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संसार सुख-दुख का चक्र है: जयधुरंधर मुनि

वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा संसार सुख-दुख का चक्र है। सुख और दुख दिन-रात  के समान आते और जाते रहते हैं। संसार में कोई भी जीव एकांत सुखी नहीं बन सकता है। हर जीव को अपने पूर्व उपार्जित कर्मों के  फल अनुसार सुख और दुख भोगने के लिए बाध्य होना पड़ता है। एक क्षण का दुख वर्षो के सुख को भुला देता है।  सुख में समय जल्दी बीतता है, जबकि दुख में  हर क्षण लंबा लगता है। हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखना ही सच्ची साधना है । लाभ- अलाभ, सुख-दुख, जीवन-मृत्यु, निंदा-प्रसंसा, मान-अपमान, इन 5 द्वंद में समत्व का गुण होना जरूरी है। जीवन में चाहे कैसे भी उतार-चढ़ाव आए तनाव की स्थिति में ना जाते हुए उसे झेलने की क्षमता होनी चाहिए। विकटग्रस्त अवस्था में तनावग्रस्त होना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। थोड़ी सी हानि होने पर भी व्यक्ति तनावग्रस्त बनकर आत्महत्या तक का भी कदम ...

व्यक्तित्व में निखार के लिए करें सम्यक पुरुषार्थ: साध्वी कंचनकंवर

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सानिध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ने कहा कर्म का महत्व देखा जाए तो आत्मा के सामने रज करण के समान है। जैसे कोई श्रेष्ठी गरीब को सहारा देता है और वह एक दिन स्वयं को श्रेष्ठी से बड़ा समझने लगता है ठीक ऐसे ही ये कर्म रज हैं, आत्मा ने इनको सहयोग दिया और ये आत्मा के सिर पर चढ़कर बोलते हैं। ज्ञानीजन कहते हैं कि कर्म के समय पूर्ण विवेक रखना, क्योंकि कदम-कदम पर कर्म हमारे साथ बंध होते हैं। कर्म शुभ होने चाहिए इसका ध्यान रखें। उन्होंने कहा सफलता के मार्ग में चौथा समवाय पुरुषार्थवाद है। दार्शनिक कहते हैं कार्य में सफलता पुरुषार्थ से ही मिलती है। समुद्र में बहुमूल्य रत्न हैं लेकिन उन्हें पाने के लिए पुरुषार्थ करना होगा, गहराई में उतरा पड़ेगा, ऐसे ही जीवन में पुरुषार्थ का महत्व है। व्यक्ति को व्यक्तित्व में निखार करने के लिए सम्यक पुरुषार्थ क...

दूसरो की पीड़ा में खुश होना है हिंसा: साध्वी  मुदितप्रभा

चेन्नई. किलपॉक स्थित कांकरिया भवन में विराजित साध्वी मुदितप्रभा ने कहा प्रभु महावीर की तरह हमें भी वैरी एवं अन्य हर जीव के प्रति प्रेम भाव रखना चाहिए। बदला लेने की भावना रखना, मन में वैर भाव रखना भी भाव हिंसा का रूप ही है। किसी की पीड़ा या दर्द में अगर हम आनंदित या हर्षित और किसी के आनन्द में अगर हम पीडि़त, दु:खी होते हैं तो यह भी एक प्रकार की हिंसा ही है। स्वयं के मूल गुणों पर घात किये बिना दूसरों पर किसी प्रकार से घात किया ही नहीं जा सकता। दूसरों का बिगाड़ करने के पूर्व हम अपनी आत्मा का ही बिगाड़ते हैं। बाहर से पीटना, मारना ही हिंसा का रूप नहीं बल्कि अन्दर से अपने दिल में किसी के प्रति मारने, नुकसान पहुंचाने के भाव भी हिंसा का रूप ही है। आचारांग सूत्र में सुन्दर वर्णन हैं कि जिसे तुम मार रहे हो, पीड़ा पहुंचा रहे हो वो कोई और नहीं, तुम स्वयं ही हो। हम अपनी उदारता, शीतलता, लघुता गुणोंं का ...

मृत्यु के बाद का भव रखें याद: आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर

चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने कहा जीवन में विपत्ति के समय यदि आप अपने आपको पुण्यशाली व भाग्यशाली मानते हैं तब हम मानेंगे कि आप पुण्यशाली और भाग्यशाली हैं। यह सोचो कि पूर्वजन्म में कितना पुण्य, तप आपने किया होगा, तब आपको मनुष्यभव और जैन शासन मिला। उम्र के साथ धर्मध्यान, समाजसेवा का कार्य करना चाहिए। इस भव में यदि झूठ, वैर, मोह, माया, क्रोध, लोभ होगा तो परलोक को कैसे सुधार पाएंगे। संसार में सुख सम्पत्ति पापानुबन्धी पुण्यों से बंधी है। यदि परलोक की श्रद्धा है तो यह स्मरण रहे कि मेरी मृत्यु के पश्चात कैसा भव मिलेगा। इसके लिए हमें हर कार्य ऐसे करने चाहिए कि परभव में अच्छा कुल और शासन मिले। आचार्य ने कहा यह कर्मसत्ता का प्रभाव है। कर्मसत्ता किसी की सगी नहीं है। उसके पास एक ही न्याय है, अपराध किया तो दण्ड भोगना ही पड़ेगा चाहे आप तीर्थंकर हो या चक्रवर्ती। यदि हम स्वीकारते...

जीवन में उम्र का नहीं कार्य का महत्व

चेन्नई. साहुकारपेट के जैन भवन में विराजित साध्वी सिद्ध्र्र्रिसुधा ने कहा कि अनमोल जीवन के महत्व को समझ कर जीवन को बदल लो वरना अंत समय मे चाह कर भी कुछ नहीं किया जा सकतां। जीवन रहते जीवन की वैल्यू समझने वाले समय को सार्थक कर लेते हैं। साध्वी सुविधि ने कहा अगर मनुष्य अपनी दृष्टिकोण को सही रखेगा तो उसके विचार भी सही होंगे। दुनिया में आने वाला प्रत्येक मनुष्य जी रहा है। कोई 40 साल तो कोई 90 साल तक जीता है। जीना महत्व नहीं रखता, बल्कि कैसे जी रहे हैं यह्र महत्वपूर्ण है। कुछ लोग 90 साल और उससे ऊपर भी जी कर समय बर्बाद कर लेते हैं और कोई 16 वर्ष की उम्र में ही जीवन का कल्याण कर लेता है। काम भले ही एक हो लेकिन नजरिया अलग हो। अगर दूसरे लोगों से हट कर विचार होगा तो जीवन में कल्याण हो जाएगा। भले ही पत्थर तोड़ो लेकिन दृष्टिकोण सही रखो। जीवन अनमोल है इसे जितना हो सके सार्थक कर लेना चाहिए। जीवन में उम्र ...

जो चोरी करता है उसका जीवन दुःख और कष्टों से भरा होता है: वीरेन्द्रमुनि

सेलम शंकर नगर स्थित जैन स्थानक में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृतधारा बह रही है जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्रमुनि ने सुख विपाक सूत्र के माध्यम से श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान महावीर स्वामी के सामने सुबाहुकुमार आदि प्रभु से 12 व्रतों का वर्णन श्रवण कर रहे थे, जिसमें तीसरा अदतादान ( स्थूल ) व्रतों की चर्चा कर रहे हैं, चोरी करने का जो त्याग करते हैं, वे सम्मान के पात्र होते हैं ! उन्हें इहलोकिक और पारलौकिक कष्ट देने वाली चोरी का परित्याग करकेआस्तेयव्रत को अपनाने से जीवन शांति मय व्यतीत होता है और सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही हमारी आत्मा जन्म मरण के चक्कर से मुक्त हो जाती है, इसके विपरीत जो चोरी करता है उसका जीवन दुःख और कष्टों से भरा होता है, चोरी करने वाला न आराम से खा सकता है और न सो सकता है। हर समय दिल में घबराहट होती है ,मन अशांत बना रहता है चोरी करने वा...

तेरापंथ भवन ट्रिप्लीकेन चैन्नई में स्वास्थ्य सप्ताह का आयोजन

जीवन का आधार है, प्राण धारण करना जीवन श्वास और प्राण इन दो तत्वों पर टिका है , जो श्वास लेता है वह जीता है जो खाता है वह जीता है जीवन के दो लक्ष्य बन गये श्वास लेना और जीना । आहार और रोग में गहरा संबंध है। रोग के आने का एक कारण है आहार का असंयम।आज के वातावरण में ही रोग के कीटाणु फैले हुए हैं। इतने जर्मस वायरस है कि व्यक्ति के रोगाक्रान्त होने की संभावना बनी रहती है । आहार का असंयम अति मात्रा में खाना, बहुत वस्तुएं खाना, बीमारी को आमंत्रण देना है ।आंतें पाचन तंत्र , आमाशय पित्ताशय सब परेशान हो जाते है उसे पचाने में । जो स्वास्थ्य जीवन जीना चाहते हैं , उनके लिए आहार का विवेक अनिवार्य हैं । उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के विद्वान सुशिष्य मुनिश्री रमेश कुमार जी ने स्वास्थ्य सप्ताह के अन्तर्गत आज खाद्य संयम स्वास्थ्य का आधार विषय पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किये । जैन मुनि रमेश कुमार जी ...

पूनरासर पुजारी बोथरा ने लिया महाश्रमणजी से आशीर्वाद

बेंगलूरु। यहां कुंभलगोड़ू में चातुर्मासार्थ विराजित तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शनार्थ बीकानेर जिले के विश्वविख्यात पूनरासर हनुमानजी मंदिर धाम के विद्वान पुजारी रतनचंद बोथरा पहुंचे। बोथरा ने आचार्यश्री के समक्ष शीश नवाकर वंदन व मांगलिक आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर आचार्यश्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति के स्वागताध्यक्ष नरपतसिंह चोरड़िया व धनराज बोथरा सहित अनेक गुरुभक्त मौजूद थे।

राजेंद्र परिषद बेंगलूरु ने मनाया करुणा दिवस

बेंगलूरु। अखिल भारतीय श्री राजेंद्र जैन नवयुवक परिषद की बेंगलूरु शाखा द्वारा साध्वीश्री सूर्योदयाश्रीजी की पावन प्रेरणा से करुणा दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर 450 श्रावक-श्राविकाओं ने आयंबिल तप किया। परिषद के राष्ट्रीय मंत्री प्रकाश हिराणी ने बताया कि देश भर में आचार्यश्री जयंतसेनसूरीश्वरजी की प्ररेणा से जप-तप के कार्यक्रम सुचारु रुप से जारी है। परिषद के अध्यक्ष डूंगरमल चोपड़ा ने बताया कि सभी तप आराधकों का बहुमान किया गया। इस मौके पर परिषद के दक्षिण भारत प्रांत के अध्यक्ष बाबूलाल सवाणी, बेंगलूरु के सचिव संघवी नेमीचंद, सहसचिव दिलीप कांकरिया, कोषाध्ध्यक्ष रमेश बोरा, प्रकाश बालगोता एवं महिला इकाई की पदाधिकारीगण भी मौजूद थे।

न पाप करें, न ही पापी की अनुमोदना करें: साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी

मासक्षमण करने वाले तपस्वीवृंद का किया अभिनंदन, मेजर जनरल राजपुरोहित व अभिनेत्री सिमरन ने लिया मांगलिक बेंगलूरु। विश्वविख्यात अनुष्ठान आराधिका एवं शासनसिंहनी साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी के सान्निध्य में यहां वीवीपुरम स्थित महावीर धर्मशाला में मासक्षमण की तपस्या करने वाले चार तपस्वियों का अभिनंदन किया गया। इस अवसर पर चंडीगढ़ में पदस्थापित मेजर जनरल नरपत सिंह राजपुरोहित व पंजाबी फिल्म अभिनेत्री सिमरन शब्बरवाल ने भी साध्वीश्री के दर्शन-वंदन सहित मांगलिक आशीर्वाद प्राप्त किया। गुरु दिवाकर केवल कमला वर्षावास समिति के तत्वावधान में अपने चातुर्मासिक प्रवचन में साध्वीश्री ने 15 प्रकार के करुणा दानों की विस्तार से व्याख्या की। मूक प्राणियों के प्रति दया व त्याग की भावना को बलवती रखने की प्रेरणा देते हुए उन्होंने करुणा दान के अनेक प्रसंगों के उदाहरण भी दिए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के जीवन में पाप कभी छि...

सुख में फूले नहीं दुख में धर्म को भूले नहीं: जयधुरंधर मुनि

वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा विषमता से समता की ओर कदम बढ़ाने चाहिए। विषमताओं का मूल कारण इंद्रियों के विषय के प्रति होने वाले विकार है। विवाद, विघटन, विपत्ति, विकृति, विफलता विकल, वियोग इन सब कारणों से ही विषमता के मार्ग पर चलते हुए जीव पतन के गर्त में जाता है। जबकि संवाद, संगठन, संपत्ति, संस्कृति, सफलता, संकल्प और सहयोग समता भावों को प्रकट करवाते हुए साधक को सम मार्ग पर अग्रसर करते है। जिस प्रकार हवा दीपक को बुझा भी सकती है और जंगल में दावानल की आग भी फैला सकती है, उसी प्रकार मन में विषमताएं भी आ सकती है और समता भाव भी रह सकता है। लेकिन समता भाव रखने वाला ना तो किसी के प्रति राग रखता है ना ही किसी के प्रति द्वेष भावना रखता है। मुनि ने श्रावक के 11वां गुण मध्यस्थता का वर्णन करते हुए कहा कि जिस तरह से तराजू के दो पलडे खाली रहने पर सम रहते हैं , एक एं...

महारूद्राभिषेक के लिए उमड़े शिव भक्त

कोयम्बत्तूर.श्रावण मास के आखिरी रविवार को राजस्थानी संघ भवन में महारुद्राभिषेक का आयोजन किया गया। आरएस पुरम स्थित संघ भवन में दोपहर से पहले ही रूद्राभिषेक के लिए श्रद्धालुओं की कतार लगने का सिलसिला शुरु हो गया था। शाम साढ़े छह बजे तक महारुद्राभिषेक हुआ। रात्रि 8.30 बजे महादीप आराधना हुई। कार्यक्रम की जानकारी देते हुए रमेश कुमार टिबरेबाल ने बताया कि सर्वप्रथम हवन किया गया। इसके बाद संगीतमय पाठ शुरू किया गया। शहद, दुग्ध व जल से श्रद्धालुओं ने अभिषेक किया। भक्तिभाव से भगवान शिव की पूजा की। इस अवसर पर संघ भवन में बारह ज्योर्तिलिंग की झांकियां सजाई गईं। मंत्राोच्चार की गूंज श्रद्धालुओं ने बताया कि संघ भवन में होने वाले इस कार्यक्रम का इंतजार रहता है। धूप होने के बावजूद श्रद्धालुओं में हर आयु वर्ग के लोग व महिलाएं अभिषेक के लिए कतार में लगीं थीं। देर शाम तक हजारों श्रद्धालुओं ने महोत्सव में भाग ...

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