चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा एक रात्रि का अंधकार भी व्यक्ति को दुखी कर देता है तो जीवन में मिथ्यात्व और अज्ञान का गहन अंधकार कितना दुखी करेगा यह विचारणीय है। आज व्यक्ति श्रद्धा के अभाव में भटक रहा है। प्राचीन समय में प्रात: उठते ही प्रभु भक्ति करने की परंपरा बहुत अच्छी थी। आज सवेरे की प्रार्थना पानी भरने में ही चली जाती है। व्यक्ति शरीर की सजावट में जितना समय देता है उतना समय उसकी आत्म मंदिर को संवारने में देने की रुचि नहीं है। यह शरीर तो पैकिंग है और आत्मा माल। घड़ी का डायल भले सुंदर हो लेकिन मशीन सही नहीं हो तो समय बराबर नहीं दे पाएगी। ऐसी घड़ी की कोई कीमत नहीं होती। यदि घड़ी की मशीन सही है और डायल अच्छा नहीं है तो भी उसका मूल्य अधिक होगा। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है कि हरिकेशी मुनि का बाहरी डायल अच्छा नहीं थे, वे बदसूरत थे पर अंदर की मशीन अच्छी थी जि...
चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा जैसी संगत वैसी रंगत हो जाती है। महर्षि बाल्मीकि कुसंग से डाकू बन गए थे, संतों का क्षणिक संपर्क जीवन की दिशा बदल देता है। साध्वी ने कहा गंगा पाप का, चंद्रमा ताप का, कल्पवृक्ष दीनता के अभिशाप का अपहरण करता है लेकिन सत्संग पाप, ताप व दैन्य तीनों का तत्काल नाश कर देता है। संतों के संग से वैर और अभिशाप का सुलगता दावानल बुझ जाता है। जैसे पारस के संपर्क से लोहा सोना बन जाता है वैसे ही संतों के संग से पापी धर्मात्मा बन जाता है। आज के युग में संत और साहित्य ही उत्थान के मार्ग हैं। आध्यात्मिक भाव रत्नों से भरी मंजूषा के समान है। यदि मन स्थिर न होने पर होने वाली आराधना व्यर्थ होती है। जबान पर शब्द और हृदय में भाव हो तब तक तो ठीक वरना वैसे ही होता है जैसे तेली का बैल कहीं पहुंचता नहीं और केवल एक ही सर्किल में घूमता रहता है वैसे ही इन्...
चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि प्रमाद आत्मा का शत्रु है,जीव को अधोगति में ले जाता है प्रमादी को हर जगह भय होता है पर अप्रमादी को नहीं। भगवान महावीर के सिद्धांत सम्यक दर्शन की ओर ले जाते हैं। विकृतियों के प्रति चिंतन और स्व के प्रति जागरूकता की आवश्यकता है। स्वयं से हमें साक्षात्कार करना होगा। जीवन में रहकर हमें कहीं न कहीं ऐसी शैली को विकसित करना होगा जो हमें कर्तव्यपूर्ण और बुद्धियुक्त जीवन जीने की प्रेरणा दे सके। आसक्ति के अवसरों के बीच रहकर अनासक्ति का दुर्लभ कार्य मनुष्य को करना होगा। जीवन में यदि दुख वेदना और पीड़ा है तो इसका सृजन हमने ही किया है। अधिक ममता और इच्छा ही वेदना के कारण है। ममता भाव को छोडक़र समता भाव को बढ़ाना होगा। तभी जीवन को शांतिमय बनाया जा सकता है। हम साधना के लिए समय नहीं निकाल पाए इसलिए साधना के क्षेत्र में स्वविवेचना जरूरी है। अपूर...
चेन्नई. तांबरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि परमात्मा वहीं है जो राग-द्वेष से परे हो। ऐसे परमात्मा की भक्ति सभी को करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राग द्वेष के विजेता अरिहंत देव के लिए न तो कोई अपना है और न ही पराया। वे अपने और पराए की परिधि को पार कर चुके हैं। उनके लिए न तो शत्रु है और न ही मित्र। वे उपकारी और अपकारी दोनों के प्रति समान दृष्टि रखते हैं। उन्होंने भक्ति का अर्थ समझाते कहा कि अपने आराध्य के प्रति स्वयं को पूरी तरह से समर्पित कर देना ही भक्ति है। जहां अहं जल जाए, ममत्व विसर्जित हो जाए, वासना विदा हो जाए भक्ति के फूल वहीं पर खिलते हैं। साध्वी अपूर्वा ने कहा कि जिन वचन पर संदेह करना दोष है।
चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कि यदि मनुष्य का भाग्य अच्छा होता है तो प्रतिकूल स्थितियां भी अनुकूल बन जाती हैं और भाग्य अच्छा नहीं हुआ तो अनुकूल स्थितियां भी प्रतिकूल बन जाती हैं। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए अपने अच्छे भाग्य का निर्माण करना चाहिए। सबके प्रति मन में भलाई की भावना, वाणी में सत्यता व मधुरता और विचारों में स्वच्छता, आचार में नैतिकता, शरीर से सहयोग, सेवा-सुश्रुषा करने से हमारे अच्छे भाग्य का निर्माण होता है। मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता खुद होता है। औषध, मंत्र, नक्षत्र, गृह देवता ये चारों अनुकूल होते हैं तब हमारा भाग्य भी अनुकूल होता है। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा सतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ और कलियुग में दान को श्रेष्ठ माना गया है। जैन दर्शन में भी मोक्ष के चार भाग बताए गए हंै- दान, शील, तप और भावना। सच्चा धनवान वही...
चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में साध्वी धर्मप्रभा ने कहा जिंदगी में आने वाले इम्तिहानों से घबराना नहीं चाहिए। गगन में जब उजाला होने वाला होता है तब अंधकार सघन हो जाता है। सुख हमारा इंतजार कर रहा है बस एक बार दुख रूपी दरवाजे को पार करना है। संघर्षों का सामना करो परिश्रम और विवेक के बलबूते पर साधनों के अभाव में प्रतिभाएं, उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। जीवन में संघर्ष उत्कर्ष के द्वार खोलता है। दुख और संघर्ष से ही ऊर्जा बल निर्मित होता है। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा सच्चा साधु वही होता है जो आत्मा, मन और इंद्रियों को साधने का प्रयत्न करता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए संयम या भाव साधुता जरूरी है। आज तक जितने भी जीव सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए हैं उन्होंने अपनी आत्मा को त्याग और वैराग्य की साधना में तल्लीन किया है तभी सुख के अधिकारी बने। कार्यक्रम का संचालन सज्जनलाल सुराना ने किया।
चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा अरिहंत होने की दशा में इंसान का पहला कदम होता है अपनी ही खोज। अपनी आंखों में अपने ही अस्तित्व को निहारना। मैं कौन हूं ये चिंतन करना। राग को घटाने के लिए अनित्य भावना का माध्यम है। द्वेष को कम करने के लिए मैत्री करुणा, प्रमोद भाव है। राग में स्वार्थ है अनुकंपा में नहीं। क्रोध से द्वेष की उत्पत्ति होती है और माया से राग पैदा होता है। आध्यात्मिक विकास के तीन सोपान हैं त्याग, वैराग्य और वीतराग। त्याग से पदार्थ छूटता है और वैराग्य से ममत्व टूटता है। वीतरागता से आनंद फूटता है। जब व्यक्ति स्व का राग, जाति का राग और संप्रदाय का राग छोड़ देता है तो वीतरागी बन जाता है। साध्वी अपूर्वा ने कहा कि जहां संसार की स्मृति वहां आत्मा की विस्मृति और जहां आत्मा की स्मृति वहां संसार की विस्मृति होती है। शुद्ध सामायिक करने से भगवान की आज्ञा का पालन होत...
ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा जीवन में ज्ञान दृष्टि से दिशा बदलती है और दिशा बदलने से दशा बदलने में देर नहीं लगती। ज्ञान के दो काम है सावधान करना और समाधान करना। ज्ञान का लगे बोध तो हो आत्मा का शोध। ज्ञान रूपी लाइट लगाकर आत्मा को ब्राइट बनाओ। हेय-ज्ञेय, उपादेय की सम्यक जानकारी के अभाव में हमारा ज्ञान अधूरा रहता है मन रूपी मंदिर में ज्ञान का दीप जलाकर प्रभु का साक्षात्कार किया जा सकता है। बच्चे को उपदेश देना है तो पहले स्वयं उदाहरण बनो क्योंकि दूध और बच्चे दोनों ही समान है। दूध में जावण डालो तो दही जम जाता है लेकिन नींबू के रस की एक बूंद से फट जाता है वैसे ही बच्चे में सुंसस्कारों की जावण डालो तो राम कृष्ण बनते देर नहीं लगेगी पर कुसंस्कारों का तेजाब डालने से रावण और कंस भी बन सकता है। इसलिए ज्ञान व चारित्र से संसार सागर पार करो। इंसान के जीवन में अज्ञान रूपी अंधकार क...
एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कि आत्मा में प्रशम गुण नहीं आता तब तक मोक्षगुण और परम सुख का अनुभव नहीं हो सकता। सम्यक दृष्टि, ज्ञानी, ध्यानी और तपस्वी भी उस सुख का अनुभव नहीं ले सकते जिस सुख का अनुभव शांत आत्मा ही कर सकती है। शम का अर्थ है शांत और प्रशम का अर्थ है विशेष शांत। कषाय ,तृष्णा, लालसा से मन में उद्वेग उत्पन्न होता है। भावों में उग्रता, उत्तेजना और चंचलता आती है और जब तक यह उत्तेजना बनी रहती है तब तक शांति नहीं मिलती। जिसका मन अंशात होता है उसे संगीत, भोजन, मान-सम्मान और दूसरे कामें में सुख का अनुभव नहीं होता। नीचे चूल्हे की जलती आग से ऊपर शीतलता कैसे आ सकती है। प्रशम भाव आने से जो आत्मिक सुख और आनंद प्राप्त होता है वो ज्ञान ध्यान से भी श्रेष्ठ है। सबसे पहले प्रशम की ही साधना करना चाहिए। साध्वी स्नेह प्रभा ने ब्रह्मचर्य का महत्व बताते हुए कहा कि ये तपों...
ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा जीवन का कलाकार सबसे बड़ा होता है। आज महावीर जिह्वा पर है किंतु जीवन में नहीं। चर्चा में है पर चर्या में नहीं। प्रभु का चित्र तो हम बहुत बड़ा लगा लेते हैं पर चरित्र में प्रभु आए या नहीं इस पर विचार करना है। उन्होंने दुख देने वाले को मित्र माना। हर हाल में समभाव की साधना की। तिरस्कार का स्वागत किया और भव्य आत्माओं को प्रेरित किया कि मुक्ति की सुवास पाना है तो कष्टों को सहन करना ही होगा। कथानक छोटा हो या बड़ा यह विशेष बात नहीं परन्तु कथा की सरसता और सजीवता देखी जाती है। उसी प्रकार जिंदगी उसकी अच्छाइयों से नापी जाती है। जैसे आम जनता को प्रिय है वैसे प्रिय बनने की कला को सीखना है। आज भगवान महावीर के गुनग्रहण करना है। उन्होंने वीर से महावीर बनने के लिए अथक पुरुषार्थ किया और दानवीर, त्यागवीर, तपवीर, क्षमावीर और कर्मवीर बने। आठों कर्म से लड़ते ल...
एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कि पर्यूषण हमें मानसिक की शुद्धि और भावों को निर्मल रखने का संदेश देता है। मानसिक शुद्धि तो शुभ विचार और शुभ भावों से होती है। अध्यात्म चिंतन करने से मन शुद्ध होता है। चिंतन व चिंता ये दो शब्द है जिसमें धरती और अंबर जितना बड़ा अंतर है। चिंतन आत्मा को ऊध्र्वगामी बनाता है और चिंता अधोगामी बनाती है। चिंता से मन मतिष्क में तनाव पैदा होता है। चिंता की गर्मी से ज्ञान तंतु नष्ट हो जाते हैं जबकि शुभ चिंतन से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हो जाता है। अशांत मन भी शांत और प्रफुल्लित हो जाता है। साध्वी स्नेहप्रभा ने अंतकृत दशांग सूत्र का वाचन करते हुए कहा कि यदि हमारी धर्म भावना सुदर्शन की तरह सुदृढ, सच्ची श्रद्धा व भक्ति और अपने आराध्य के प्रति संपूर्ण समर्पण हो जाए तो हम बड़ी विघ्न बाधाओं का सामना सरलता से कर सकते हैं और उनमें विजय भी प्राप्त...
एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा व स्नेहप्रभा के सान्निध्य में पर्यूषण पर्व का चौथा दिन प्रमोद दिवस के रूप में मनाया गया। इस मौके पर साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कल्पसूत्र में जिन दस कल्पों का वर्णन मिलता है उनमें से पर्यूषण एक अनित्य कल्प है। प्रथम व अंतिम तीर्थंकर के समय में ही पर्यूषण कल्प होता है मध्य के 22 तीर्थंकरों के समय में पर्यूषण नहीं होता है। साध्वी ने अचिलक्य, अद्विशिक, शय्यातर, राजपिंड, कृतिकर्म व व्रत आदि कल्पों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कृष्ण चारित्र के माध्यम से बताया कि संसार में अनंत प्राणी जन्मते व मरते हैं लेकिन सभी को पुरुषोत्तम नहीं कहा जाता। कोई भी मानव केवल सुंदर रूप, रूप, ऐश्वर्य या बल से पुरुषोत्सम नहीं कहला सकता। पुरुषोत्तम वही ंकहलाते हंै जो धरती पर जन्म लेकर धर्म की रक्षा करते हैं और धर्म रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर प्राण भी न्यौछावर क...