ने दिगवंत आचार्य

आचार्य श्री शुभचंद्र म.सा सदा प्रसन्न मुख सब के प्रति वात्सल्य से ओत-प्रोत व व्यक्तित्व के धनी थे: ज्ञानमुनिजी

वेलूर के शांति भवन में विराजित श्री ज्ञानमुनिजी ने दिगवंत आचार्य श्री शुभचंद्रजी म.सा को भाव भीनी श्रद्धाजंली अर्पित करने के बाद कहे कि आचार्य श्री शुभचंद्रजी महाराज वयोवृद्ध अनुभवी सरलमना दीर्घ तपस्वी महान सेवा भावी पुरानी पीढ़ी के महान संत के निधन से जैन संघ की अत्यंत क्षति पूर्ति हुई जिसकी पूर्ति निकट भविष्य में असंभव है। आचार्य श्री सदा प्रसन्न मुख सब के प्रति वात्सल्य से ओत पोत व्यक्तित्व के धनी थे।  इसी कारण सभी सम्प्रदाय के संत उनसे मिलना चाहते थे,उनसे मिलते थे और मिलकर अत्यंत प्रसन्नता का धन्य भाग्य अनुभव करते थे। ऐसे विरल व्यक्तित्व के धनी आचार्य श्री को श्री ज्ञानमुनिजी सहित काफी    संख्या में श्रावक व श्राविकाएं भाव भीनी श्रद्धाजंली अर्पित किये। फिर धर्मसभा को संबोधित करते हुए श्री ज्ञानमुनि ने कहे कि धर्म चार प्रकार के होते है-दान,शील,तप व धर्म है। मानव जीवन में सयमं अति अवश्यक...

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