चेन्नई. बुधवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। उपाध्याय प्रवर ने जैनोलोजी प्रैक्टिकल लाइफ में सफलता के सूत्र बताते हुए कहा कि यदि कोई आपके साथ सकारात्मक न भी रहे तो आपको सकारात्मक अवश्य रहना चाहिए। यदि आप सकारात्मक रहोगे तो सामने वाले के भी सकारात्मक होने की संभावनाएं बनी रहती हैं कि वह कभी न कभी सकारात्मक हो सकता है। जिस प्रकार बीज कभी भी अनुकूलता मिलने पर अंकुरित होकर पेड़ बन सकता है इसी प्रकार हमारे कर्मों के बीज भी कब और कौन-से भव में उदय हो जाएं पता नहीं चलता। संसार का प्रत्येक व्यक्ति सफल और सम्मानित होना चाहता है। जिस जीव को कहीं भी जाकर सम्मान, सहयोग और उपकार करने वाले मिलते हैं वह उच्च गौत्र का माना गया है और जिसे हर जगह असहयोग और अपमान का...
चेन्नई. मंगलवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। उपाध्याय प्रवर ने जैनोलोजी प्रैक्टिकल लाइफ में कहा कि हमारी आत्मा का एक मूल स्वरुप होता है और एक ग्रहण किया हुआ है। जो बाहरी स्वरूप है, यह हमारी आत्मा की मूल प्रकृति नहीं है। इसी के कारण जाने-अनजाने में हमारे लिए समस्याएं खड़ी होती रहती है, इसी से किसी गति का बंध और सुख-दु:ख होते हैं। इन्हें अघाती कर्म कहा गया है जो जीवन में समस्याएं खड़ी करते हैं, लेकिन मूल आत्मा के स्वरूप को प्रभावित नहीं कर सकते। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि यदि अच्छा करते हुए भी हम अशुभ नामकर्म का बंध कर लेते हैं। सेवा करते हुए भी मन में नकारात्मक भाव आ जाए तो पाप कर्म का बंध हो जाता है। मन, क्रिया अच्छी होती है लेकिन जुबान में हम खरा...
चेन्नई. शनिवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज का प्रवचन कार्यक्रम हुआ। उपाध्याय प्रवर ने जैनोलोजी प्रैक्टिकल लाईफ सत्र में युवाओं को कहा कि जीवन में सफलता के लिए तीन चीजें शरीर, दिमाग और आत्मा अत्यंत जरूरी है। इन तीनों के साथ यदि श्रद्धा का समावेश हो जाए तो सफलता को उत्कृष्टता शिखर पर पहुंचा सकते हैं। श्रद्धा के साथ की गई क्रिया आराधना बन जाती है। श्रद्धा आ जाए तो आपकी भावना ही भक्ति बन जाती है। आपसी रिश्तों की यदि समझ आ जाए और उनमें पारदर्शिता हो तो आपके रिश्तों को कोई भी क्षति नहीं पहुंचा सकता। उपाध्याय प्रवर ने बताया कि अंतराय कर्म तोडऩे का पहला सूत्र है कि जो आपको आज तक प्राप्त नहीं हुआ वह दूसरों को देना शुरू कर दें। इस भावना से नहीं कि वह पुन: लौटाएगा। यदि शुरुआत नकारात्मकता से कर देंगे तो सकारात्मकता आ नहीं पाएगी। ...
चेन्नई. गुरुवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। उपाध्याय प्रवर ने जैनोलोजी प्रैक्टिकल लाइफ में कहा कि इस पूरे संसार का मूलाधार जो है वही पूरा संसार है, इसे खोजने का परमात्मा कहते हैं। संसार का जन्म आपके अन्तर के भावों, सोचने के तरीकों से होता है। यदि बीज को समाप्त कर दिया जाए तो पेड़ और फल-फल आ ही नहीं पाएंगे। इसी प्रकार इस संसार के मूलरूपी भय, लोभ, मान, माया के मूल को पहचानकर उनका त्याग करें। दु:खों से दूर नहीं भागें बल्कि दु:ख होने के कारण को जानकर उसको दूर करें। जब स्वयं से ज्यादा ज्ञान वाले व्यक्ति के साथ रहते हैं तो आपके ज्ञान में वृद्धि होती है और कम ज्ञान वाले चापलूस लोगों के साथ रहोगे तो आपकी एनर्जी भी वैसी ही हो जाएगी। ज्ञानी व्यक्ति आपको ...
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि कहा प्रायश्चित प्रार्थना से मिलता है और सजा या अपराध सिद्ध हो जाने पर मिलती है। प्रायश्चित करने और देने वालों में आपसी प्रेम बना रहता है और दण्ड या सजा देने पर आपस में वैर-दुश्मनी पनपती है। इसलिए अपने किए गए पापों के लिए कभी स्वयं को अपराधी बनाकर दंड न दें बल्कि उसका प्रायश्चित करें जो आपका जन्म-जन्मांतर सुधारकर कर्मों की निर्जरा करता है। अपने सामथ्र्य को स्वीकार करने पर ही वह आपका आचरण और स्वभाव बनेगा। अपनी आत्मा के शाश्वत स्वरूप को पहचानकर उसे स्वीकार करें। क्षमापना की प्रक्रिया का पहला सूत्र है- अपनी गलतियों को स्वीकार करना, न कि स्वयं को अपराधी मानना। जो व्यक्ति स्वयं को क्षमा कर सकता है उसी में दूसरों की गलतियों को भी क्षमा करने का सामथ्र्य होता है। जिसकी अन्तरात्मा में उजाला है उसमें कभी अंधकार हो ही नहीं सकता। सजा...
चेन्नई. रविवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषिजी ने आचारांग सूत्र में त्रसकाय जीवों की श्रेणी के बारे में बताया। वे जीव त्रसकाय कहलाते हैं जिन्हें पीड़ा का अनुभव हो। जो बन भी सकता है और बिगड़ भी सकता है। दो इन्द्रिय जीवों से पंचेन्द्रियों तक के जीवों में सुधरने और बिगडऩे दोनों की स्थितियां हो सकती है। जो त्रसकाय जीव अपनी पांचों इन्द्रियों का सदुपयोग करता है वह शिखर को छू सकता है, मोक्ष को आसानी से प्राप्त कर सकता है, एकलव्य के समान बन सकता है। पंचेन्द्रिय जीव स्वयं में सुधार भी ला सकता है और बिगड़ भी सकता है। जिस प्रकार दुर्योधन को सुधारने के लिए अनेक वाक्य लगे लेकिन वह द्रोपदी के मात्र एक वाक्य से बिगड़ा और परिणाम महाभारत ...
गुरुवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज द्वारा पर्युषण पर्व के अंतिम दिन संवत्सरी महापर्व पर उपस्थित जैन मैदिनी को प्रवचन में कहा कि साधर्मिक की सेवा करना तीर्थंकर परमात्मा की भक्ति करने के समान है। जो इस भावना के साथ अपने साधर्मिक भाइयों की सहायता करनी चाहिए। आज महापर्व पर ऐसी भावना भाएं कि इस संसार से आज तक बहुत कुछ लिया है और अब मुझे इस संसार को देना है और मानव, साधर्मिक, और संघ सेवा को अपना उद्देश्य बनाएं। जीवन में यदि किसी के विचारों से असहमती हो तो उसे अपने मन में गांठ की तरह न बांधें, दुश्मनी का रूप न दें। क्षमा के महापर्व पर प्रण लें कि यदि किसी से एग्री न हो तो कभी भी एंग्री न होंगे। यदि संघ में किसी बात पर असहमति हो जाए तो भी ऐसा प्रयास करें कि संघ की प्रभावना ही हो विरोध नहीं।...
बुधवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज द्वारा पर्युषण पर्व के अवसर पर ‘‘व्यवसाय की सफलता’’ विषय पर विशेष व्याख्यान आयोजित हुआ। उपाध्याय प्रवर ने बताया कि पर्युषण पर्व पर अधिक से अधिक धर्माराधना के द्वारा अपने तन, मन और चेतना को सदा-सदा के लिए निर्मल बनाएं। यदि घड़ा बनाया जाए और उसे आग में नहीं तपाया जाए तो वह कभी भी पुन: किचड़ में बदल सकता है। मिट्टी की सारी तपस्या और सहनशीलता मिट्टी में मिल सकती है। इसी प्रकार यदि धर्माराधना करने के बाद भी उसे अपने जीवन में बनाए रखें, आचरण में ढ़ाल लेंगे तो ही जीवन की सफलता है। गोशालक यदि अंतिम समय में जो क्षमायाचना की थी वह परमात्मा से कर लेता तो कितने ही जीव भव से तर जाते। परमात्मा ने परंपराओं को तोडक़र भी उसे दीक्षा दी लेकिन उसने उन्हीं से विश्वासघात ...
मंगलवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज द्वारा पर्युषण पर्व के अवसर पर ‘‘व्यवसाय की सफलता’’ विषय पर विशेष व्याख्यान आयोजित हुआ। उपाध्याय प्रवर ने बताया कि परमात्मा ने जैन धर्म में सर्वज्ञ बनना अनिवार्य किया गया है। ऐसी बातें जिन्हें पुण्य-पाप की कसौटी पर नहीं कसा जा सके उनका समाधान भी तीर्थंकर प्रभु ने दिया है। परमात्मा महावीर ने कहा है कि बिजनेस की सफलता से पहले बिजनेसमेन का व्यक्तित्व, चरित्र और प्रतिभा का विकास होना जरूरी है। सफलता का पहला सूत्र है- परस्परोग्रह जीवानां। जब तक परस्पर सहयोग नहीं करते सफल होने की संभावना नहीं है। पुराने समय में अन्यत्र व्यापार हेतु जाने के लिए दूसरों को भी अपने सहयोग देते हुए साथ ले जाकर व्यापार बढ़ाने में मदद की जाती थी, आपस में सहयोग रहता था। जब अपने स...
सोमवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज द्वारा पर्युषण पर्व के अवसर पर ‘‘संग्रह और परिग्रह में अन्तर’’ विषय पर विशेष व्याख्यान आयोजित हुआ। उपाध्याय प्रवर ने बताया कि जीवन में संग्रह करना पाप नहीं है लेकिन संग्रह किए हुए पर अपना अधिकार जमाए रखना परिग्रह है, पाप है। इस दुनिया में संग्रह पर अधिकार की ही समस्त लड़ाईयां हैं। परमात्मा कहते हैं कि यदि खुला आसमान चाहिए तो परिग्रह को छोड़ें, अपने अधिकारों को छोड़ें। मृत्यु के बाद छूटे उससे पहले अपने अधिकारों को छोडऩे वाला मोक्ष का अधिकारी बनता है। संग्रह करने का जिसके पास सामथ्र्य है उसे अपनी योग्यता का पूरा उपयोग करते हुए जितना कर सकते हो उतनी ज्यादा कमाई करना चाहिए और साथ-साथ धर्म कार्यों भी करना चाहिए, पुन: बांटना भी चाहिए। धर्म में संग्रह की म...
पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा बिना मंजिल के रास्तों पर चलेंगे तो भटकते ही रह जाएंगे। जिसे अपनी मंजिल नजर आए उसे परमात्मा श्रद्धाशील कहते हैं। अपनी मंजिल चुनें और फिर उसे प्राप्त करने की तैयारी शुरू करें। अपने रास्ते नहीं मंजिल तय करें। गति ही संसार का नियम है लेकिन जीव की प्रगति तभी हो सकती है जब वह चाहेगा। कोई जीव कैसे प्रगति कर सकता है? कई जीवों को बहुत परिश्रम के बाद भी प्रगति नहीं कर पाते। गति अधो भी हो सकती है और ऊध्र्व भी, यह जीव की इच्छा पर निर्भर करता है। प्रगति का पहला रहस्य है- तुम्हारा लक्ष्य, ध्येय और कामना क्या है। तपस्या करने के बाद भी समाधि का जागरण नहीं हो पाता, पूर्णता व लक्ष्यपूर्ति नहीं हो पाती इसका एकमात्र कारण है कि हमने साधनों को साध्य बना दिया है। युद्ध को भी कला बनाया जा सकता है। इसके लिए स्वयं को कलाकार बनना पड़ता है। अपने इस ...
शुक्रवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई मे चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एव तीर्थेशऋषि महाराज द्वारा पर्युषण पर्व के अवसर पर विशेष प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित हुआ। उपाध्याय प्रवर ने उपस्थित जन मैदिनी को पर्युषण पर्व का सकल्प कराया। पर्युषण पर्व की महिमा बताते हुए कहा कि प्रतिक्रमण करने का महत्व बताते हुए कहा कि राजा स ́प्रति द्वारा अपने पूर्व जन्म मे बिना जाने-समझे मा ̃ा अपनी भू१ शा ́त करने के लिए एक दिन से भी कम समय का साधु जीवन और आधी-अधूरी धर्म क्रिया की थी जिसके बाद उसका आयुष्य पूर्ण हो गया, जिसके फलस्वरूप वह राजा बना। इसलिए जो बिना जाने-समझे भी धर्मक्रिया करता है, उसका फल बहुत मिलता है। हमे अपना इतिहास जानना चाहिए कि हमारे पूर्वज कैसे धर्म शि१र पर पह ́ुचे और उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। परमात्मा प्रभु कहते है कि जो सारे दु:१ो के मूल पापो को...