आध्यात्मिक बना हुआ है। पर्युषण पर्वाधिराज का छठा दिवस ‘जप दिवस’ के रूप में समायोजित हुआ। नित्य की भांति ‘महाश्रमण समवसरण’ में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में चतुर्विध धर्मसंघ की उपस्थिति थी। सर्वप्रथम मुख्यमुनिश्री म...
माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ के अंतर्गत त्रिपृष्ठ भव की घटनाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा आदमी के जीवन में व्यवहार का बहुत महत्व होता है। भावना हो तो परिवार में बिखराव नहीं प्रेम हो सकता है। सद्व्यवहार से परिवार में सुख-शांति का माहौल कायम हो सकता है। जहां परस्पर सहयोग, व्यक्तिगत स्वार्थ की बात न हो उस परिवार में मानो सुख का पारावार आ सकता है। वह सबसे सुखी परिवार हो सकता है। उन्होंने कहा माना महाव्रत का बहुत ऊंचा राजमार्ग है लेकिन इस पर चलना सबके लिए मुश्किल हो सकता है इसलिए सामान्य आदमी छोटे-छोटे संकल्पों के द्वारा भी अपने जीवन को आध्यात्मिक गति दे सकता है। कोई आगंतुक आ जाए तो उसका सम्मान करने का प्रयास करना चाहिए। आगंतुकों का यथोचित सत्कार व सम्मान किया जाना चाहिए। समुचित सम्मान का व्यवहार हो, उदारतापूर्ण व्यवहार ह...
विचारों के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम भाषा होती है। भाषा लिखित भी होती है तो मौखिक भी होती है। बोलना होता है। आदमी मौन भी कर लेता है और बोल भी लेता है, वह कोई खास बात नहीं होती है, किन्तु आदमी बोलते हुए भी मौन कर ले, वह विशेष बात होती है। बोलना कोई बड़ी बात नहीं विवेकपूर्ण बोलना बड़ी बात होती है। माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के क्रम में मरीचिकुमार के भव सहित सभी सोलहवें भव तक की कथा का वर्णन करते हुए यह कहा। ‘वाणी संयम दिवस पर आचार्य ने कहा कि वाणी एक महत्वपूर्ण तत्व है। आदमी को कटु नहीं मिष्ठभाषी बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपनी वाणी को संयमित रखते हुए कठोर अथवा कटु भाषा बचने का प्रयास करना चाहिए। वाणी में विनय हो, वह मिष्ठ हो। भाषा में अच्छे शब्दों का प्रयोग हो तो वाणी और भी सुन्दर बन सकती है।...
दादावाड़ी में विराजित साध्वी कुमुदलता ने कहा पौषध करना यानी आत्मा का पोषण करना। आजकल सब शरीर का पोषण करते हैं। इन आठ दिनों में आत्मा का पोषण करें। सामायिक प्रतिक्रमण पौषध करें। जिस तरह हार्ट सर्जरी करते हैं,उसी तरह पौषध से आत्मा की सर्जरी होती है। इन आठ दिनों में इंद्रियों को ब्रेक दें। भगवान महावीर ने पर्यूषण की दो जरूरी बातें बताई है सामयिक और पौषध। स यानी साधना-समता की साधना करें, म यानी ममता को छोडं़े। य अर्थात यतना, जीवन में यतना से चलें। क यानी करुणा-सभी जीवों के प्रति दया रखें। दूसरा है पौषध- यह दो प्रकार की होती है-देशा बगासिक और प्रतिपूर्ण पौषध। जिस प्रकार पाटे के चार पायों में से एक पाया नहीं होने से पाटा डगमगाने लगता है इसी तरह डगमग जीवन को संतों के समागम से स्थिर बनाएं। हमारे जीवन से आदर्श और मर्यादा गुम हो गई है। यह हमें समझ नहीं आ रहा है कि हमारा जीवन बनावटी हो गया है। संसार ...
भगवान महावीर के जीव ने अनन्त भव किये हैं| आगमों में उनके 27 मुख्य भवों का वर्णन मिलता हैं| उनका जीव नीचे में सातवीं नरक तक गया, तो कभी चक्रवर्ती, वासुदेव भी बना| कई भवों में कठोर साधना का जीवन भी जीया, तो कभी देव गति में भी गया| यह सब तो कर्मवाद का सिद्धांत हैं| तीर्थकर बनने वाली आत्मा ने पाप कर्म किया है तो उन्हें स्वयं भोगना ही पड़ेगा, भुगतान करना ही होगा, उपरोक्त विचार माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहे| आचार्य श्री ने आगे कहा कि कर्मवाद नीतिपूर्ण न्यायालय है, यह निष्पक्ष हैं| बड़े से बड़ा कोई भी जीव हो, जिसने पाप कर्म किये हैं, उसे इस न्यायालय में दया नहीं मिलती और निर्दोष को दंड नहीं मिलता| हमारे देश में उच्च न्यायालय है, सर्वोच्च न्यायालय हैं, पर यह सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर हैं, इससे कोई दोषी छूट नहीं सकता...
चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी कुमुदलता ने भगवान महावीर के सत्याणुव्रत का उल्लेख करते हुए कहा कि इंन्सान को सत्य की राह पर चलते रहना चाहिए। किसी भी स्थिति में झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए। सत्य बोलने वाले की हमेशा जीत होती है। सत्य की राह पर चलकर ही व्यक्ति अपने आप को परमात्मा से जोड़ सकता है। सत्य ही इन्सान को विश्वास दिलाता है कि धर्म सत्य पर टिका है। उन्होंने एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि व्यक्ति को जरूरत से ज्यादा अनुराग, स्नेह आदि संबंधों के अधीन नहीं होना चाहिए। व्यक्ति को स्नेह, अनुराग और प्रेम भाव रखना चाहिए लेकिन उसके मोह जाल में नहीं फंसना चाहिए। यदि व्यक्ति इस मोह जाल में फंस जाता है तो उसे पूरी दुनिया छोटी लगने लगती है जिससे उसे जन्म-जन्मांतर तक दुखों का ही सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कुछ परम्पराएं ऐसी हैं जो अतीत से चलती आ रही हैं, वर्...
चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी कुमुदलता ने भगवान महावीर के सत्याणुव्रत का उल्लेख करते हुए कहा कि इंन्सान को सत्य की राह पर चलते रहना चाहिए। किसी भी स्थिति में झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए। सत्य बोलने वाले की हमेशा जीत होती है। सत्य की राह पर चलकर ही व्यक्ति अपने आप को परमात्मा से जोड़ सकता है। सत्य ही इन्सान को विश्वास दिलाता है कि धर्म सत्य पर टिका है। उन्होंने एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि व्यक्ति को जरूरत से ज्यादा अनुराग, स्नेह आदि संबंधों के अधीन नहीं होना चाहिए। व्यक्ति को स्नेह, अनुराग और प्रेम भाव रखना चाहिए लेकिन उसके मोह जाल में नहीं फंसना चाहिए। यदि व्यक्ति इस मोह जाल में फंस जाता है तो उसे पूरी दुनिया छोटी लगने लगती है जिससे उसे जन्म-जन्मांतर तक दुखों का ही सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कुछ परम्पराएं ऐसी हैं जो अतीत से चलती आ रही हैं, वर...