चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कि यदि मनुष्य का भाग्य अच्छा होता है तो प्रतिकूल स्थितियां भी अनुकूल बन जाती हैं और भाग्य अच्छा नहीं हुआ तो अनुकूल स्थितियां भी प्रतिकूल बन जाती हैं। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए अपने अच्छे भाग्य का निर्माण करना चाहिए। सबके प्रति मन में भलाई की भावना, वाणी में सत्यता व मधुरता और विचारों में स्वच्छता, आचार में नैतिकता, शरीर से सहयोग, सेवा-सुश्रुषा करने से हमारे अच्छे भाग्य का निर्माण होता है। मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता खुद होता है। औषध, मंत्र, नक्षत्र, गृह देवता ये चारों अनुकूल होते हैं तब हमारा भाग्य भी अनुकूल होता है। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा सतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ और कलियुग में दान को श्रेष्ठ माना गया है। जैन दर्शन में भी मोक्ष के चार भाग बताए गए हंै- दान, शील, तप और भावना। सच्चा धनवान वही...
चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में साध्वी धर्मप्रभा ने कहा जिंदगी में आने वाले इम्तिहानों से घबराना नहीं चाहिए। गगन में जब उजाला होने वाला होता है तब अंधकार सघन हो जाता है। सुख हमारा इंतजार कर रहा है बस एक बार दुख रूपी दरवाजे को पार करना है। संघर्षों का सामना करो परिश्रम और विवेक के बलबूते पर साधनों के अभाव में प्रतिभाएं, उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। जीवन में संघर्ष उत्कर्ष के द्वार खोलता है। दुख और संघर्ष से ही ऊर्जा बल निर्मित होता है। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा सच्चा साधु वही होता है जो आत्मा, मन और इंद्रियों को साधने का प्रयत्न करता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए संयम या भाव साधुता जरूरी है। आज तक जितने भी जीव सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए हैं उन्होंने अपनी आत्मा को त्याग और वैराग्य की साधना में तल्लीन किया है तभी सुख के अधिकारी बने। कार्यक्रम का संचालन सज्जनलाल सुराना ने किया।
एसएस जैन संघ एमकेबी नगर स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा प्रमादवश, कषाय वश हमारे द्वारा किए गए पापों का प्रायश्चित करना चाहिए। पश्चाताप तो हृदय की प्रज्वलित की गई वह ज्वाला है जिसमें हमारे पाप जलकर भस्म हो जाते हैं। बड़े बड़े पापी हत्यारे और पतित भी पश्चाताप की अग्नि में जलकर पावन हो जाते हैं। जिस प्रकार एक भार वाहक अपना भार उतार कर हलका महसूस करता है इसी प्रकार एक साधक अपने दृष्ट कृत्यों की आलोचना निंदा व पश्चाताप कर के पाप से हल्का हो जाता है। हार्दिक रूप से किया गया पश्चाताप व भविष्य में भूलों को नहीं दोहराने का संकल्प ही सच्चा प्रायश्चित है। ऐसा करने पर हृदय की कलुषता कांति में बदल जाती है। भूल का हो जाना पाप है मगर भूल को छिपाना महापाप है और भूल को बार बार दोहराना पशुता की मूर्खता की निशानी है। साधना के कंटकपूर्ण मार्ग पर चलते हुए साधु या गृहस्थ किसी से भी भूल हो सकती है मगर...
एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कि आत्मा में प्रशम गुण नहीं आता तब तक मोक्षगुण और परम सुख का अनुभव नहीं हो सकता। सम्यक दृष्टि, ज्ञानी, ध्यानी और तपस्वी भी उस सुख का अनुभव नहीं ले सकते जिस सुख का अनुभव शांत आत्मा ही कर सकती है। शम का अर्थ है शांत और प्रशम का अर्थ है विशेष शांत। कषाय ,तृष्णा, लालसा से मन में उद्वेग उत्पन्न होता है। भावों में उग्रता, उत्तेजना और चंचलता आती है और जब तक यह उत्तेजना बनी रहती है तब तक शांति नहीं मिलती। जिसका मन अंशात होता है उसे संगीत, भोजन, मान-सम्मान और दूसरे कामें में सुख का अनुभव नहीं होता। नीचे चूल्हे की जलती आग से ऊपर शीतलता कैसे आ सकती है। प्रशम भाव आने से जो आत्मिक सुख और आनंद प्राप्त होता है वो ज्ञान ध्यान से भी श्रेष्ठ है। सबसे पहले प्रशम की ही साधना करना चाहिए। साध्वी स्नेह प्रभा ने ब्रह्मचर्य का महत्व बताते हुए कहा कि ये तपों...
एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कि पर्यूषण हमें मानसिक की शुद्धि और भावों को निर्मल रखने का संदेश देता है। मानसिक शुद्धि तो शुभ विचार और शुभ भावों से होती है। अध्यात्म चिंतन करने से मन शुद्ध होता है। चिंतन व चिंता ये दो शब्द है जिसमें धरती और अंबर जितना बड़ा अंतर है। चिंतन आत्मा को ऊध्र्वगामी बनाता है और चिंता अधोगामी बनाती है। चिंता से मन मतिष्क में तनाव पैदा होता है। चिंता की गर्मी से ज्ञान तंतु नष्ट हो जाते हैं जबकि शुभ चिंतन से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हो जाता है। अशांत मन भी शांत और प्रफुल्लित हो जाता है। साध्वी स्नेहप्रभा ने अंतकृत दशांग सूत्र का वाचन करते हुए कहा कि यदि हमारी धर्म भावना सुदर्शन की तरह सुदृढ, सच्ची श्रद्धा व भक्ति और अपने आराध्य के प्रति संपूर्ण समर्पण हो जाए तो हम बड़ी विघ्न बाधाओं का सामना सरलता से कर सकते हैं और उनमें विजय भी प्राप्त...
एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा व स्नेहप्रभा के सान्निध्य में पर्यूषण पर्व का चौथा दिन प्रमोद दिवस के रूप में मनाया गया। इस मौके पर साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कल्पसूत्र में जिन दस कल्पों का वर्णन मिलता है उनमें से पर्यूषण एक अनित्य कल्प है। प्रथम व अंतिम तीर्थंकर के समय में ही पर्यूषण कल्प होता है मध्य के 22 तीर्थंकरों के समय में पर्यूषण नहीं होता है। साध्वी ने अचिलक्य, अद्विशिक, शय्यातर, राजपिंड, कृतिकर्म व व्रत आदि कल्पों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कृष्ण चारित्र के माध्यम से बताया कि संसार में अनंत प्राणी जन्मते व मरते हैं लेकिन सभी को पुरुषोत्तम नहीं कहा जाता। कोई भी मानव केवल सुंदर रूप, रूप, ऐश्वर्य या बल से पुरुषोत्सम नहीं कहला सकता। पुरुषोत्तम वही ंकहलाते हंै जो धरती पर जन्म लेकर धर्म की रक्षा करते हैं और धर्म रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर प्राण भी न्यौछावर क...
एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन कहा कि पर्यूषण शाश्वत भी है और अशाश्वत भी। भाव की दृष्टि से शाश्वत है और काल की दृष्टि से अशाश्वत है। सत्य दिवस रूप में मनाए गए इस दिवस पर कृष्ण चरित्र का वाचन करते हुए उन्होंने कहा वे महान कर्मयोगी भी थे और ध्यानयोगी भी। उन्होंने लोकनीति और अध्यात्म का समन्वय किया। वे एक सफल राजनीतिज्ञ भी थे। नम्रता और विनय की पराकाष्ठा के दर्शन उन महान योगीश्वर के जीवन में होते हंै। समाज सुधारक, शांति दूत, ज्ञानेश्वर, अध्यात्म योगी,प्रेम की मूर्ति, उदारता जैसे कई गुणों के स्वामी थे। सााध्वी स्नेह प्रभा ने सत्य दिवस पर चर्चा करते हुए कहा कि भगवान सत्य है यह कहने के बदले ये कहना उचित होगा कि सत्य ही भगवान है। मनुष्य के धर्म की जितनी भी क्रियाएं हैं उन सबका लक्ष्य सत्य ही है। हमारी आत्मा अनादि काल से असत्य के अंधकार में फंसकर द...
एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा व स्नेहप्रभा के सान्निध्य में पर्यूष्यण पर्व के पहले दिन नवकार मंत्र का अखंड जाप शुरू हुआ। इस अवसर पर साध्वी धर्मप्रभा ने कहा यह पर्व आत्मा की परम शुद्धि करने वाला है। यह प्रत्येक आत्मा को अध्यात्मोन्मुखी दृष्टि प्रदान करता है। वैर विरोध का शमन कर प्रेम क्षमा मैत्री की त्रिवेणी प्रवाहित करता है। किसी दूसरे की निन्दा न कर स्वयं में झांकना ही पर्यूषण पर्व का संदेश है। यह पर्व हमें अंतरमुखी दृष्टि देता है। सरलता से जीवन को सरस और सहज बनाने में पर्यूषण की सार्थकता है। तप, त्याग और अनुष्ठान श्रद्धा से अंगीकृत करें। बड़े ही पुण्य से ये अवसर मिलता है। इसका लाभ लेना चाहिए। उन्होंने कृष्ण चरित्र का वाचन भी किया। इससे पहले साध्वी स्नेहप्रभा ने अंतगढ़ सूत्र का वाचन करने के बाद अहिंसा दिवस पर कहा कि भगवान महावीर का धर्म दया, अहिंसा और करुणा का धर्म ह...
एसएस जैन संघ एमकेबी नगर स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कि इस लोक में ज्ञान के समान कोई वस्तु नहीं है। भगवान महावीर ने आत्म साधना के लिए ज्ञान को परम आवश्यक माना है। कैवल्य ज्ञान सूर्य प्रकाश से ज्यादा प्रकाश करता है। सूर्य तो मृत्यु लोक प्रकाश देता है पर कैवल्य ज्ञान तीनों लोको को प्रकाशित करता है। सूर्य को बादल ढक सकता है, राहू ग्रस्त कर सकता है और सूर्य अस्त होता है पर कैवल्य ज्ञान का अस्त कभी नहीं होता ज्ञान बिना किया गया कार्य अनैतिक है। ज्ञान श्रद्धावान को प्राप्त होता है। साध्वी स्नेह प्रभा ने कहा कि मानव को सदैव उत्तम पुरुषो की संगति करना चाहिए। क्योंकि सज्जनों की संगत हमारे संताप व परिताप का हरण चित्त को शांति प्रदान करती है। आलसी,वैर विरोध रखने वाले और स्वेच्छाचारी का साथ छोड़ देना चाहिए। दुर्जनों का संग देने से सज्जन का भी महत्व गिर जाता है। जीवात्मा को पुण्यों से सज्...
श्री एसएस जैन संघ एमकेबी नगर एवं साध्वी धर्मप्रभा व स्नेहप्रभा के सान्निध्य में मरुधर केशरी मिश्रीमल एवं वरिष्ठ प्रवर्तक रूपमुनि की जन्म जयंती मनाई गई। विशिष्ट अतिथि एसएस जैन संघ साहुकारपेट के अध्यक्ष आनंदमल दल्लाणी, महावीरचंद बोहरा, मोहनलाल चोरडिया, पदमचंद कांकरिया, वईसराज रांका, दीपचंद लूणिया, डा. उत्तमचंद गोठी व सज्जनराज मेहता थे। दर्शना महिला मंडल व त्रिशला बहू मंडल के स्वागत गीत से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। चातुर्मास समिति के चेयरमैन पारसमल लोढा ने स्वागत भाषण दिया। इस मौके पर साध्वी धर्मप्रभा ने कहा मरुधर केशरी का जीवन एक जलती हुई जो आज भी पूरे समाज एवं संघ का मार्गदर्शन करती है। वे दृढ़ संकल्पी, अटूट विश्वास के धनी, दीन-दुखियों के हितेषी, जीवदया के प्रबल प्रेरक, आत्मविश्वास से परिपूर्ण और श्रवण संघ की ढाल थे। उन्होंने श्रमण संघ को एकसूत्र में पिरोने के लिए सात बार राजस्थान में साधु स...
एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा श्रद्धा स्वयं की आत्मा से प्रारंभ होती है। आपकी श्रद्धा स्वयं पर है तो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी निर्भय बने रहकर अपनी मंजिल पा लेंगे। जिसे खुद पर श्रद्धा नहीं उसकी परमात्मा पर श्रद्धा भी मिथ्या है। आत्मा स्वयं ही अपनी रक्षक है। आपकी श्रद्धा ही आपको पार उतारेगी। श्रद्धा और विश्वास जीवन विकास के दो मुख्य आयाम है। असीम श्रद्धा व्यक्ति को ज्योतिर्मय बना सकती है। श्रद्धा का अर्थ है अपनी आत्मा की पहचान। अपने आप पर विश्वास। श्रद्धा का अर्थ केवल यह नहीं है कि हम परमात्मा या उनकी शक्तियों पर विश्वास करें। साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा संयम वह शक्ति है जो अपवित्र आत्मा को पवित्र, दास को पूजनीय, मूर्ख को ज्ञानवान बना देती है। संयमपूर्ण आत्मा मोक्ष के पथ पर चलकर जल्दी ही शाश्वत और अनंत सुख प्राप्त कर लेती है। संयम मार्ग का कोई सरल मार्ग नहीं...
एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कि जिदंगी एक बंासुरी की भांति है जो अपने में खाली और शून्य होते हुए भी संगीत पैदा करने का सामथ्र्य लिए हुए है। यह बजाने वाले पर निर्भर करता है कि कौन कैसे बजाता है। उस पर राग के सुर गाता है या वैराग्य के। बांसुरी के दिव्य स्वर आत्मा को जगा सकते है। जीवन छोटा हो या बड़ा हो महत्व इस बात का नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि जीवन कैसे जिया जाता है। जीवन छोटा ही हो पर प्रशस्त जीवन जियो। यदि हमें जीवन जीने का सलीका न आया तो जीवन जीने का क्या मकसद? हम जी रहे हैं क्योंकि सांस चल रही है। एक अंधी और अंतहीन पुनरुक्ति में जीवन बीतता चला जा रहा है। साध्वी स्नेह प्रभा ने कहा कि भोग में रोग का, कुलीन को पतन का, धनवान को राजा का, मौन में दीनता का, बल में शत्रुता का, रुप में बुढ़ापे का, शास्त्र ज्ञान में वाद विवाद का, गुणवान को दुर्जन का, शरीर धारण करने ...