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धर्म के लिए दांव पर लगाना पड़ता है जीवन: साध्वी साक्षीज्योति

चेन्नई. न्यू वाशरमैनपेट जैन स्थानक में विराजित साध्वी साक्षीज्योति ने कहा सिर्फ जैन परिवार में जन्म लेना ही सच्चा जैन नहीं होता। जैन परिवार में जन्म लिया पर जीवन में जैनत्व नहीं आया तो वह प्रभु की नजर में सच्चा जैन नहीं है। धर्म के लिए जीना पड़ता है और जीवन दांव पर लगाना पड़ता है तभी धर्म सुरक्षित रहता है। इतिहास गवाह है कि धर्म को सुरक्षित रखने के लिए कितने श्रावकों ने कुर्बानियां दी है। जहां पर वेज-नॉनवेज दोनों मिलते हैं ऐसी होटल में जैन कभी नहीं जाएगा। उसका जमीर इसकी इजाजत नहीं देगा। जो सच्चा जैन होगा वह मद्यपान, मांस आदि का सेवन कदापि नहीं करता। नवकार मंत्र के प्रति उसकी सच्ची श्रद्धा होती है और रात्रिभोज का त्याग करता है। ये सारी बातें जिस इन्सान के जीवन में है वह परमात्मा की नजर में सच्चा जैन है। संचालन संजय दुगड़ ने किया।

कर्म निर्जरा धर्म से होगी धर्मक्रियाओं से नहीं: साध्वी कंचनकंवर

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम मेमोरियल सेन्टर में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सान्निध्य में साध्वी हेमप्रभा’ ने कहा व्यापार में बिक्री और नफा दोनों अलग-अलग होती हैं। यदि मेहनत से कम लाभ मिले तो हम चिंतन और सुधार करते हैं। उसी प्रकार धर्मक्रियाओं से आप धर्ममार्ग पर कितने आगे बढ़े हैं, कितनी निर्जरा की है, इसका चिंतन करें और स्वयं में सुधार लाएं। धर्मस्थल भी एक प्रकार से धर्म करने की दुकान जैसे है, जहां पर यदि आपके कर्मों की निर्जरा नहीं हो रही है तो कहीं न कहीं कमी आपमें है जिसे सुधारना होगा। जीवन में यदि धर्म नहीं है तो मात्र धर्मक्रियाओं से निर्जरा नहीं होगी। उन्होंने आचरण योग्य दो धर्म आगार और अणगार के बारे में बताया कि अगार धर्म श्रावक या गृहस्थी के लिए है और अणगार संतों के लिए है। कांच कटोरा नैन जल मोती अरू मन, एका फाटा ना मिले पहले करो जतन। आगार धर्म के नियम खंडित होने पर पुन: गुरु...

शक्रस्त पूजन के अनुष्ठान में हिस्सा लिया श्रद्धालुओं ने

चेन्नई. किलपॉक श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन मंदिर में विराजित आचार्य तीर्थभद्रसूरीश्वर की निश्रा में रविवार को शक्रस्तव पूजन का अनुष्ठान हुआ। इस अवसर पर मेरुपर्वत की मनमोहक रचना की गई। आचार्य ने शक्रस्तव पूजन पर रोशनी डालते हुए बताया जब कोई तीर्थंकर भगवान की आत्मा स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक में माता की कुक्षी में प्रवेश करती है तब इन्द्र देव का सिंहासन कंपित होता है और इन्द्र देव अपने ज्ञान से प्रभु का च्यवन जानकर अपने अलंकारों का त्याग कर अपना दांया पैर ऊपर उठाकर प्रभु की स्तुति करते हैं इसलिए शक्रस्तव के नाम से जाना गया। शुक्र यानी इन्द्र और उनके द्वारा की गई स्तुति यही है शक्रस्तव। नमत्थुणं सूत्र के भाव से लेकर मुनि तीर्थ तिलकविजय ने सरल भाषा में पूजन की रचना की जिसमें आठ प्रकार के द्रव्य से प्रभु की भक्ति की गई। शाम को संध्या भक्ति का आयोजन हुआ। बौदा के कर्णिक भाई ने शास्त्रीय संगीत के साथ प...

जीवन रूपी महल की नींव है धर्म: कपिल मुनि

कपिल मुनि का जन्मदिवस मनाया चेन्नई. विरुगम्बाक्कम स्थित एमएपी भवन में विराजित कपिल मुनि का रविवार को जन्मदिवस 3-3 सामायिक साधना व एकासन तप की आराधना के साथ मनाया गया। इस मौके पर मुनि ने कहा जैसे बिना नींव के मकान का निर्माण नहीं होता वैसे ही बिना धर्म के जीवन का कोई भी सपना पूरा नहीं होता । जीवन रुपी महल की नींव है धर्म। जिसके जीवन में धर्म की प्रतिष्ठा होती है वही जीवन वंदनीय और स्मरणीय होता है । इस संसार में ऐसा कुछ भी स्थिर और शाश्वत नहीं है जिससे जुडऩे में सार दिखाई देता हो। शरीर को रोग का भय है, सुंदरता को बुढ़ापे का, संपत्ति को चोर का और सत्ता को चले जाने का भय सदैव रहता है । इस भय से उबरने में कदाचित सफलता भी मिल जाए मगर जीवन के साथ जो मृत्यु का भय लगा हुआ है उससे उबरने की ताकत दुनिया के किसी में नहीं है। हमारे भीतर एक ऐसा स्थिर घटक है जिससे जुड़ जाने के बाद किसी भी प्रकार का भय मन ...

धर्म ढोंग से नहीं ढंग से किया जाए: जयधुरंधर मुनि

चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा धर्म की प्रयोगशाला घर से ही प्रारंभ होती है मगर विडंबना है कि व्यक्ति धर्म क्रियाएं धर्म स्थान पर तो करता है मगर घर है उसको आचरण में नहीं उतरता। क्षमा केवल शाब्दिक ना होकर आचरण में हो तो परिवार के किसी सदस्य में वैरभाव नहीं रहेगा। घर में बुजुर्ग माता-पिता आदि के प्रति भी नहीं रखते हुए जो सेवा की जाती है वहीं सर्वश्रेष्ठ है। धार्मिक स्थल सामाजिक स्तर पर की जाने वाली मानव सेवा आदि से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है अपने पर आश्रित वृद्धजनों की सेवा। घर में अपनी भाषा व्यवहार विवेकपूर्ण होना चाहिए ताकि किसी भी परिवार के सदस्य के हृदय को ठेस ना पहुंचे। घर के हर कार्य को विवेक से करने पर जीवो की विराधना से भी बचा जा सकता है। अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों में भी समभाव रखने से घर में कभी क्लेश का वातावरण उपस्थित नहीं होगा। क्षमा, ...

सम्मान चाहिए तो सम्मान करना सीखें: साध्वी सिद्धिसुधा

विश्वशांति जाप अनुष्ठान का आयोजन चेन्नई. साहुकारपेट के जैन भवन में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने रविवार को कहा कि वर्तमान में लोग सांसारिक कार्य में इस तरह से फंसे हैं कि उनका धर्म की ओर ध्यान ही नहीं जाता। लेकिन आत्मा की शुद्धि के लिए तप, जप करना बहुत ही जरूरी होता है। एक बार महावीर भगवान से गौतमस्वामी ने पूछा था कि प्रत्याखान करने से जीवन में किस चीज की प्राप्ति होती है, तब महावीर ने बताया था कि प्रत्याखान मन को भाने वाली होती है उसे स्वेच्छा से की जानी चाहिए। त्यागी वह नहीं होता जो किसी के कहने पर किसी चीज का त्याग करता है बल्कि त्यागी वह होता है जो अपनी स्वेच्छा से त्याग के लिए आगे आता है। इच्छाओं पर नियंत्रण करना ही प्रत्याख्यान कहलाता है। साध्वी समिति ने कहा वर्तमान में लोगों की सोच की वजह से जनरेशन गैप बढ़ता जा रहा है। लोग दूसरों की सुनने के बजाय खुद ही सुनाते हंै जिसकी...

मोक्षप्राप्ति धर्म की आखिरी सीढ़ी: आचार्य वर्धमान सागरसूरी

पहले जागरण शिविर में उमड़ा जनसैलाब चेन्नई. वेपेरी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ के तत्वावधान एवं आचार्य वर्धमान सागरसूरी के सान्निध्य में प्रथम जागरण शिविर का आयोजन हुआ। मुख्य अतिथि मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश विनीत कोठारी थे। इस मौके पर आचार्य विमलसागरसूरी ने अनेक संवेदनशील विषयों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा समाज में धन और धनवानों का नहीं, गुण और गुणवानों का प्रभुत्व होना चाहिए। गुण संपन्न श्रीमंत ही समाज का भला कर सकते हैं। धन का प्रदर्शन कम किया जाना चाहिए और गुणों की पूजा होनी चाहिए। गुण ही मानव को महान बनाते हैं। बाहर की खूबसूरती और चकाचौंध में भी अवगुण छिप नहीं सकते और फटे-पुराने चिथड़ों में भी गुणों की महक आए बिना रह नहीं सकती। उन्होंने कहा न्याय-नीति का मार्ग ही सुख-शांति का मार्ग है। बेईमानी का धन तो सबकुछ बर्बाद कर देता है। मोक्षप्राप्ति धर्म की आखिरी सीढ़ी है। जो आत्मा-पर...

अनन्त की अनुभूति का सशक्त माध्यम है नमस्कार महामंत्र : मुनि रमेशकुमार

श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी ट्रस्ट ट्रिप्लीकेन के तत्वावधान में आचार्यश्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री रमेशकुमार के सान्निध्य में रविवार से नमस्कार महामंत्र साधना प्रयोग साप्ताहिक कार्यशाला का आज से प्रारंभ हुई| जो 27 जुलाई तक प्रात: 9:30 से 10:30 बजे तक चलेगी|  नमस्कार महामंत्र की ऐतिहासिकता बनाते हुए मुनि श्री रमेशकुमार ने कहा कि मनुष्य चेतनावान है, उसमें अनंत ज्ञान को प्राप्त करने की क्षमता है। फिर भी वह अपने आप को अल्पज्ञानी मानता है। शक्ति संपन्न होते हुए भी शक्तिहीन मानता है। वीतराग बनने की क्षमता और परम आत्मा होते हुए भी उस शक्ति का विकास नहीं कर पा रहा है। इसका मूल कारण है अपने आप से अपरिचित होना। आत्मा में निहित अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत शक्ति और अनंत आनंद की अनुभूति का सशक्त माध्यम नमस्कार महामंत्र की साधना है। मुनि रमेश कुमार ने आगे कहा कि नमस्कार महामंत्र जैन धर्म ̵...

सम्यक् जीवन निर्माण में सहयोगी मंत्र दीक्षा : मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमार

अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के निर्देशानुसार तेरापंथ युवक परिषद् चेन्नई द्वारा मुनि श्री ज्ञानेंद्र कुमार जी ठाणा 3 के सान्निध्य में मंत्र दीक्षा का कार्यक्रम आयोजित किया गयाl मुनि श्री के महामंत्रोच्चार एवं राकेश माण्डोत के मंगलाचरण से कार्यक्रम प्रारम्भ हुआl तेयुप अध्यक्ष श्री प्रवीण सुराणा ने स्वागत भाषण दिया | मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमारजी ने बच्चों को मंत्र दीक्षा दिलाते हुए कहा कि सभी बच्चे सुबह उठकर माता पिता और अपने से बड़ो को प्रणाम करे एवं नियमित 27 बार नवकार मंत्र के जाप की माला अवश्य फेरे| मुनि श्री ने विशेष पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि व्यक्ति के सम्यक् जीवन निर्माण में मंत्र दीक्षा एक मील का पत्थर साबित होता हैं|  शहर के विभिन्न क्षेत्रों से आये हुए लगभाग 180 बच्चो ने मंत्र दीक्षा ग्रहण कीl  प्रायोजक श्री जे. रणजीतमल अक्षयकुमार ध्रुव छल्लाणी परिवार द्वारा सभी बच्चों को मंत्...

बच्चों की पहली संस्कारशाला माता पिता मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमार

बाल संस्कार निर्माण शिवीर का हुआ आयोजन मुनिश्री ज्ञानेंद्रकुमारजी के सान्निध्य में श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के निर्देशानुसार तेरापंथ सभा, चेन्नई की आयोजना में साहूकारपेट तेरापंथ सभा भवन में बाल संस्कार निर्माण शिविर का आयोजन किया गया|     मुनिश्री ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि बच्चों की पहली संस्कारशाला माता पिता होते हैं| जन्म से ही माता पिता के द्वारा सम्यक् संस्कारों के बीजारोपण से बच्चों में सुसंस्कारों से उनका जीवन सुवासित हो जाता हैं|  मुनि श्री ने नमस्कार महामंत्र के महत्व और नियमित रूप से जाप करने पर इसके लाभ के बारे में बताया। श्रीमती बबीता बैद ने संचालित प्रेरक भाषण दिया| श्रीमती अनिता जी चोपड़ा द्वारा इंटरएक्टिव सत्र लिया गया।  दिप्ती नाहर और दिव्यांश नाहर ने ज्ञानशाला में आने के लाभों को साझा किया| श्री हरीशजी भंडारी ने योगाभ्यास सत्र में प्रशिक्षण दिया| मध्...

जिनशासन की पुकार क्लास में साध्वी मुदितप्रभा ने दिया प्रेरक उद्बोधन

चेन्नई. किलपॉक के कांकरिया गेस्ट हाउस में आयोजित ‘जिनशासन की पुकार’ क्लास में साध्वीश्री मुदितप्रभा म.सा ने कहा कि हमें ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे जिनशासन के इतिहास में मेरा नाम आग लगाने वालों में नहीं बल्कि आग बुझाने वालों में आए। कभी भी जिनशासन की हीलना, निन्दा हो ऐसा गलत प्रचार नहीं कारना चाहिए। आचार्य हस्ती ने दस वर्ष की उम्र में संयम अंगीकार किया और जिनशासन की सुंदर जाहोजलाली की, जैन इतिहास में ऐसे अनेकों सन्त रत्न महापुरुष हुए जिन्होंने जिनशासन के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया। हम सभी ऐसा संकल्प करें कि शासन मेरा है और मैं शासन का। जिनशासन मेरा शासन है, मैं अपने आपको जिनशासन के लिए समर्पित करता हूं।  मेरे लिए मेरी आवश्यकताएं बाद में पहले जिनशासन की सेवाएं हैं। जीना जिनशासन के लिए, मरना जिनशासन के लिए सब कुछ जिनशासन के लिए। तन, मन, धन सभी जिनशासन के लिए अर्पण। युवा वर्ग क...

मां, महात्मा और परमात्मा का आशीर्वाद मिले तो जीवन में कभी नहीं आएगी समस्या

चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वीश्री सुमित्रा म.सा. ने रविवार को अपने चातुर्मासिक प्रवचन में कहा जिस व्यक्ति को मां, महात्मा और परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त होता है उसके जीवन में कभी समस्या नहीं आती। बचपन मां संभालती है जवानी महात्मा और बुढापे का सहारा परमात्मा होते हैं। बचपन में मां से बच्चा संस्कारों का अर्जन करता है। मां ही बच्चे के जीवन निर्माण की पहली सीढी होती है। जवानी की अवस्था में अगर मनुष्य अगर गलत राह पर चलने लगता है तो उसे संतं-गुरु के पास भेजा जाता है। गुरु चरणों मेंं जाने पर भक्त की नैया पार लग जाती है। जैसे दीपक प्रज्वलित करने के लिए माचिस और घड़ी को चलाने के लिए बैटरी की जरूरत होती है उसी प्रकार जीवन को आगे बढाने के लिए गुरु की परम जरूरत होती है। गुरु ही पथ भटके शिष्यों को सही मार्ग दिखाते हैं। यदि शिष्य गुरु के दिखाए मार्ग का सच्चे मन से अनुसरण करता है...

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