चेन्नई. कोसापेट जैन स्थानक में शुक्रवार को मधुकर ‘अर्चना’ सुशिष्या साध्वी कंचनकुंवर सहित सहवर्तिनी साध्वीवंृद का प्रवचन कार्यक्रम हुआ जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही। साध्वी डॉ.उ दितप्रभा ‘उषा’ ने अपने उद्बोधन में कहा कि समय बहुत सूक्ष्म है। आंख की पलक स्वाभाविक रूप से खुले और बंद हो उनमें असंख्य समय बीत जाता है। अर्थात् समय की गति बड़ी तीव्र है। प्रकाश, शब्द और विद्युत से भी अधिक तेज गति से समय भागता है। शब्द और विद्युत को चाहे पकड़ लो किन्तु समय सबकी पकड़ के बाहर है। न बीता समय लौटता है और न आनेवाला समय रुकता है। अत: वर्तमान को जानो क्योंकि जो वर्तमान समय का सम्मान करता है, समय उसे मूल्यवान बना देता है। पंडित वही है जो क्षण के मूल्य को जाने और क्षण द्वारा शाश्वत की खोज कर उसे सार्थक करे। क्षण भर का भी प्रमाद मत करो। जब तक शरीर बलवान है इन्द्रियां सशक्त हैं, तब तक धर्म ...
चेन्नई. साध्वी जागृतिश्री के सान्निध्य में एस. एस.जैन संघ, कोसापेट द्वारा 29 एवं 30 जून को दो दिवसीय धार्मिक शिविर आयोजित किया जाएगा। शिविर का मुख्य विषय है-ऐसे जीएं। शिविर सुबह 7 बजे से 8.30 तक युवाओं के लिए एवं दोपहर 2 बजे से 3.30 बजे तक महिलाओं एवं युवतियों के लिए शिविर का समय निर्धारित किया गया है। संघ अध्यक्ष दीपक सुराणा ने बताया समता युवा संघ, तमिलनाडु एवं एस.जैन संघ, कोसापेट शिविर की तैयारी में लगे हुए हैं। गौरतलब है कि साध्वी जागृतिश्री का इस साल का चातुर्मास समता भवन, कोंडीतोप में संभावित है।
चेन्नई. चिंतादरीपेट जैन स्थानक में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा आत्मा के भीतर मौजूद अनंत गुणों का प्रकटीकरण तभी संभव है जब साधक की अंतर्दृष्टि जागृत हो जाती है। अंतर्मुखी बना हुआ मनुष्य कांच के द्वारा बाहरी वस्तुओं को देखने के बजाय दर्पण के माध्यम से भीतर में झांकना शुरू कर देता है। आत्मा और शरीर की भिन्नता को स्वीकार करने वाला ही भेदविज्ञान की स्थिति तक पहुंच पाता है। चेतन गुणयुक्त आत्मा का निज स्वभाव ऊपर की ओर उठना है, लेकिन कर्मों के भार के कारण जीव का पतन होता है। अज्ञान अवस्था में दूसरों के बारे में जानने की रुचि पैदा होती है लेकिन जिसके भीतर ज्ञान का प्रकाश प्रकट हो जाता है वो आत्मा को जानना शुरू कर देता है और जो एक आत्मा को जान लेता है वह सब कुछ जान लेता है। आत्मा को देखा नहीं जा सकता, किंतु उसके अनुभूति की जा सकती है। शरीर के अंगों को सक्रिय बनाने में आत्मा का ही हाथ होता है। निष्प...
चेन्नई. किलपॉक में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने कहा संसार में चार मंगल तत्व होते हैं- अरिहंत मंगल, सिद्धा मंगल, साहू मंगल व केवली भगवंत द्वारा की गई धर्म की प्रारूपणा। उन्होंने अरिहंत मंगल के बारे में बताया कि सभी जीवों के कल्याण की भावना हमारे हृदय में प्रकट हो जाए तो हमारा मंगल होगा। अहम की भावना जिसके हृदय में होगी उसका कभी मंगल नहीं होगा। सिद्ध भगवत सर्वकर्म रहित हैं इसलिए मंगलमयी हैं। साधु इसलिए मंगलमयी हैं क्योंकि उनके हृदय में जगत के सभी जीवों प्रति हित की भावना है। साधु का उपसर्ग आने पर भी उनके हृदय में किसी के प्रति अहित की भावना नहीं आती। केवल प्रारूपित धर्म के बारे में उन्होंने कहा जगत के सभी प्राणी स्वयं का मंगल चाहते हैं लेकिन वे अपनी आत्मा का मंगल नहीं करेंगे तब तक स्वयं का मंगल नहीं हो सकता। मंगल तत्वों का स्पर्श आत्मा से हो जाए तो जीवन का कल्याण हो जा...