एसएस जैन संघ

संवत्सरी के हैं पांच प्रमुख कर्तव्य: साध्वी धर्मलता

एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि संवत्सरी के पांच कर्तव्य हैं लोच, प्रतिक्रमण, आलोचना, तपस्या और क्षमा। क्षमा राग द्वेष तोड़ती है और प्रेम के पुल बांधती है। क्षमा रूपी महल में प्रवेश पाने के लिए पासपोर्ट है मिच्छामी दुक्कड़म। यदि यह पासपोर्ट होगा तो क्रोध रूपी द्वारपाल क्षमा के महल में प्रवेश करने की स्वीकृति अवश्य देगा। भूलों को भूल जाओ तो भगवान बन जाओगे और नहीं भूले तो भव परंपरा बढ़ जाएगी। सवंत्सरी के पावन पर्व पर समता को जोडऩा और ममता को तोडऩा है। पापी को पवित्र, पराजित को विजयी, रागी को वैरागी, अज्ञानी को ज्ञानी, कठोर को दयालु, दुर्जन को सज्जन और दुखी को सुखी बनाने का पर्व है संवत्सरी। हमें कैमरे की तरह भूलों को पकडऩा नहीं है, दर्पण की तरह भूल जाना है। क्षमा के इस विशाल सागर में वैर का विर्सजन करके वैरी से जौहरी बनना है। क्षमापना विषय कषाय और ऋण से मुक्त करवा क...

पश्चाताप हृदय की प्रज्वलित की गई ज्वाला: साध्वी धर्मप्रभा

एसएस जैन संघ एमकेबी नगर स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा प्रमादवश, कषाय वश हमारे द्वारा किए गए पापों का प्रायश्चित करना चाहिए। पश्चाताप तो हृदय की प्रज्वलित की गई वह ज्वाला है जिसमें हमारे पाप जलकर भस्म हो जाते हैं। बड़े बड़े पापी हत्यारे और पतित भी पश्चाताप की अग्नि में जलकर पावन हो जाते हैं। जिस प्रकार एक भार वाहक अपना भार उतार कर हलका महसूस करता है इसी प्रकार एक साधक अपने दृष्ट कृत्यों की आलोचना निंदा व पश्चाताप कर के पाप से हल्का हो जाता है। हार्दिक रूप से किया गया पश्चाताप व भविष्य में भूलों को नहीं दोहराने का संकल्प ही सच्चा प्रायश्चित है। ऐसा करने पर हृदय की कलुषता कांति में बदल जाती है। भूल का हो जाना पाप है मगर भूल को छिपाना महापाप है और भूल को बार बार दोहराना पशुता की मूर्खता की निशानी है। साधना के कंटकपूर्ण मार्ग पर चलते हुए साधु या गृहस्थ किसी से भी भूल हो सकती है मगर...

श्रद्धा का लक्षण है मोक्ष का लर्निंग लाइसेंस: साध्वी धर्मलता

 एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि  विकारों की पहचान सम्यकत्व के लक्षण से होती है।  यही श्रद्धा के लक्षण मोक्ष का लर्निंग लाइसेंस है। हमारी श्रद्धा गुरु, देव और धर्म पर मजबूत होनी चाहिए। व्यवहार में विचार करें तो विश्वास से तैरते हैं तो किनारे भी मिलते हैं। इसके सामने स्वर्ग की गद्दी भी हिल जाती है। शरीर में जो स्थान रीढ़ की हड्डी का है वही स्थान जीवन में श्रद्धा का है। जैसे दांतों के बीच जिव्हा सुरक्षित रहती है वैसे ही संसार में समदृष्टि आत्मा भी सावधान रहती है। जब तक आदमी समझ नहीं पकड़ता वहां तक ही जीवन में अंधेरा है। जैसे बालक न जानकर बेर को पकड़ क र कीमती रत्न छोड़ देता है वैसे ही मिथ्यावी भी समेकित रत्न को छोडक़र भोगों में लिप्त हो जाता है। शरीर की हड्डी टूटने पर एक्सरे से, सिर में गांठ होने पर सीटी स्कैन कर और शरीर की गांठ का सोनोग्राफी से निदान किया जाता है। आ...

वैराग्य और गुरु दुख में ही याद आते हैं: साध्वी धर्मलता

एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि वैराग्य और गुरु दुख में ही याद आते हैं। यदि दुख के सागर में सुख के मोती बंटोरने हैं तो दो शर्तो को स्वीकार करना पड़ेगा-पहली भूलना सीखो एवं दूसरा विचार को नया मोड़ दो। दूसरों पर किए उपकार को भूल जाओ। सर्दी हो जाए तो ये मत समझो कि क्षय रोग हो जाएगा। सुख और दुख जीवन के दो फूल हैं। हमें दुख में से सुख निकालने की कला सीखनी चाहिए। सुख का कमल भी दुख के कीचड़ में एवं गुलाब कांटों की डाल पर खिलता है। जीवन में दुख आने पर रोने से काम नहीं चलता। सुख का काम है तो दुख भी निकम्मा नहीं है। वह अपने और परायों की पहचान कराता है। विचारों को नया रूप दो। तभी दुख में सुख मिलेगा। सुख-दुख मन के ही प्रतिबिंब हैं। मन को मोड़ देेंगे तो आनंद का सागर लहराता मिलेगा। सुख में सावधान रहें, दुख में समाधान करें। साध्वी सुप्रतिभा ने अंतगड़ सूत्र के माध्यम से देवकी के 6...

देने का भाव ही सर्वश्रेष्ठ: स्वाध्यायी प्रेमलता

एसएस जैन संघ मदुरान्तकम में पर्यूषण पर्व पर पधारे स्वाध्याय संघ की स्वाध्यायी प्रेमलता बंब ने कहा शास्त्रों ने देने के भाव को श्रेष्ठ कहा है। प्रकृति के नियम भी यही कहते हैं कि जो देता है वो पाता है। जो रोकता है वो सड़ता है। देने वाले निस्वार्थ होते है, अपना सब कुछ लुटाने के बाद भी उनको आंतरिक संतुष्टि और सुख की अनुभूति होती है। देने से जो दुआएं मिलती हैं उसके सामने बड़े से बड़ा भौतिक सुख भी फीका पड़ जाता है इसलिए हमें देने का संस्कार अपने भीतर उजागर करना चाहिए और आने वाली पीढ़ी में भी इसके लिए जागरूकता बढ़ानी चाहिए। आज के समय में यह दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है कि हम अपना उचित हिस्सा दिए बिना सामने वाले से सिर्फ लेने का कार्य करते हैं। जब आप किसी को देते हैं तो आप उसकी ही नहीं खुद की नजर में भी बड़े बन जाते हैं। विश्वास रखने वाले की झोली कभी खाली नहीं होती, प्रकृति हमेशा उसकी भरपाई करती है। संच...

पर्यूषण गृहस्थ साधना के क्षेत्र में सभी को आगे बढऩा: साध्वी धर्मलता

एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि पर्वाधिराज पर्यूषण हमें संदेश दे रहे है कि संत हो या गृहस्थ  साधना के क्षेत्र में सभी को आगे बढऩा है। यह पर्व राग से विराग और विराग से वीतराग का संदेश लेकर हमारे द्वार आया है। हमें आध्यात्मिक भाव से इसका स्वागत करना है। संस्कार में संस्करण करने वाली ,चार संज्ञा और चार कषायों को काटने वाली दान, शील, तप भाव की अराधना करना है। पानी से शरीर पवित्र होता है परन्तु कल्याण मार्ग के सोपान पर चढऩा है तो मोक्ष रूपी झरने में स्नान कर पवित्र बनना होगा। यह पर्व आत्मा की भाव दरिद्रता को दूर करता है। जैसे दिवाली पर धन का हिसाब लगाते हंै वैसे ही आत्म धन का हिसाब लगाना है कि कितना कमाया। पर्व के संदेश को ग्रहण कर आत्मा से परमात्म स्वरूप प्राप्त करें। उन्होंने ने कहा कि तुम क्लेश हो ऐसा मत बोलो, रोग हो ऐसा मत खाओ, कर्ज हो ऐसा मत खर्चो, पाप हो ऐसा काम ...

जैसी जिज्ञासा वैसे गुरु ज्ञान मिलेगा: साध्वी धर्मलता

एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि जैसी जिज्ञासा होगी वैसे गुरु से ज्ञान मिलेगा। जिज्ञासु ग्रहक है और गुरु व्यापारी। जिज्ञासा और ज्ञान का गहरा नाता है। गुरु रूपी सागर में ज्ञान के अनेक मोती है। शिष्य रूपी गोताखोर को जिज्ञासा रूपी पनडुब्बी से ज्ञान के मोती प्राप्त कर सकता है। जिज्ञासा दो प्रकार की होती है स्व जिज्ञासा और पर जिज्ञासा। खुद को जानना स्व और जगत को जानना परजिज्ञासा है। जो स्व को जान लेता है वो सर्व को जान लेता है। स्व को नहीं जानता उसका ज्ञान अधूरा है। ज्ञान के महल में प्रवेश पाने के लिए जिज्ञासा पगडंडी है। महावीर भगवान के इंद्रभूमि के 11 गणधरों का परिचय जिज्ञासा से ही हुआ। जिज्ञासा ऐसी हो जो हमें मोक्षमार्ग के निकट पहुंचा दे। अपूर्वा आचार्य ने कहा कि इच्छा आकाश के समान अनंत है।धन परिमित है, इच्छा का पूर्ण होना असंभव है। लोभी पुरुष को धन धान्य से भरपूर सार...

ज्ञान का अस्त कभी नहीं होता: साध्वी धर्मप्रभा

एसएस जैन संघ एमकेबी नगर स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कि इस लोक में ज्ञान के समान कोई वस्तु नहीं है। भगवान महावीर ने आत्म साधना के लिए ज्ञान को परम आवश्यक माना है। कैवल्य ज्ञान सूर्य प्रकाश से ज्यादा प्रकाश करता है। सूर्य तो मृत्यु लोक प्रकाश देता है पर कैवल्य ज्ञान तीनों लोको को प्रकाशित करता है। सूर्य को बादल ढक सकता है, राहू ग्रस्त कर सकता है और सूर्य अस्त होता है पर कैवल्य ज्ञान का अस्त कभी नहीं होता ज्ञान बिना किया गया कार्य अनैतिक है। ज्ञान श्रद्धावान को प्राप्त होता है। साध्वी स्नेह प्रभा ने कहा कि मानव को सदैव उत्तम पुरुषो की संगति करना चाहिए। क्योंकि सज्जनों की संगत हमारे संताप व परिताप का हरण चित्त को शांति प्रदान करती है। आलसी,वैर विरोध रखने वाले और स्वेच्छाचारी का साथ छोड़ देना चाहिए। दुर्जनों का संग देने से सज्जन का भी महत्व गिर जाता है। जीवात्मा को पुण्यों से सज्...

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